शिवसेना में बगावत... यह तो होना ही था

सम्पादकीय

Update: 2022-06-21 17:13 GMT
शिवसेना में बगावत को लेकर हैरानी नहीं। जब शिवसेना ने विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद भाजपा से नाता तोड़कर अपने धुर विरोधी दलों- राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी, तभी यह स्पष्ट हो गया था कि यह बेमेल सरकार अधिक दिनों तक चलने वाली नहीं। वास्तव में तब यह भी साफ हो गया था कि इस विचित्र प्रयोग की सबसे बड़ी कीमत शिवसेना को ही चुकानी पड़ेगी। वैसे तो सत्ता के लोभ में पहले भी परस्पर विरोधी दल एक साथ आते रहे हैं, लेकिन शिवसेना ने राकांपा और कांग्रेस के साथ जाकर अपने उस आधार को अपने ही हाथों खिसकाने का काम किया, जिस पर उसकी समस्त राजनीति केंद्रित थी।
हिंदुत्व को अपनी राजनीति का आधार बताने वाली शिवसेना ने राकांपा और कांग्रेस के पाले में जाकर अपनी विचारधारा से मुंह ही मोड़ा। इसके चलते वह हर गुजरते दिन के साथ अपनी साख गंवाती जा रही थी। इसे शिवसेना के समर्थक, कार्यकर्ता और नेता न केवल महसूस कर रहे थे, बल्कि यदा-कदा व्यक्त भी कर रहे थे, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी के लालच में उद्धव ठाकरे इस सबकी अनदेखी करते रहे। वह ऐसे कई निर्णय भी करते रहे, जो शिवसेना के मूल चरित्र से बिल्कुल भी मेल नहीं खाते थे। हद तो तब हो गई, जब ऐसे फैसलों का बचाव करते हुए शिवसेना नेताओं की ओर से बाल ठाकरे के विचारों को भी खारिज करने की कोशिश की गई। यह सत्ता की भूख का ही नतीजा था कि शिवसेना कांग्रेस नेताओं की ओर से उन वीर सावरकर के अपमान की भी अनदेखी करती रही, जिन्हें वह अपना प्रेरणास्रोत बताती है।
फिलहाल यह कहना कठिन है कि महाराष्ट्र विकास अघाड़ी सरकार के वरिष्ठ मंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के विधायकों ने जो बगावत की, उसका परिणाम क्या होगा, लेकिन यह सरकार रहे या बचे, उद्धव ठाकरे की मुश्किलें कम होने वाली नहीं हैं। महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में सब कुछ ठीक नहीं, इसका एक प्रमाण हाल में पहले राज्यसभा चुनाव में मिला और फिर विधान परिषद के चुनाव में।
यह दिलचस्प है कि जब महाराष्ट्र विकास अघाड़ी सरकार गहरे संकट में है, तब इस सरकार के गठन में प्रमुख भूमिका निभाने और उसके फैसलों को प्रभावित करने वाले राकांपा प्रमुख शरद पवार कह रहे हैं कि शिवसेना में बगावत उसका आंतरिक मामला है। इसके पहले कांग्रेस की ओर से यह कहा जाता रहा है कि वह अगला चुनाव अपने दम पर लड़ेगी। यह उद्धव ठाकरे ही बता सकते हैं कि उन्हें यह बुनियादी बात क्यों नहीं समझ आई कि वह जिन दलों के सहयोग से सरकार चला रहे हैं, वे शिवसेना की जड़ें ही खोद रहे हैं?

दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय 
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