रेणुकाजी डैम यानी एक और विस्थापन

विगत छह दशकों से हिमाचल के हजारों परिवार भाखड़ा, पौंग बांध व कोल डैम परियोजनाओं से विस्थापन का दंश झेलने को मजबूर हैं

Update: 2021-12-27 19:07 GMT

विगत छह दशकों से हिमाचल के हजारों परिवार भाखड़ा, पौंग बांध व कोल डैम परियोजनाओं से विस्थापन का दंश झेलने को मजबूर हैं। अब सिरमौर जिले में श्री रेणुकाजी तीर्थ स्थल के समीप गिरि नदी पर विशाल डैम बनने जा रहा है जिसका शिलान्यास 27 दिसंबर को प्रधानमंत्री ने किया। करीब चार दशकों से विवादों में रही यह परियोजना भी विस्थापन का दर्द लेकर आ रही है। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य दिल्ली के दो करोड़ बाशिंदों को पेयजल उपलब्ध कराना है ताकि राजधानी की प्यास बुझ सके। रेणुकाजी डैम के पानी के वे छह राज्य भी हकदार होंगे जिन्होंने इस परियोजना से मिलने वाले पानी को सिंचाई परियोजनाओं के लिए इस्तेमाल करने के लिए पानी समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। इस डैम से दिल्ली को 23 क्यूसेक्स पानी मिलेगा। कुल 7,600 करोड़ रुपए की लागत से तैयार होने वाली इस परियोजना की 90 प्रतिशत इक्विटी भारत सरकार की है और शेष 10 प्रतिशत लागत सभी राज्यों को वहन करनी होगी। ये राज्य हैं दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश व राज्यस्थान। रेणुकाजी डैम की ज़द में संगड़ाह जनपद के उप गांवों के 2500 परिवार प्रभावित होंगे 14 साल से तो 148 मीटर ऊंचाई के बांध से 40 मैगावाट बिजली पैदा होगी। अब तक हिमाचल सरकार इस परियोजना से विस्थापित होने वाले परिवारों को मुआवजे के रूप में करीब 400 करोड़ रुपए वितरित कर चुकी है, लेकिन राहत व पुनर्वास योजना के तहत बेघर होने वाले परिवारों के लिए नए घर बनाकर देना, कॉलोनी बनाना और ज़मीन देना कुछ ऐसी शर्तें हैं जिन पर अभी तक कोई कार्रवाई आरंभ नहीं हुई है। श्री रेणुकाजी बांध जनसंघर्ष समिति 2007 से पुनर्वास के लिए आंदोलन कर रही है। समिति का मत है कि डैम तो अगले 6 साल में बनकर तैयार होगा, लेकिन वे गत 14 साल से अनेक समस्याओं से जूझ रहे हैं जिनका निवारण करने में हिमाचल सरकार विफल रही है।

