संकट में छोटे उद्यम

तमाम एमएसएमई इकाइयां अभी भी लाभ नहीं कमा पा रही हैं। ऐसे में इस क्षेत्र को नए बजट से उम्मीद थी कि उन्हें कारोबार चलाने में मदद के लिए कोई सीधा लाभ दिया जाएगा।

Update: 2022-02-09 03:16 GMT

सरोज कुमार: तमाम एमएसएमई इकाइयां अभी भी लाभ नहीं कमा पा रही हैं। ऐसे में इस क्षेत्र को नए बजट से उम्मीद थी कि उन्हें कारोबार चलाने में मदद के लिए कोई सीधा लाभ दिया जाएगा। लेकिन एक बार फिर उन्हें उधारी की उम्मीद पकड़ा दी गई। करोड़ों हाथों को काम देने वाले देश के छोटे उद्यम लंबे समय से कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। हर आने वाले दिन के साथ उनकी मुश्किलें बढ़ी हैं।

नोटबंदी, जीएसटी जैसे आर्थिक सुधारों ने उन्हें उजाड़ने का ही काम किया। महामारी ने छोटे उद्यमों को मृतप्राय कर दिया। सरकार की ओर से अभी तक किए गए बचाव के उपाय अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाए हैं। नए बजट से उम्मीदें थीं। लेकिन यहां भी उधार की उम्मीदें हैं। जबकि अभूतपूर्व बेरोजगारी के समय में छोटे उद्यमों को तत्काल आक्सीजन की जरूरत है।

सरकार अब इस बात को मानने लगी है कि सूक्ष्म, लघु एवं मझौले (एमएसएमई) उद्यम क्षेत्र पर महामारी का असर हुआ है। लेकिन असर का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। असर के आकलन के लिए पिछले साल नवंबर में निविदा आमंत्रित की गई थी। चयनित एजेंसी को दो महीने में एमएसएमई क्षेत्र की पिछले पांच साल की तस्वीर बतानी थी कि कितनी इकाइयां बीमार हैं, या बंद हुर्इं और कितनी नई खुली हैं। इस दिशा में कितनी प्रगति हुई, फिलहाल कोई जानकारी नहीं है।

इस बीच लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) के एक सर्वेक्षण में पता चला है कि वित्त वर्ष 2020-21 में कोविड के दौरान सड़सठ फीसद एमएसएमई तीन महीनों तक अस्थायी रूप से बंद रहे, लगभग छियासठ फीसद इकाइयों का मुनाफा घट गया। 27 जनवरी, 2022 को आई इस सर्वे की रपट एमएसएमई मंत्री नारायण राणे ने तीन जनवरी, 2022 को लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में साझा की। लेकिन सीमित दायरे के कारण यह रपट एमएसएमई क्षेत्र की पूरी तस्वीर पेश नहीं करती कि कितनी इकाइयां बीमार हैं या कितनी बंद हो गर्इं।

बीमार एमएसएमई इकाइयों की संख्या अंतिम बार 2017 में बताई गई थी। एमएसएमई राज्य मंत्री हरिभाई पार्थीभाई चौधरी ने 11 अप्रैल, 2017 को लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा था कि पिछले चार वर्षों में बीमार एमएसएमई इकाइयों की संख्या दोगुनी हो गई। जवाब में आरबीआइ के आंकड़े के हवाले से कहा गया था कि वित्त वर्ष 2012-13 के दौरान बीमार एमएसएमई इकाइयों की संख्या दो लाख बाइस हजार दो सौ चार थी, जो 2015-16 के दौरान बढ़ कर चार लाख छियासी हजार दो सौ इक्यानवे हो गई। ध्यान रहे, यह आंकड़ा नोटबंदी से पहले का है।

एमएसएमई इकाइयां ज्यादातर नकदी में कारोबार करती हैं, लिहाजा आठ नवंबर, 2016 को लागू हुई नोटबंदी से यह क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ था। लेकिन प्रभाव का कोई प्रामाणिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं हो पाया। सरकार ने कोई आंकड़ा दिया नहीं, निजी एजेंसियों के आंकड़े को वह खारिज करती रही है। इसका एक अर्थ यह है कि एमएसएमई क्षेत्र की बीमारी को लेकर नीति-नियंता गंभीर नहीं थे। अब जब आंकड़े जुटाने की कवायद शुरू हुई है तो गंभीरता की बात समझ में आती है, और थोड़ी उम्मीद भी जगी है।

फिलहाल, एमएसएमई क्षेत्र की बीमारी का अंदाजा एनपीए के आकार से लगाया जा सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के आंकड़े बताते हैं कि एमएसएमई क्षेत्र का एनपीए वित्त वर्ष 2021 में बढ़ कर एक लाख अट्ठाइस हजार पांच सौ दो करोड़ रुपए हो गया, जो इसके पहले के वित्त वर्ष में एक लाख आठ हजार सात सौ चार करोड़ रुपए था। जबकि इसी अवधि के दौरान बैंकों का कुल एनपीए 7.1 फीसद नीचे आया और यह सात लाख अस्सी हजार पिच्चासी करोड़ रुपए हो गया है। बीमार इकाई उसे कहते हैं, जिसकी उधारी का खाता तीन महीने या इससे अधिक समय से एनपीए हो, या उसका नुकसान कुल पूंजी का पचास फीसद या उससे अधिक हो चुका हो।

सरकार ने बगैर किसी आंकड़े के ही बीमार एमएसएमई के इलाज के लिए महामारी के बीच मई 2020 में इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम (ईसीएलजीएस) जैसे उपाय किए। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) की छह जनवरी, 2022 को आई एक शोध रपट के अनुसार, ईसीएलजीएस के जरिए लगभग 13.5 लाख एमएसएमई खाते बचाए गए, जिनमें से 93.7 फीसद सूक्ष्म और लघु इकाइयों (एमएसई) के थे। परिणामस्वरूप एक लाख अस्सी हजार करोड़ रुपए मूल्य का कर्ज एनपीए होने से बच गया।

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