जीवन के रंगमंच पर पात्रों का कायाकल्प, अभिनय क्षेत्र में व्यक्ति को एक ही जीवन में विविध अनुभव होते हैं
सलमान खान का कहना है कि वे ‘बजरंगी भाई जान’ भाग-2 बनाने पर विचार कर रहे हैं
जयप्रकाश चौकसे । सलमान खान का कहना है कि वे 'बजरंगी भाई जान' भाग-2 बनाने पर विचार कर रहे हैं। गौरतलब है कि कई वर्ष पहले सलमान एक कथा रच रहे थे। उसका नायक एक नौटंकी में पौराणिक पात्र अभिनीत करता है परंतु अपने जीवन में वह अनैतिक कार्यों में लिप्त इंसान है। एक बालक उसका अभिनय देखता है लेकिन वह यथार्थ और काल्पनिक का अंतर समझ नहीं पाता।
वह उस अभिनेता को सच मानकर पूजता है उसकी सेवा करता है। बच्चे की भक्ति-भाव से उस नौटंकी कलाकार की विचार प्रक्रिया में अंतर आता है और वह अनैतिक कार्य छोड़ देता है। अब वह कसरत करके बलवान बनना चाहता है। यह अलग किस्म का काया परिवर्तन है।
कहते हैं कि फिल्म साहब-बीवी और गुलाम के बाद मीना कुमारी छोटी बहू की तरह शराब पीने लगीं। उनकी मृत्यु भी लिवर सिरोसिस बीमारी से हुई। क्या यह परिवर्तन भी पात्र अभिनीत करते हुए हो गया। कई लोगों के दबाव में आकर ही वे 'पाकीजा' पूरी करने के लिए तैयार हुई थीं। बहरहाल, पौराणिक पात्र को अभिनीत करने वाला कलाकार अपने कस्बे में अत्याचार करने वालों को दंडित करता है। पात्रों का यथार्थ जीवन में भी परिवर्तन होता है। यह मनोवैज्ञानिक लोचा है।
प्राय:खलनायक पात्रों को अभिनीत करने वाले कलाकार अपने जीवन में अच्छे व्यक्ति होते हैं। यह भी संभव है कि उनका यह कार्य भी अभिनय ही हो। कलाकार ही नहीं आम आदमी भी अपने जीवन में अभिनय करता है। वह अपने लिए एक लोकप्रिय छवि बनाता है। वह ईमानदार व्यक्ति माना जाए, यह उसके लिए आवश्यक है। अपनी लम्पटता को छुपाए रखता है। हम सब आधे-अधूरे लोग हैं।
सलमान ने अपने पिता सलीम को पात्र की कथा सुनाई थी। सलीम साहब का कहना था कि अभी इस पात्र को पूरी तरह पकने दो। अत: विचार भी पकाए और पचाए जाते हैं इस प्रक्रिया में कभी-कभी व्यक्ति वमन भी कर देता है। एक दौर में सलमान खान ने अमेरिका में एक शल्य क्रिया कराने के बाद शराब और सिगरेट से तौबा कर ली, क्योंकि डॉक्टर ने यह परामर्श दिया था। दिलीप कुमार, संजीव कुमार, राज कपूर और मोतीलाल अपनी भूमिका में स्वाभाविकता लाने की कला जानते थे।
आज अक्षय कुमार और अजय देवगन वर्ष में तीन या चार फिल्मों में काम करते हैं। उन्हें किसी तरह के अभ्यास की जरूरत नहीं है। अजय अभिनीत फिल्म 'दृश्यम' का नायक कम पढ़ा-लिखा है। वह फिल्में देखने का शौकीन है और वीडियो सर्कुलेटिंग का काम करता है। तब्बू अभिनीत पात्र, पुलिस महकमे की आला अफसर है और अपने गुमशुदा पुत्र की तलाश के दरमियान वह महसूस करती है कि इस कम पढ़े-लिखे व्यक्ति के जीवन में फिल्में पाठशाला की तरह हैं।
नायक पूरे पुलिस महकमें को फिल्म देखने के जुनून से पराजित कर देता है। राम गोपाल वर्मा भी फिल्म सर्कुलेटिंग का व्यवसाय करते हुए सफल फिल्मकार बन गए। उन्होंने उर्मिला मातोंडकर के साथ कई फिल्में बनाईं। राम-गोपाल वर्मा की फिल्म निर्माण कंपनी का नाम ही फैक्टरी था। वे आत्मविश्वास की अधिकता के शिकार हो गए। ज्ञातव्य है बदरुद्दीन उर्फ जॉनी वॉकर प्राय: शराबी की भूमिकाएं करते थे परंतु अपने जीवन में उन्होंने कभी शराब नहीं पी।
फिल्म अभिनय सीखा जा सकता है परंतु सिखाया नहीं जा सकता। सारा खेल भावना का इमीटेशन करते हुए पात्र में उसके सब्सीट्यूशन का है। अभिनय क्षेत्र में व्यक्ति को एक ही जीवन में विविध अनुभव होते हैं। पात्र को त्वचा की तरह धारण करना होता है। सर्प अपनी त्वचा बदल लेता है क्योंकि वह रेंगता है। मनुष्य को अन्य व्यक्ति की त्वचा धारण करना कठिन होता है। सलमान की कुछ फिल्में असफल रही हैं, परंतु जीवन के अखाड़े में वह मिट्टी पहलवान की तरह है। यह संभव है कि बजरंगी के नए स्वरूप में वह फिर अपनी दबंगई हासिल कर ले।