डैम में डूबने वाले जिन घरों की शिनाख़्त की गई है उनके मालिक उनकी मरम्मत तक नहीं करवा सकते। मनरेगा के सहारे जिन जॉब कार्ड धारकों को मज़दूरी मिलती थी, वह पूर्ण रूप से बंद है। डैम ने उन्हें पूरी तरह बेरोजगार कर रखा है। 34 गांवों ने 14 साल में विकास का एक पत्थर भी लगते हुए नहीं देखा है। मुआवजे में जो राशि मिली थी उसे विस्थापित परिवार खर्च कर चुके हैं। वे बैंकों में कब तक रखते क्योंकि परियोजना के समझौते के बाद उनकी रोज़ी-रोटी के सभी साधन छिन चुके हैं। अब उनके पास विस्थापित होने के बाद दूसरे स्थान पर न तो ज़मीन खरीदने के पैसे बचे हैं, न ही घर बनाने को। सन् 1960 में भाखड़ा से लेकर 100 मील लंबे क्षेत्र यानी बिलासपुर तक हजारों परिवार उजड़े थे, तो कांगड़ा जिले में पौंग डैम बनने से 30 हजार परिवार बेघर हुए। वे राजस्थान में बस नहीं पाए और पौंग डैम में अपनी हरी-भरी उपजाऊ ज़मीन गंवा बैठे थे। कुछ ऐसा ही हाल रेणुकाजी बांध के निर्माण में होने जा रहा है। रेणुकाजी क्षेत्र में प्रभावित होने वाले किसान परिवार अदरक, लहसुन, दालंे, गेहूं, मक्का व अन्य नगदी फसलें उगाकर गुजर-बसर करते हैं, लेकिन विस्थापन की पीड़ा को वे और उनकी भावी पीढि़यां कैसे झेल पाएंगी, कोई नहीं जानता। देश के हर बड़े विस्थापन की कहानी एक जैसी ही है। रेणुकाजी बांध से विस्थापित होने वाले परिवारों को पावर कारपोरेशन की ओर से 'एफैक्टड फैमिली कार्ड' दिए जाने थे जो गत 20 साल से नहीं दिए गए हैं। पुनर्वास योजना के तहत मकान बनाने के कार्य की प्रगति शून्य है। रेणुकाजी से संगड़ाह को जाने वाली सड़क भी बांध में डूबेगी जिसके लिए वैकल्पिक सड़क बनानी होगी। ये सड़क कब बनेगी और जब बनेगी तो कुपवी तक के लोगों को लंबा रूट तय कर श्री रेणुकाजी पहुंचना पड़ेगा।
राजधानी दिल्ली की प्यास बुझाने के लिए रेणुकाजी जैसे बड़े बांध की अगर आवश्यकता है तो 1142 से अधिक परिवारों के पुनर्वास, सुख-सुविधाओं व सोशल इम्पैक्ट के प्रति सरकार को संवेदनशीलता, जवाबदेही के प्रति गंभीरता का परिचय देना होगा और राहत व पुनर्वास को धरातल पर घटित होते हुए दिखना सरकार की जिम्मेदारी है। संघर्ष समिति के अध्यक्ष योगिंदर कपिला का कहना है, '2007 के बाद विस्थापितों की एक भी मांग पर सरकार ने ़गौर नहीं किया है। विस्थापित परिवारों को रोजगा़र देने, ज़मीन देने, शहर के किनारे कॉलोनी का निर्माण, मुआवजे में अनियमितताएं आदि कई ऐसे मुद्दे हैं जिन पर सरकार चुप्पी साधे हुए है। झाड़ी, जंगल, ज़मीन के मालिकों और उपजाऊ ज़मीन मालिकों को मुआवज़े के आबंटन में भेदभाव हुआ है जिससे विस्थापित हो रहे परिवारों में भारी असंतोष है। नाहन-पांवटा व नाहन-सराहां सड़क पर चार जगहों पर पावर कारपोरेशन ने विस्थापतों के पुनर्वास के लिए 300 बीघा जमीन खरीदी है, लेकिन एक भी जगह बसने लायक नहीं है। विवादास्पद होने के कारण उलटे कारपोरेशन के ़िखलाफ विजिलेंस के मामले बन चुके हैं। सैनवाला, टोकियो, अम्बोया, चाकली नामक स्थानों पर सरकार ने करीब 300 बीघा ज़मीन खरीदी है जिसके बारे में आरोप है कि ़गरीब लोगों से ज़मीन खरीदकर भू-माफिया ने पावर कारपोरेशन को महंगे दामों पर बेची। ज़मीन घोटाले के विरुद्ध राज्य विजिलेंस विभाग जांच कर रहा है। लेकिन अहम प्रश्न यह है कि चारों जगहों पर खरीदी गई ज़मीन खड्डों, नालों व नदियों के किनारे पर है, जिसे संघर्ष समिति नामंजूर कर चुकी है। प्रदेश सरकार को चाहिए कि वह प्रधानमंत्री को वस्तुस्थिति से अवश्य अवगत कराए ताकि पुनर्वास की समस्या का जल्द व अनिवार्य समाधान हो।'
राजेंद्र राजन
वरिष्ठ साहित्यकार
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