बिना लिखे हुए अपनी बात संप्रेषित करने के लिए पॉडकास्ट का प्रचलन बढ़ रहा

इंटरनेट पर हमेशा वीडियो और चित्रों का राज रहा है

Update: 2021-07-06 05:50 GMT

मुकुल श्रीवास्तव। इंटरनेट पर हमेशा वीडियो और चित्रों का राज रहा है। दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले जहां ध्वनियां यानी पॉडकास्ट तेजी से लोकप्रिय हो रहा था, भारत में वीडियो के प्रति दीवानगी बरकरार रही। कोरोना महामारी और वर्क फ्रॉम होम जैसी न्यू नार्मल चीजों ने काफी कुछ बदला है। इसी दौर में लोगों की इंटरनेट पर पसंद वीडियो के साथ साथ ध्वनियों ने भी जगह बनाई और पॉडकास्ट की लोकप्रियता बढ़ने लगी। ऑडियो ओटीटी रिपोर्ट कंटार और वीटीआइओएन के अनुसार संगीत और पॉडकास्ट स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म जैसे स्पोटीफाई, गाना जियो सावन में मार्च 2020 में समय बिताने की संख्या में 42 प्रतिशत का इजाफा हुआ।


ग्लोबल इंटरटेनमेंट एंड मीडिया आउटलुक रिपोर्ट के अनुसार साल 2018 के अंत में भारत में मासिक रूप से पॉडकास्ट सुनने वाले लोगों की संख्या चार करोड़ रही। यह संख्या साल 2017 के आंकड़ों से 57.6 प्रतिशत ज्यादा रही। मासिक श्रोताओं की संख्या से आशय ऐसे श्रोताओं से है जो महीने में कम से कम एक पॉडकास्ट जरूर सुनते हैं। रिपोर्ट के पूर्वानुमान के मुताबिक ये आंकड़े साल 2023 तक 34.5 प्रतिशत की दर के साथ बढ़कर 17.61 करोड़ हो जाने की उम्मीद है। इन आंकड़ों के साथ भारत पॉडकास्ट की दुनिया का चीन और अमेरिका के बाद विश्व का तीसरे नंबर का सबसे बड़ा बाजार बन गया। इसी रिपोर्ट के अनुसार देश में संगीत, रेडियो और पॉडकास्ट का बाजार साल 2014 में 3890 करोड़ रुपये का था जो साल 2018 में बढ़कर 5573 करोड़ रुपये का हो गया।
भारत के विविधता वाले बाजार में पॉडकास्ट एक शहरी प्रवृत्ति बन कर रह गया था और इसके बाजार में जितनी तेजी से वृद्धि होनी चाहिए उसका बड़ा कारण इन आडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर इंटरेक्टिविटी का खासा अभाव था। इंटरनेट की तेज दुनिया में अब कोई इंतजार नहीं करना चाहता और इसीलिए पॉडकास्ट को वह लोकप्रियता नहीं मिल रही थी जितनी इंटरनेट मीडिया साइट्स को मिली। जबकि ध्वनियों का मामला इंटरनेट के एक आम उपभोक्ता के लिए वीडियो के मुकाबले ज्यादा सरल है और इसमें डाटा भी कम खर्च होता है। भारत जैसे देशों में, जहां इंटरनेट की स्पीड काफी कम होती है, वीडियो के मुकाबले पॉडकास्टिंग ज्यादा कामयाब हो सकती है।
भारत जैसे भाषाई विविधता वाले देश में जहां निरक्षरता अभी भी मौजूद है, पॉडकास्ट लोगों तक उनकी ही भाषा में संचार करने का एक सस्ता और आसान विकल्प हो सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'मन की बात' कार्यक्रम का पॉडकास्ट काफी लोकप्रिय है। पॉडकास्ट की सबसे बड़ी खूबी है इसकी वैश्विक पहुंच यानी अगर आप कुछ ऐसा सुना रहे हैं जिसे लोग सुनने चाहते हैं तो किसी चैनल के लोकप्रिय होते देर नहीं लगेगी। भारत श्रोत परंपरा वाला देश रहा है जहां हमारे सामाजिक जीवन में कहानियां बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। कोरोना महामारी से उपजी पीड़ा और चिंताओं ने लोगों को कहानियां कहने और सुनने दोनों के लिए प्रेरित किया।
आजकल इंटरनेट मीडिया पर अपनी राय व्यक्त करने के लिए लोग लिखने में अपना समय नष्ट नहीं करना चाहते हैं तो इसका विकल्प ध्वनियां ही हो सकती हैं। फेसबुक (लाइव ऑडियो रूम) और ट्विटर (स्पेक्स) आवाज की दुनिया में पहले ही कदम रख चुके हैं। इसी कड़ी में मई में देश में लॉन्च होते ही 'क्लबहाउस' लोगों की चर्चा का केंद्र बन गया। क्लबहाउस ध्वनि आधारित एक इंटरनेट नेटवर्किंग साइट है, जो लोगों को 'किसी भी चीज' और 'हर चीज के बारे में' बात करने की सुविधा देता है। लांच होने के बाद ही ये तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। वैसे भारत में इसके कितने उपभोक्ता हैं आधिकारिक तौर पर इसका आंकड़ा जारी नहीं किया गया है।
इसकी लोकप्रियता से उत्साहित होकर आडियो स्ट्रीमिंग में उपभोक्ताओं की पहले ही पसंद बन चुकी कंपनी स्पोटीफाई ने क्लबहाउस को टक्कर देने के लिए इसी माह आवाज पर आधारित एक इंटरनेट नेटवìकग एप ग्रीन रूम लांच कर दिया है। माना जा रहा है कि लाइव आडियो मार्केट में एक कदम आगे निकलते हुए ग्रीन रूम कलाकारों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करेगा और इसके लिए कंपनी जल्द ही एक क्रिएटर फंड बनाने जा रही है जिससे ऑडियो क्रिएटर को यूट्यूब की तर्ज पर अपने लोकप्रिय काम के पैसे भी मिलेंगे।

