अमन की राह

प्रधानमंत्री से फोन पर बातचीत करके उन्होंने अपना ‘शांति फार्मूला’ लागू करने में भारत की मदद मांगी। भारत सरकार ने भी उन्हें इसके लिए आश्वस्त किया है। हालांकि इसके पहले भी कई मौकों पर भारत रूस और यूक्रेन के बीच छिड़े युद्ध को समाप्त करने के लिए मध्यस्थ की भूमिका निभाने की कोशिश कर चुका है।

Update: 2022-12-28 04:44 GMT

Written by जनसत्ता: प्रधानमंत्री से फोन पर बातचीत करके उन्होंने अपना 'शांति फार्मूला' लागू करने में भारत की मदद मांगी। भारत सरकार ने भी उन्हें इसके लिए आश्वस्त किया है। हालांकि इसके पहले भी कई मौकों पर भारत रूस और यूक्रेन के बीच छिड़े युद्ध को समाप्त करने के लिए मध्यस्थ की भूमिका निभाने की कोशिश कर चुका है।

दोनों देशों के बीच युद्ध को चलते दस महीने हो गए। इस बीच भारतीय प्रधानमंत्री ने रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से फोन पर और कुछ मौकों पर सम्मेलनों आदि के दौरान बातचीत कर युद्ध रोकने की अपील की, मगर सहमति का रुख दिखाने के बावजूद रूस ने अपना अड़ियल रुख नहीं छोड़ा। शंघाई सहयोग संगठन के शीर्ष सम्मेलन में जब प्रधानमंत्री पुतिन से मिले तब उन्होंने जोर देकर युद्ध रोकने की अपील की थी, तब पुतिन ने उनके सुझाव पर अमल करने को कहा था, मगर वापस लौटते ही उन्होंने यूक्रेन पर हमले तेज कर दिए थे। जेलेंस्की से भी कई बार फोन पर बातचीत करके उन्होंने लचीला रुख अपनाने, बातचीत की मेज पर आने की अपील की है, मगर वह भी झुकने को तैयार नहीं दिखा। अब यूक्रेन खुद शांति का फार्मूला लेकर आया है, तो कुछ सकारात्मक नतीजों की उम्मीद बनी है।

भारत से दोनों देशों के बीच समझौते की उम्मीद इसलिए बनी हुई है कि रूस और यूक्रेन से इसके सदा से बेहतर रिश्ते रहे हैं। भारत हमेशा से युद्ध के बजाय शांति का पक्षधर रहा है। फिर दुनिया के बाकी देश जिस तरह गुटों में बंटे हुए हैं, उनकी बात का इनमें से किसी देश पर या तो बहुत असर नहीं पड़ने वाला या इनमें से कोई न कोई देश उनकी मध्यस्थता से भड़क सकता है।

दोनों के बीच झगड़ा ही इस बात को लेकर शुरू हुआ था कि यूक्रेन यूरोपीय संघ के साथ मिलना चाहता है। वह नेटो का सदस्य बनना चाहता था, ताकि वह अपनी सीमाओं की सुरक्षा को लेकर आश्वस्त हो सके। यही बात रूस को नागवार गुजरी और दोनों की तनातनी में जंग छिड़ गई। इतने महीनों में दोनों देशों का काफी नुकसान हो चुका है। खासकर यूक्रेन को अपने नुकसान की भरपाई में काफी वक्त लगेगा। अच्छी बात है कि यूक्रेन अब युद्ध का रास्ता छोड़ कर शांति प्रस्ताव के साथ आगे आया है।

दोनों देशों के बीच चल रही लड़ाई का असर कई रूपों में दुनिया के बहुत सारे देशों पर पड़ रहा है। पूरी दुनिया की एक तरह से आपूर्ति शृंखला टूट चुकी है, जिसके चलते महंगाई बढ़ रही है। इसलिए कई देशों ने शुरू में ही प्रस्ताव रखा था कि संयुक्त राष्ट्र की एक समिति बननी चाहिए, जिसकी अगुआई भारत को सौंपी जाए और दोनों देशों के बीच बातचीत और समझौते का रास्ता तलाश किया जाए।

अब यूक्रेन ने अपना 'शांति फार्मूला' तैयार किया है, तो कुछ ऐसे देशों को मिल-बैठ कर उस पर विचार करने की जरूरत है, जिनके सुझावों पर दोनों देशों की रजामंदी हो सकती हो। भारत ऐसी स्थिति में हमेशा चाहेगा कि मसले बातचीत के जरिए सुलझें। यों भी पिछले कुछ सालों में भारत के प्रति दुनिया के तमाम ताकतवर देशों का रुख बदला है और उन्हें भरोसा है कि भारत इस संकट का समाधान तलाश सकता है। भारत अभी तक तटस्थ रह कर ही अपने हाथ आगे बढ़ाता रहा है, अब शायद उसे आगे कदम बढ़ाने की जरूरत महसूस हो।


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