निजता और शिकंजा
देश में नये आईटी कानून लागू होने के बाद निजता के सवाल की बहस ने लोगों का ध्यान खींचा है
राष्ट्रीय हित व अभिव्यक्ति की आजादी के द्वंद्व: देश में नये आईटी कानून लागू होने के बाद निजता के सवाल की बहस ने लोगों का ध्यान खींचा है। गत पच्चीस फरवरी को घोषित आईटी कानूनों को सरकार ने तीन माह में लागू करने की घोषणा की थी तथा सोशल मीडिया कंपनियों से निर्धारित जानकारी मांगी थी। लंबे समय से भारत के व्हाट्सएप उपभोक्ताओं की निजी जानकारी व्यापारिक उपयोग के लिये हासिल करने के लिये दबाव बनाने वाली सोशल मीडिया कंपनी इन नये कानूनों को निजता के अधिकार का हनन बताते हुए अब दिल्ली हाईकोर्ट चली गई है। दुनिया में सत्ता को बनाने व बिगाड़ने के खेल में शामिल ये कंपनियां दरअसल निरंकुश व्यवहार के लिये जानी जाती हैं। बताया जाता है कि इस साल जनवरी में फेसबुक व टि्वटर डोनाल्ड ट्रंप को हटाने की मुहिम में एकजुट हो गए थे। कई विवादों के चलते फेसबुक के मुखिया को अमेरिकी सीनेट में तलब भी किया गया था। बाइडेन प्रशासन भी अब इन कंपनियों को जवाबदेह बनाने की मुहिम में जुटा है। अमेरिका में इन भीमकाय कंपनियों को छोटे उद्यमों में बदलने की मांग हो रही है। निजता के अधिकारों की दलील देने वाले फेसबुक पर विगत में उपभोक्ताओं का डाटा व्यावसायिक उपयोग के लिये बेचने के भी आरोप लगे थे। ऐसे वक्त में जब चीन ने इन कंपनियों पर रोक लगाकर अपना सोशल मीडिया विकसित कर लिया है तो अमेरिका व यूरोप से बड़े बाजार व बड़ी जनसंख्या वाला भारत इनके व्यावसायिक हितों के निशाने पर है। निस्संदेह भारत कोई खाला का घर नहीं है कि ये भीमकाय कंपनियां निजता व लोकतांत्रिक अधिकारों की दलीलों के साथ व्यावसायिक हितों को अंजाम दें। भारत में पहले आईटी कानून लचर थे और इन कंपनियों के निरंकुश व्यवहार पर नियंत्रण करने व जवाबदेही तय करने में सक्षम नहीं थे। इन नये कानूनों के खिलाफ व्हाट्सएप अदालत चला गया है तो टि्वटर ने कहा है कि वह उन कानूनों में परिवर्तन का समर्थन करता रहेगा, जो स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति में बाधक हैं।
क्रेडिट बाय दैनिक ट्रिब्यून