निशाने पर पंडित

घाटी के विभिन्न हिस्सों में कश्मीरी पंडितों और हिंदुओं की टारगेटेड किलिंग की बढ़ती घटनाओं ने जहां इन अल्पसंख्यक समुदायों में घबराहट फैलाई है, वहीं सरकार के लिए भी दुविधाजनक स्थिति बना दी है।

Update: 2022-06-06 03:47 GMT

नवभारत टाइम्स; घाटी के विभिन्न हिस्सों में कश्मीरी पंडितों और हिंदुओं की टारगेटेड किलिंग की बढ़ती घटनाओं ने जहां इन अल्पसंख्यक समुदायों में घबराहट फैलाई है, वहीं सरकार के लिए भी दुविधाजनक स्थिति बना दी है। इस सिलसिले में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के साथ जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और उच्च अधिकारियों की शुक्रवार को हुई बैठक के डीटेल्स तो सार्वजनिक नहीं हुए, लेकिन यह बात स्पष्ट हुई कि सरकार फिलहाल कश्मीरी पंडितों को जम्मू में या कश्मीर के बाहर कहीं रीलोकेट करने की मांग से सहमत नहीं है। ऐसा करना कश्मीर में शांति और सुव्यवस्था कायम करने के अब तक के तमाम प्रयासों और उनसे हुए फायदों पर पानी फेरने जैसा होगा। दूसरी तरफ टारगेटेड किलिंग की इन घटनाओं से आतंकित कश्मीरी पंडित परिवार कुछ भी सुनने को तैयार नहीं नजर आ रहे। उनके तेजी से पलायन की खबरें लगातार आ रही हैं। ऐसे में सरकार ने बीच की राह यह सोची कि इन लोगों का इंटीरियर इलाकों से तबादला जरूर किया जाए, लेकिन घाटी से बाहर भेजने के बजाय इन्हें घाटी में ही अपेक्षाकृत सुरक्षित माने जाने वाले इलाकों में पदस्थ किया जाए। अभी इस पर अमल शुरू ही हुआ था कि तबादलों की सूची सार्वजनिक किए जाने या लीक होने का नया विवाद सामने आ गया। बीजेपी की भी प्रदेश इकाई ने इस पर आपत्ति करते हुए संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।

कहा जा रहा है कि इस तरह तबादले से जुड़े विवरण सार्वजनिक किए जाने से इन कर्मचारियों की असुरक्षा और बढ़ गई। इस मामले की जांच जरूर हो और तय प्रक्रिया के उल्लंघन का दोष पाया जाए तो उपयुक्त कार्रवाई भी हो, लेकिन यह बात भी साफ होनी चाहिए कि कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का काम तबादलों या पदस्थापनाओं को गोपनीय रखने से पूरा नहीं होने वाला। आखिर इन कर्मचारियों को ऑफिसों में काम करना है, वहां शिकायतें लेकर आने वाले लोगों की समस्याएं सुननी हैं, उन्हें हल करना है, पारिवारिक जीवन भी जीना है, मार्केट, सिनेमा वगैरह जाना है, बच्चों को स्कूल भेजना है। ये सब क्या छिपकर रहते हुए करना संभव है? तबादले की सूची पब्लिक नहीं होनी चाहिए, लेकिन क्या आतंकी वारदात इस सूची को गोपनीय रखने से रुक जाएंगी? नहीं रुकेंगी। आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई बेशक जारी रहे और कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर सख्ती भी। लेकिन यह बात भी समझी जाए कि असल चुनौती है आतंकवाद को लोगों की नजरों से उतारने की, इस धारा को पूरी तरह अप्रासंगिक बनाने की। इसके लिए यहां के राजनीतिक दलों को साथ लेना होगा। इसके साथ, लोगों और सरकार के बीच जो खाई पैदा हुई है, उसे खत्म करना होगा। बेशक, इसमें विकास कार्यों की भी भूमिका होगी, जिस पर सरकार ध्यान दे रही है। लेकिन उससे अधिक मदद यहां चुनी हुई सरकार आने से मिल सकती है। इसलिए जल्द चुनाव कराने पर भी ध्यान दिया जाए।


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