गुलामी से ऊबे हुए लोग
काम कराने वालों को काम करने वाले लोगों के स्वास्थ्य, उनकी निजी जिंदगी से कोई मतलब नहीं, क्योंकि एक कर्मचारी हटता है, तो उसकी जगह लेने के लिए सौ मिल जाते हैं।
काम कराने वालों को काम करने वाले लोगों के स्वास्थ्य, उनकी निजी जिंदगी से कोई मतलब नहीं, क्योंकि एक कर्मचारी हटता है, तो उसकी जगह लेने के लिए सौ मिल जाते हैं। इसका कारण है काम करने वाले अधिक और नौकरियां कम। लेकिन नौकरी की अमानवीय शर्तों से नौकरी करने वालों का मोहभंग हो रहा है। वे दूसरों की बनाई शर्तों पर जीना नहीं चाहते।
एक तरफ तो कहा जा रहा है कि पिछले सालों में कोरोना के कारण पूरे विश्व में बेरोजगारी बेतहाशा बढ़ गई है, लेकिन दूसरी तरफ अमेरिका में 'एंटी वर्क मूवमेंट' भी शुरू हो गया है। यह लोगों को नौकरी छोड़ने के लिए प्रेरित कर रहा है। एंटी वर्क का मतलब यह नहीं कि काम नहीं करना है, बल्कि अपने मन का काम करना है। वैसे भी कहा जाता है कि जिस काम में मन लगता है, उसे ही लोग पूरी मेहनत से करते हैं।
अमेरिका की डोरीन फोर्ड ने दस साल नौकरी की। मगर उसका नौकरी में मन नहीं लगता था। उसकी समझ में नहीं आता था कि क्या करे। नौकरी छोड़े भी कैसे। जीवन यापन के लिए पैसे कहां से आएंगे। डोरीन ने यह बात अपनी दादी को बताई तो दादी ने कहा कि बेहतर है कि वह नौकरी छोड़ कर वह करे जिसके बारे में हमेशा सोचती रही है और अब तक नहीं कर पाई है।
शायद डोरीन ऐसे ही किसी समय का इंतजार कर रही थी। उसने अच्छी तनख्व्वाह वाली नौकरी छोड़ दी और कुत्तों की देखभाल का काम शुरू कर दिया। इससे उसकी आय भी होने लगी। अब वह काम का कोई दवाब नहीं महसूस करती, न ही अधिकारी के कहे काम को पूरा करने के लिए रात-दिन दौड़ना पड़ता है।
अकसर लोग अपने मन का काम इसीलिए नहीं कर पाते कि नौकरी से जो पैसे मिलते हैं वे किसी और काम से नहीं मिल सकते हैं। यही असुरक्षा उन्हें नौकरी के खूंटे से बांधे रखती है। आदमी अपने जीवन के स्वर्णिम वर्ष नौकरी करने और दूसरों का हुकुम बजाने में निकाल देता है। इसलिए नौकरी कम से कम और खुद का काम करने की कोशिश करनी चाहिए। भारत में भी एक कहावत कही जाती थी- नौकरी क्यों करी। या कि नौकरी नौकर से बनी है और जीवन भर की गुलामी होती है।
अब तक एंटी वर्क मूवमेंट के एक लाख साठ हजार सदस्य बन चुके हैं। अमेरिका में नवंबर तक पैंतालीस लाख लोगों ने नौकरी छोड़ी थी। कुछ काम पर ही नहीं लौटे। बहुत से कुछ नए काम पर चले गए। यह भी देखा जा रहा है कि लोग अब पारंपरिक नौकरियां नहीं करना चाहते। यह सोच बढ़ रही है कि दूसरों के लिए काम करने से बेहतर है कि अपने लिए कुछ करें। जो लोग नौकरी करते हैं, वे अकसर यह कहते पाए जाते हैं कि जीवन भर अपने मन का काम नहीं कर पाए।
अपने यहं भी पिछले कुछ सालों से स्टार्टअप्स का जोर बढ़ा है। ऐसी कई साइटें हैं, जो उन लोगों की कहानियां बताती हैं, जिन्होंने लाखों रुपए महीने की नौकरी छोड़ कर अपना कोई काम शुरू किया और सफलता पाई। कई लोग तो विदेशों में बहुत अच्छी नौकरियां करते थे, मगर वहां से ऊब गए। अपना काम शुरू किया और फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
दिल्ली सरकार का एक विज्ञापन भी बहुत अच्छे ढंग से बताता है कि बच्चा जब से आंखें खोलता है सब उससे यही कहते हैं कि अच्छी-सी नौकरी करना। अगर सब अच्छी-सी नौकरी करेंगे तो नौकरी देगा कौन। इसलिए नौकरी देने वाले बनिए। विज्ञापन का निहितार्थ भी यही है कि नौकरी मांगने के मुकाबले ऐसा कोई काम करें, जहां आप औरों को रोजगार दे सकें।
यह सच है कि नौकरी छोड़ कर कुछ नया काम करना हमेशा चुनौतीपूर्ण है। मुसीबतों से भरा है। यह संशय भी लगातार रहता है कि अगर लगी-लगाई नौकरी छोड़ दी, और अपना जो भी काम शुरू किया, वह नहीं चला तो क्या होगा। इसीलिए काम शुरू करने से पहले इस बात का शोध और जानकारी जरूरी है कि बाजार में किस चीज की मांग है और कौन-सा काम ऐसा है, जो लंबे समय तक चल सकता है, क्योंकि बहुत से काम ऐसे भी हैं, जिनकी उम्र कम होती है। वे थोड़ समय तक ही चल पाते हैं।