कुदरत से खिलवाड़

एक बार फिर भारत पर्यावरणीय प्रदर्शन में फिसड्डी साबित हुआ है। एक सौ अस्सी देशों की सूची में वह सबसे नीचे है। येल और कोलंबिया विश्वविद्यालय की तरफ से एक सौ अस्सी देशों की पर्यावरणीय स्थिति को लेकर कराए गए अध्ययन से यह बात स्पष्ट हुई है।

Update: 2022-06-09 05:05 GMT

Written by जनसत्ता: एक बार फिर भारत पर्यावरणीय प्रदर्शन में फिसड्डी साबित हुआ है। एक सौ अस्सी देशों की सूची में वह सबसे नीचे है। येल और कोलंबिया विश्वविद्यालय की तरफ से एक सौ अस्सी देशों की पर्यावरणीय स्थिति को लेकर कराए गए अध्ययन से यह बात स्पष्ट हुई है। इस अध्ययन में भारत के अलावा रूस और चीन की स्थिति भी चिंताजनक है। जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर दुनिया के तमाम देशों ने मिल कर 2050 तक अपने यहां कार्बन उत्सर्जन में पचास फीसद तक कटौती करने का संकल्प लिया है।

मगर ताजा अध्ययन से जाहिर है कि 2050 तक भारत और चीन दुनिया के सर्वाधिक कार्बन उत्सर्जन करने वाले देश होंगे। हालांकि कई बार पर्यावरण संबंधी अंतरराष्ट्रीय एजंसियों के अध्ययनों को संदेह की नजर से देखा जाता है, उनमें विकासशील देशों पर दबाव बनाने की मंशा भी होती है।

मगर भारत के संबंध में पर्यावरण प्रदूषण को लेकर यह बहुत चौंकाने वाला आंकड़ा नहीं है। समय-समय पर इसे लेकर अध्ययन आते रहते हैं और प्राय: सभी इस दिशा में सुधार लाने की जरूरत रेखांकित करते रहे हैं। हालांकि भारत में स्वच्छ ईंधन और सौर ऊर्जा जैसे उपायों पर तेजी से अमल किया जा रहा है, पर वाहनों और औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले कार्बन पर काबू पाना बड़ी चुनौती बना हुआ है।

दुनिया भर में गहराता जलवायु संकट निस्संदेह चिंता का विषय है, इस पर काबू पाने के मकसद से ही सारे देशों ने मिल कर कार्बन उत्सर्जन में कटौती का संकल्प लिया। मगर यह थोड़ा पेचीदा काम रहा है। कार्बन उत्सर्जन में कटौती के उपाय लागू करने का अर्थ है कि अपने यहां अनेक औद्योगिक और विकास संबंधी गतिविधियों पर अंकुश लगाना।


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