कहानी लिखना सिखाया नहीं जा सकता परंतु सीखा जा सकता है; खूब अधिक पढ़ना ही है एकमात्र रास्ता

अजय देवगन का विचार है कि हमें विदेशी आधुनिकतम सिने उपकरण आयात करते हुए

Update: 2022-01-20 08:10 GMT
जयप्रकाश चौकसे का कॉलम: 
अजय देवगन का विचार है कि हमें विदेशी आधुनिकतम सिने उपकरण आयात करते हुए, उन्हें स्वदेश में बनाने का लक्ष्य सामने रखना चाहिए। लेकिन खाकसार का विचार है कि सबसे पहले हमें दर्शक की पसंद को जान लेने का प्रयास करना चाहिए। मिसाल के तौर पर किसी किशोर आयु के लड़के या लड़की की बात की जाए तो उनकी पसंद उनके बड़े भाई या बहन से अलग मिलेगी। यह भी सच है कि इन किशोर और युवाओं में पांच-सात वर्ष के अंतर से पसंद बदलती जा रही है।
दर्शक पीढ़ियों का अंतर अब सिमटकर सीमित समय हो गया है। इस बात को इस उदाहरण से और बेहतर तरीके से समझा जा सकता है कि जैसे दो भाईयों में से एक भाई को क्रिकेट देखना और खेलना पसंद है, तो उससे मात्र 3 वर्ष छोटे भाई का झुकाव फुटबॉल की ओर हो सकता है। बहरहाल, फिल्म निर्माण की बात की जाए तो इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि नई कहानियों पर फिल्में बनानी चाहिए। दरअसल नए विचारों की कमी नहीं है। विविध कहानियां भी उपलब्ध हैं।
कुछ ऐसे फिल्मकार हुए हैं, जिनमें इतना आत्मविश्वास था कि वे दर्शक की पसंद को भी बदल सकते थे। सत्यजीत राय ने सिनेमा में परिवर्तन किया और ऐसी दर्शक पीढ़ियों का विकास किया जो नए का स्वागत करते हुए पुराने के प्रति आदर का भाव रखते हैं। राज कपूर की फिल्म 'बॉबी' का नायक 17 वर्ष का था और नायिका 14 वर्ष की थी। शरत बाबू के 'देवदास' से प्रेरित अनेक भाषाओं में फिल्में बनी हैं। शरत बाबू का 'देवदास' पात्र मात्र 17 वर्ष का है और पारो 14 वर्ष की।
अभी तक बने फिल्म संस्करणों में इन पात्रों को प्राय: 35 वर्ष के कलाकारों ने अभिनीत किया है। के. एल सहगल तो 40 वर्ष के थे। देवदास का सर्वश्रेष्ठ संस्करण माने जाने वाले बिमल राय की 'देवदास' फिल्म के नायक दिलीप कुमार मात्र 35 वर्ष की आयु के थे। संजय लीला भंसाली की 'देवदास' फिल्म के शाहरुख खान भी उस समय मध्यम आयु में पहुंच गए थे। उनकी पारो, ऐश्वर्या राय भी 17 वर्ष की नहीं थीं। ज्ञातव्य है कि स्वयं शरत बाबू ने 17 वर्ष की आयु में 'देवदास' लिखना प्रारंभ किया था।
'देवदास' लिखे जाने के 14 वर्ष पश्चात उपन्यास प्रकाशित हुआ। पहले प्रकाशन के समय शरत बाबू ने अपना नाम ही नहीं दिया था कुछ लोगों का अनुमान था कि उपन्यास रवींद्रनाथ टैगोर ने लिखा है। स्वयं रवींद्रनाथ टैगोर ने इसका खंडन ही नहीं किया वरन इसके मूल लेखक को भी खोज निकाला। उस समय शरत बाबू रंगून के एक दफ्तर में क्लर्क थे। शरत बाबू बायोपिक अभी तक बना नहीं है। 'आवारा मसीहा' नामक बायोपिक की प्रेरणा शरत बाबू ही थे। यह विष्णु प्रभाकर का लिखा हुआ उपन्यास है, जिसे कई पुरस्कार मिले हैं।
गोया की कहानी लिखना सिखाया नहीं जा सकता परंतु सीखा जा सकता है। खूब अधिक पढ़ना ही एकमात्र रास्ता है। बहरहाल, कहानियों का अकाल एक मिथ है। हर आम आदमी एक कथा है। वह अपना दर्द कभी स्वयं से नहीं कहता। कहता भी है, तो बात अनसुनी रह जाती है। चुनावी ढोल-ताशे के शोर में कुछ सुनाई नहीं पड़ता। हर शहर, कस्बा एक किस्सा है। वहां पसंद किया जाने वाला भोजन भी जगह के मिजाज का परिचय देता है।
'माया मेम साब' नामक केतन मेहता की फिल्म में गुलजार के गीत की पंक्तियां हैं, 'यह शहर बड़ा पुराना है, हर सांस में एक कहानी है, यह बस्ती दिल की बस्ती है, कुछ दर्द है कुछ रुस्वाई है, यह बस्ती दिल की बस्ती है, यह कितनी बार उजड़ी है, यह कितनी बार बसाई है, यह जिस्म है कच्ची मिटटी का, भर जाए तो रिसने लगता है, बाहों में कोई थामे तो, आगोश में गिरने लगता है, यह शहर बड़ा पुराना है। इसी तरह कहानियों की कमी नहीं है। कमी हमारी नजर और नजरिये में आई है। स्वयं अजय देवगन और उनकी पत्नी काजोल एक प्रेम कहानी हैं। इनपर तो डबल बायोपिक बन सकता है।
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