रेडशीर कंसल्टिंग की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में पांच प्रमुख म्यूजिक स्ट्रीमिंग एप के कुल उपभोक्ता आधार का मात्र एक प्रतिशत ही सशुल्क उपभोक्ता हैं जो कुल राजस्व का करीब 40 प्रतिशत योगदान दे रहे हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक इन कंपनियों को अपने उपभोक्ता आधार में कम से कम छह प्रतिशत को सशुल्क उपभोक्ता बनाना पड़ेगा तभी ये मुनाफा कमा पाएंगी। पॉडकास्ट में विज्ञापनों से आय दूसरा साधन है। वर्ष 2014 में पॉडकास्ट विज्ञापनों से पांच लाख डॉलर का विज्ञापन राजस्व आया था जो साल 2018 में बढ़कर 72 लाख डॉलर हो गया। प्राइस वाटर कूपर्स के एक आकलन के अनुसार यह राजस्व साल 2023 में 58.9 प्रतिशत की वार्षकि दर से बढ़कर 73 लाख डॉलर हो जाएगा।
देश में ध्वनि आधारित इस तरह की सेवाओं की परंपरा नहीं है। ऐसे में इस तरह के एप पर क्या बोलें और क्या न बोलें जैसी समस्या से लोगों को दो-चार होना पड़ेगा। इंटरनेट पर हुई वीडियो क्रांति के अनुभव बताते हैं कि वीडियो कंटेंट में बहुत अश्लीलता, फूहड़ मजाक और फेक न्यूज की बाढ़ भी आ गई है। चूंकि इंटरनेट पर किसी तरह का कोई सेंसर नहीं है, ऐसे में बच्चों को अवांछित ऑडियो कंटेंट से कैसे बचाया जाएगा? उपभोक्ताओं द्वारा बोले गए शब्द कंटेंट का क्या होगा? उसकी निजता की रक्षा कैसे की जाएगी? इसके अलावा, नफरत फैलाने वाले भाषण जैसे दुरुपयोग की निगरानी के लिए सुरक्षा प्रोटोकॉल की कमी के कारण इस तरह के एप कैसे अपने उपभोक्ताओं को इंटरनेट पर ध्वनि की दुनिया में सुरक्षित अनुभव दे पाएंगे इसका फैसला होना अभी होना है।

[प्रोफेसर, लखनऊ विश्वविद्यालय]
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