तकरार का पैमाना
शराब बिक्री को लेकर एक बार फिर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच तनातनी बढ़ गई है। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया ने एक प्रेस वार्ता बुला कर कहा कि नई आबकारी नीति तत्कालीन उपराज्यपाल की दो बार की मंजूरी के बाद ही लागू की गई थी।
Written by जनसत्ता: शराब बिक्री को लेकर एक बार फिर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच तनातनी बढ़ गई है। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया ने एक प्रेस वार्ता बुला कर कहा कि नई आबकारी नीति तत्कालीन उपराज्यपाल की दो बार की मंजूरी के बाद ही लागू की गई थी। हालांकि उन्होंने बाद में अपना रुख बदल दिया और कहा कि अनधिकृत कालोनियों में शराब की दुकानें नहीं खोली जा सकतीं।
इसके लिए दिल्ली विकास प्राधिकरण सहित दूसरे महकमों से मंजूरी लेनी होगी। सारी गड़बड़ी यहीं से शुरू हुई। पहले तय हुआ था कि दिल्ली के सभी मुहल्लों में बराबर की संख्या में शराब की दुकानें खोली जाएंगी, मगर उपराज्यपाल का रुख बदलने के बाद अनधिकृत कालोनियों में दुकानें नहीं खुल पार्इं, जिसकी वजह से दिल्ली सरकार को राजस्व का भारी नुकसान उठाना पड़ा। उधर दिल्ली के उपराज्यपाल ने नई आबकारी नीति के तहत शराब की दुकानों को मंजूरी देने में हुई गड़बड़ी के चलते आबकारी आयुक्त समेत ग्यारह अधिकारियों को निलंबित कर दिया है। इन अधिकारियों पर लाइसेंस देने में गड़बड़ी का आरोप है। इस तरह दिल्ली सरकार, उपराज्यपाल और भाजपा एक बार फिर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने में जुट गए हैं।
शराब की बिक्री से सरकारों को राजस्व की भारी कमाई होती है। इसलिए इसमें दुकानों को मंजूरी देने आदि में गड़बड़ी की शिकायतें आम हैं। मगर किसी राज्य सरकार और राज्यपाल या उपराज्यपाल के बीच लाइसेंस बांटने को लेकर शायद ही ऐसे तल्ख संबंध कभी बने हों। हालांकि दिल्ली सरकार शुरू से कह रही है कि नई आबकारी नीति के तहत दुकानों के आबंटन में ऐसे लोगों को निकाल बाहर किया गया, जो गलत तरीके से घुस आए थे।
उसका यह भी कहना है कि जिन लोगों को दुकानें आबंटित नहीं हुर्इं, उनमें से ज्यादातर भाजपा के करीबी थे। नई दुकानों के आबंटन के बाद कई दुकानदार अदालत में भी गए। फिर उपराज्यपाल ने इसकी जांच कराई तो गंभीर अनियमितता पाई गई, जिसके आधार पर उन्होंने सीबीआइ से जांच कराने का आदेश दे दिया। दिल्ली सरकार का तर्क था कि अगर अनियमितता हुई होती, तो राजस्व की कमाई में बढ़ोतरी न हुई होती। इसे लेकर कई दिन तक भाजपा, दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच तल्ख बयानबाजी होती रही। अब तो दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और आबकारी मंत्री ने खुद इस मामले की सीबीआइ से जांच कराने की मांग कर दी है। तरह यह मामला खासा राजनीतिक रंग ले चुका है।
दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच ऐसे तल्ख संबंधों की वजह से आखिरकार परेशानी आम लोगों को उठानी पड़ती है। उपराज्यपाल के सीबीआइ जांच के आदेश के बाद दिल्ली सरकार ने पुरानी आबकारी नीति को ही लागू करने का फैसला किया, तो लगा कि अब तकरार समाप्त हो गई है। मगर उपराज्यपाल ने इसे और तीखा बना दिया।
कई लोगों का कयास है कि इस तरह केंद्र के इशारे पर दिल्ली सरकार के राजस्व की कमाई पर हमला किया जा रहा है। मगर चिंता की बात यह भी है कि इस तरह की तनातनी में कहीं अवैध शराब बेचने वाले न पैर पसारना शुरू कर दें। इस दिशा में दिल्ली सरकार को अतिरिक्त रूप से सतर्क रहने की जरूरत है। फिर, अगर उसने सचमुच साफ-सुथरे ढंग से नई आबकारी नीति लागू की थी, तो उसे जांचों से क्या भय? मगर उपराज्यपाल से अपेक्षा की जाती है कि वे इस मामले को पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से निपटाएं।