जीवन का इंद्रधनुष

Update: 2025-01-10 11:10 GMT
Vijay Garg: अगर हम कुदरत के करिश्मे को गौर से देखें तो हैरानी होती है। हालांकि यह हैरानी हमारी समझने और खोज पाने की सीमा के कारण है। सच यह है कि सारा जगत ही इस हद तक विविधतापूर्ण है, जहां के बारे में हमें अंदाजा तक नहीं हो पाता । कुदरत से फितरत तक। संसार का कोई फूल हूबहू दूसरे फूल जैसा नहीं । नदी, पहाड़, झरना - कोई एक दूसरे जैसा नहीं है। कहीं-कहीं दिखने में समान होने का भ्रम भले हो । यानी हर कोई बेजोड़ ही है । फल मंडी में फल देखा जाए तो और भी अधिक हैरानी होती है । हर फल किसी न किसी पेड़ पर ही फलता और फूलता । मगर सब अलग-अलग रस और स्वाद के । एक ही बगीचे में एक- सीमाटी पर उगे दो अमरूद के पौधे भी जब फलदार वृक्ष बनते हैं तो उस पेड़ की शक्ल से लेकर उनके फल का जायका अलग-अलग हो सकता है।
इंसान भी इसी तरह है। आज तक दुनिया मे किसी की अंगुली के निशान यानी 'फिंगर प्रिंट' दूसरे से मिलता हुआ नहीं पाया गया है । एक ही घर के एक ही माता-पिता की संतानें गुण और आदत में कितनी भिन्न होती हैं । यह भी हैरानी की ही बात है। जो इस सच को महसूस कर लेता है, वह न तो नकलची बनता है, न घिसे-पिटे रास्ते पर चलता है। वह मौलिक बनता है । वही सचमुच में सार्थक जीवन जी रहा है, जो अपने अनोखे होने पर यकीन करता है ।
ठीक इसी तरह अगर हम खुद के होने पर भरोसा करेंगे तो हमें अपनी खुशियों के लिए कभी भी किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा, क्योंकि तब हम खुद ही खुद को खुश रख पाएंगे और अपने आप में खुशी ढूंढ़ने से पहले हम जैसे हैं, वैसे ही स्वयं को स्वीकार करें। दूसरों को देखकर खुद से उम्मीद करने से कहीं बेहतर है खुद से शिकायत कम और अपने आप पर भरोसा ज्यादा किया जाए।
इससे संबंधित एक संदर्भ कथा है। एक व्यक्ति की मानसिकता का अंदाजा लगाने के लिए उससे पूछा गया कि 'विश्व में मनुष्यों के बीच बहुत तरह की असमानताएं हैं। कई तरह के भेदभाव हैं। उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है?' व्यक्ति ने उत्तर दिया कि 'ऐसा करने की आवश्यकता क्यों है ? अगर हम पर्वतों को तोड़कर उन्हें समतल कर देंगे तो ऋतु चक्र प्रभावित होगा । उस इलाके के पर्यावरण पर असर होगा। कई तरह के जीव-जंतुओं का आश्रय समाप्त हो जाएगा। अनेक तरह की वनस्पतियां खत्म हो जाएंगी। फिर नदियां कैसे निकलेंगी ? फिर मछलियां कैसे जीवित रहेंगी ? विश्व इतना विशाल और विस्तृत है कि ये असमानताएं ही उसे पूर्णता प्रदान करती हैं। हालांकि यह एक पक्ष हो सकता है कि भिन्नता और विविधिता में संसार की खूबसूरती है, लेकिन इस तर्क पर मनुष्य के समाज में असमानता या विषमता को सही नहीं ठहराया जा सकता। कुदरत की विविधता को असमानता के रूप में नहीं देखा जा सकता। विविधता जहां सौंदर्य है, वहीं असमानता अन्याय का प्रतीक ।
सच यह है कि कुदरत को हमेशा सरलता तथा ईमानदारी पसंद आती है। वह यही चाहती है कि हम जैसे हैं, खुद को स्वीकार करें। अपना विकास करें। किसी ने जीवन के अनुभवों से यही सब सीख कर कहा होगा कि सुनो सबकी, लेकिन करो अपने मन की । इसलिए अपनी तरफ से अपने मनपसंद क्षेत्र में काम करते हुए सौ फीसद मेहनत करनी चाहिए। इसके बाद उसका परिणाम कुदरत पर छोड़ देना चाहिए। जिस कुदरत ने अपनी इस विविधता को इस तरह सहेज रखा है, वही सबका खयाल रखती है। मेहनत से ज्यादा और समय से पहले कभी किसी को कुछ नहीं मिला है। जो भी परिपक्वता के बाद प्रकट होता है, वह शाश्वत रहता है । उसमें एक गरिमा होती है। महात्मा गांधी का सरोकार देश और यहां के लोगों को कहां लेकर आया। उन्होंने सत्याग्रह पर अनगिनत प्रयोग किए। वकालत को त्याग दिया। अंग्रेजों से लोहा लिया। एक शस्त्र न उठाया। मगर अंग्रेज उनसे कांपते थे। उसकी वजह थी उनकी स्थिरता और परिपक्वता । गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर कहते थे कि आप अपने कर्म करते हुए बस एक अच्छे और सच्चे इंसान बन जाओ। आगे की हर बात बहुत ही मनभावन तथा अच्छी होती जाएगी। अगर मन में कपट है तो फिर कुछ भी संतुलित नहीं रहेगा। चीजें पटरी से उतरती जाएंगी। जीवन का रंग खिलकर
निखर न सकेगा ।
अगर व्यक्ति के मन में स्वार्थ होगा, तो उसका प्रभाव उसके सार्वजनिक आचार-व्यवहार पर पड़ेगा। हो सकता है कि कुछ समय तक वह कुछ लोगों की नजर में अच्छा या लाभकारी साबित हो, लेकिन कुछ समय बाद उसके विचार और व्यवहार जमीनी स्तर पर ऐसे प्रभाव पैदा करने लगते हैं कि उससे किसी को नुकसान भी हो सकता है । इसी वजह से धीरे-धीरे लोग उससे दूर होने लगते हैं। स्वार्थी व्यक्ति किसी के लिए न उपयोगी बन पाते हैं और न जीवन में उन्हें अच्छे अवसर मिलते हैं। सवाल है कि स्वार्थ की छिपी मंशा को कब तक छिपाया जा सकता । एक न एक दिन लोग उसे पहचानने ही लगते हैं और ऐसे लोगों से कटना शुरू कर देते हैं । स्वार्थ के परिणाम अंतिम तौर पर ऐसे ही निकलते हैं ।
यह भी सच है कि जगत में चीजें हमेशा बदलती हैं। जो कल था, वह आज नहीं है और जो आज है, वह कल नहीं रहेगा। मगर हम उम्मीद करें कि जीवन और जगत को देखने का हमारा नजरिया हमेशा मानवीय तथा लोक कल्याणकारी रहे। इससे हमारे आसपास के लोगों का परिदृश्य भी बदलेगा और वह बदलाव बेहतरी के लिए ही होगा ।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब
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