सरकार-किसान वार्ता: बेजा मांगों को मनवाने में समर्थ हैं किसान, देश को ऐसा संदेश नहीं जाना चाहिए
नए कृषि कानूनों पर केंद्र सरकार और किसानों के विभिन्न संगठनों के बीच जारी बातचीत चाहे जिस नतीजे पर पहुंचे,
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| नए कृषि कानूनों पर केंद्र सरकार और किसानों के विभिन्न संगठनों के बीच जारी बातचीत चाहे जिस नतीजे पर पहुंचे,उसके जरिये देश को ऐसा कोई संदेश नहीं जाना चाहिए कि कुछ लोग अपनी बेजा मांगों को मनवाने में समर्थ हैं। ऐसा कोई संदेश जाना उचित नहीं होगा। इससे कानून के शासन के साथ-साथ सरकार की साख को भी ठेस पहुंचेगी। पंजाब के किसानों की कुछ समस्याएं हो सकती हैं, लेकिन वे ऐसा कोई दावा नहीं कर सकते कि उनकी ओर से देश के सभी किसानों का प्रतिनिधित्व किया जा रहा है। ऐसा कोई दावा इसलिए ठीक नहीं होगा, क्योंकि बीते दिनों जब पंजाब के किसान सड़कों और रेल पटरियों पर बैठे थे तब देश के अन्य हिस्सों के किसान उनकी मांगों के साथ खड़े होने से इन्कार कर रहे थे।
अब जब मुख्यत: पंजाब के किसान संगठनों ने नए कृषि कानूनों के खिलाफ केंद्र पर दबाव बढ़ा दिया है तब फिर देश के बाकी किसान संगठनों के लिए यह देखना आवश्यक हो जाता है कि उनके हित न प्रभावित हो जाएं। वैसे भी इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि पंजाब के किसान जो मुद्दा उठा रहे हैं वह मुद्दा देश के बाकी हिस्सों के किसानों को प्रभावित नहीं करता। नि:संदेह सरकार इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकती कि संकीर्ण स्वार्थों को सिद्ध करने के लिए किसानों को आगे लाकर उस पर बेजा दबाव बनाया जा रहा है, लेकिन यह जिम्मेदारी उसकी ही है कि वह इस दबाव से कैसे बाहर आए।
चूंकि पंजाब के किसान संगठनों की मांग के पीछे कुछ अपुष्ट और आधी-अधूरी जानकारियां हैं इसलिए यह भी आवश्यक है कि केंद्र सरकार नए सिरे से यह स्पष्ट करे कि कृषि कानूनों का उद्देश्य किसानों को अनाज बेचने के कुछ अन्य विकल्प उपलब्ध कराना है। इसके साथ ही उसे यह भी सवाल करना चाहिए कि आखिर अनाज बेचने के विकल्प बढ़ाना समस्या खड़ी करने का काम कैसे कर सकता है? चूंकि कृषि राज्य के अधिकार क्षेत्र वाला विषय है इसलिए यदि किसी को और खासकर पंजाब सरकार को यह लगता है कि उसे अपने यहां के किसानों के हितों की रक्षा के लिए कुछ और करने की आवश्यकता है तो वह इसके लिए स्वतंत्र है।
इस बारे में पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के ही पूर्व सहयोगी नवजोत सिंह सिद्धू खुद यह कहकर उन्हें आईना दिखा चुके हैं कि उनकी सरकार राज्य की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य क्यों तय नहीं कर सकती? पंजाब के किसानों की मांगों पर विचार करते समय केंद्र सरकार इसकी भी अनदेखी नहीं कर सकती कि न्यूनतम समर्थन मूल्य की जो परिस्थितियां पंजाब में हैं वे शेष देश में नहीं हैं।