राहत के आंकड़े
जीएसटी संग्रहण के आंकड़ों ने अर्थव्यवस्था में आशा का संचार किया
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। यूं तो देश की अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत सितंबर से ही मिलने लगे थे, मगर अक्तूबर में अर्थव्यवस्था के जो उम्मीद जगाते आंकड़े हाल में आए हैं, वे उत्साहवर्धक हैं, जो इस बात का भी संकेत हैं कि हमने कोरोना संकट के साथ जीते हुए आगे बढ़ना सीख लिया है। जीएसटी संग्रहण के आंकड़ों ने अर्थव्यवस्था में आशा का संचार किया। जीएसटी संग्रहण का एक लाख करोड़ पांच हजार का आंकड़ा छूना बताता है कि आर्थिकी के सभी क्षेत्रों में सुधार के संकेत हैं। रोचक यह भी है कि कोरोना मुक्त अक्तूबर, 2019 के मुकाबले अक्तूबर, 2020 में जीएसटी संग्रह में दस फीसदी की वृद्धि है, जो कोरोना संकट के बीच बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है। यह इसलिये भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी ऋणात्मक 24 के आंकड़े के साथ गोता लगा चुकी थी। निस्संदेह जीएसटी के आंकड़े बता रहे हैं कि अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है। यह भी हकीकत है कि इसे स्वाभाविक गति हासिल करने में कुछ और वक्त लगेगा। कह सकते हैं कि त्योहारों के चलते मांग में वृद्धि से मांग-पूर्ति का संतुलन बनाने के लिये आर्थिकी में उछाल आया है। कोशिश हो यह रफ्तार आगे बनी रहे। इसी बीच अक्तूबर में औद्योगिक उत्पादन की स्थिति बताने वाले इंडेक्स में आये उछाल ने नई उम्मीदें जगायी हैं। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि यह उछाल पिछले एक दशक में सर्वोच्च है। इस हकीकत के बावजूद कि वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में देश का सकल घरेलू उत्पाद माइनस 24 रहा था तो उसमें उत्पादन क्षेत्र की भी बड़ी भागीदारी थी। बहरहाल, अर्थव्यवस्था के रुझान इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि देश की अर्थव्यवस्था कोरोना संकट के अभिशाप से उबरने लगी है। कमोबेश जीडीपी में सात फीसदी का योगदान करने वाले ऑटोमोबाइल क्षेत्र के बेहतर आंकड़ों ने भी बाजार में उत्साह भरा है, जिसमें दुपहिया वाहनों की खरीद में बड़ी तेजी देखी गई। यह भी कहा जा रहा है कि कोरोना संकट के चलते सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था प्रभावित होने और संक्रमण के खतरे को देखते हुए वाहनों की खरीद बढ़ी है। यह भी कि देश की अर्थव्यवस्था में धनात्मक रुझान त्योहारों की शृंखला की देन है। बाजार में मांग बढ़ी है और उसकी पूर्ति के लिए उद्योगों ने उत्पादन बढ़ाया है। हकीकत यह भी है कि लॉकडाउन के दौरान बंद हुए छोटे व मध्यम श्रेणी के उद्योग पूरी तरह खुल नहीं पाये हैं, श्रमिकों के पलायन व छंटनी का असर भी छोटी इकाइयों पर नजर आया है। ऐसे में औद्योगिक इकाइयां जब पूरी क्षमता के साथ काम करेंगी तो आर्थिकी को गति मिलेगी। साथ ही जीडीपी नकारात्मक से सकारात्मक की ओर बढ़ेगी। निस्संदेह जीएसटी में वृद्धि भी इसी बात का संकेत है कि अर्थव्यवस्था के सभी सेक्टरों में सुधार का रुझान है। साथ ही जीएसटी में वृद्धि आर्थिक संकट से जूझ रहे राज्यों के संसाधनों को भी समृद्ध करेगी। अब रियल स्टेट सेक्टर भी सांस लेने लगा है। फिर भी विभिन्न क्षेत्रों से आ रहे सकारात्मक रुझानों को निरंतर बनाये रखने की जरूरत है। वहीं दूसरी ओर अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति में तेजी भी बाजार में मांग बढ़ने की ही ओर इशारा कर रही है। यह भी हकीकत है कि यह महंगाई निर्बल आय वर्ग के हित में नहीं कही जा सकती, लेकिन अर्थव्यवस्था में गति का संकेत जरूर है। यह इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि देश कोरोना संकट से उपजे अवसाद से उबर रहा है। ज्यों-ज्यों संक्रमण में और कमी आयेगी, अर्थव्यवस्था सामान्य ढंग से तेजी पकड़ेगी। आगे का सफर कठिन जरूर है लेकिन असंभव कतई नहीं है। ऐसे में सरकार व केंद्रीय बैंक की सचेतक भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। औद्योगिक इकाइयों को प्रोत्साहन देने के लिये राहत पैकेजों का सहारा लिया जा सकता है, ताकि कर्मचारियों की छंटनी और वेतन कटौती की प्रवृत्ति को रोका जा सके। यह जानते हुए कि देश में बेरोजगारी की अभूतपूर्व स्थिति सामाजिक असंतोष का कारक बन सकती है।