धार्मिक पर्यटन सर्किट

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केदारनाथ धाम दर्शनों में शरीक हिमाचल की धार्मिकता एक अच्छे इवेंट में बदल गई

Update: 2021-11-14 18:39 GMT

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केदारनाथ धाम दर्शनों में शरीक हिमाचल की धार्मिकता एक अच्छे इवेंट में बदल गई, लेकिन हमारे अपने मंदिरों की व्यवस्था पर इससे क्या फर्क पड़ा। कहने को हर सरकार और हिमाचल आने वाले वीआईपी मंदिरों की परिक्रमा में शंखनाद कर जाते हैं, लेकिन न तस्वीर बदली और न ही धार्मिक पर्यटन को अहमियत मिली। चार धाम सड़क परियोजना ने उत्तराखंड को देश की सर्वश्रेष्ठ धार्मिक डेस्टिनेशन बनाने का संकल्प लिया और इसी के परिणाम मुखातिब हैं। हिमाचल का धार्मिक संस्थान प्रबंधन ही राजनीतिक तलवे चाट रहा है, तो अर्चना भी नेताओं की होगी। हमारे सारे मंदिर स्थानीय परिदृश्य की महफिल में जिलों की सीमा के भीतर देखे जाते हैं, जबकि धार्मिक पर्यटन सर्किट के तहत इनका प्रारूप, प्लानिंग तथा महत्त्व बढ़ाना होगा। स्थानीय ट्रस्ट बनाकर जिस तरह इनका अब तक संचालन हुआ है, उसके कारण तमाम बड़े मंदिर राजनीति की कठपुतली बन गए हैं और विकास के नाम पर फिजूलखर्ची ही हो रही है या इन्हें भी नौकरी प्रदान करने का जरिया बनना पड़ा। कमाई में कीर्तिमान स्थापित करके भी दियोटसिद्ध मंदिर आर्थिक रूप से कमजोर इसलिए दिखाई देता है क्यांेकि वहां कमाई के सारे स्रोत अनावश्यक रूप से कर्मचारियों की अत्यधिक संख्या पर व्यय हो जाते हैं।

ऐसे में प्रदेश का एक केंद्रीय मंदिर ट्रस्ट तथा मंदिर विकास प्राधिकरण बनाकर मंदिर प्रंबंधन को पारदर्शी, जवाबदेह तथा कॉडर आधारित प्रशिक्षित करना होगा। मंदिरांे का विकास केवल परिसर तक सीमित नहीं हो सकता, बल्कि हर धार्मिक नगरी को एक सुनिश्चित विकास परियोजना के तहत अगले सौ सालों की सुविधाएं जुटानी चाहिएं। मंदिर टाउनशिप के मायने पर्यटन के अलावा संस्कृति व सामाजिक विकास के साथ जोड़ने के लिए राज्य स्तरीय खाका बनाना होगा। इसे धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से मजबूत करें, तो हर छोटे-बड़े मंदिरों, गुरुद्वारों व अन्य तीर्थ स्थलों के अलावा धार्मिक उत्सवों तथा परंपराओं के साथ नत्थी किया जा सकता है। उदाहरण के लिए मंडी शिवधाम परियोजना एक बड़ा संकल्प है, लेकिन छोटी काशी के स्वरूप में मंडी के धरोहर मंदिरों की प्रदक्षिणा को अतिक्रमण तथा अति व्यावसायिकता से बचा कर उनके मूल स्वरूप में सहेजने के लिए महत्त्वाकांक्षी परियोजना की जरूरत है। ऊना के साथ नादौन, मणिकरण व कुछ अन्य गुरुद्वारों को जोड़ते हुए सिख पर्यटन को नई परिभाषा के साथ जोड़ा जा सकता है।
आश्चर्य यह कि 18 जुलाई 2009 को 'हिमाचल प्रदेश अनुसूचित धार्मिक संस्थानों की उत्कृष्टतर प्रबंधन-व्यवस्था' पर गठित समिति ने अपनी सिफारिशें सौंपी थी, लेकिन आज दिन तक इन पर अमल ही नहीं हुआ। बार-बार दक्षिण भारतीय मंदिरों पर आधारित व्यवस्था का जिक्र होता है, लेकिन किसी भी सरकार ने धार्मिक पर्यटन पर केंद्रित व्यवस्था को विकसित करने पर गंभीरता से विचार ही नहीं किया, नतीजतन सारे मंदिर प्रशासनिक अधिकारियोें के लिए एक चरागाह की तरह हैं। कभी कभार सियासी दखल, प्रशासनिक अमल और मंदिर आय के बल पर कुछ योजनाएं बना भी दी जाती हैं, लेकिन इससे धार्मिक पर्यटन का राज्य स्तरीय स्वरूप नहीं बनता। पूरे प्रदेश में कई धरोहर व अपनी तरह के अनूठे मंदिर हैं, लेकिन विकास व प्रबंधन के अभाव में ये धार्मिक पर्यटन से नहीं जुड़ पा रहे। यहां दो बगलामुखी मंदिरों की दास्तान स्पष्ट कर सकती है कि उचित प्रबंधन और विकास से क्या कुछ हो सकता है। कांगड़ा के वनखंडी तथा कोटला में दो प्राचीन बगलामुखी मंदिर हैं। ऐतिहासिक रूप से प्राचीनतम मंदिर कोटला में स्थित है और एक तरह से पुरातत्व विभाग की बंदिशों के बीच मूल रूप में अति भव्य हैं, लेकिन इसके विस्तार में न सरकार और न ही जनप्रतिनिधियों ने काम किया। दूसरी ओर वनखंडी स्थित बगलामुखी मंदिर का विस्तार धार्मिक पर्यटन का आदर्श खाका इसलिए बना पाया क्योंकि वहां निजी तौर पर बेहतर प्रबंधन किया जा रहा है। सरकार अपने मंदिरों की व्यवस्था के लिए इससे भी सीख ले तो काफी सुधार हो सकता है।

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