कृषि उपज की वाजिब कीमत का सवाल

Update: 2025-02-01 14:41 GMT
Vijay Garg: सान लंबे समय से फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी को कानूनी गारंटी की मांग उठा रहे हैं। इसे लेकर उभरा किसान आंदोलन खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। फिलहाल संयुक्त किसान मोर्चा ने शंभू सीमा से दिल्ली के लिए किसानों का पैदल कूच करने का फैसला स्थगित कर दिया है। केंद्र सरकार की ओर से बैठक का प्रस्ताव आने के बाद जगजीत सिंह डल्लेवाल ने चिकित्सीय सहायता लेना भी स्वीकार कर लिया। अपनी मांगों लेकर आमरण अनशन पर बैठे किसान नेता डल्लेवाल का स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन गिर रहा था। इसलिए सरकार ने किसानों के साथ वार्ता करने प्रस्ताव रखा, जिसे किसानों ने खुले मन से स्वीकार कर लिया। सन 2020 में केंद्र की भाजपा सरकार ने तीन कृषि कानून लागू करने की घोषणा की थी। सरकार ने कई मंचों पर उन कृषि कानूनों के फायदे भी गिनाए थे। उसके बावजूद किसान लगातार आंदोलन पर डटे रहे और आखिरकार सरकार को तीनों कृषि कानून वापस लेने पड़े।
कृषि उत्पादन व्यापार एवं वाणिज्य कानून के अनुसार किसान मनचाही जगह पर अपनी फसल बेच सकते थे। कोई भी भी अधिकृत व्यापारी किसानों से तयशुदा कीमत पर फसल खरीद सकता था। सरकार ने कृषि उत्पादकों के इस व्यापार को राज्यों द्वारा लगाए गए मंडी कर से भी से भी मुक्त कर दिया था। इस किसान ( सशक्तीकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवा कानून द्वारा किसानों से अनुबंध खेती करने और अपनी फसल को स्वतंत्र रूप से बेचने का प्रावधान किया गया था। इसके अलावा, किसान की फसल मौसम या किसी अन्य कारण से नष्ट होने पर उसके नष्ट होने पर उसके नुकसान की भरपाई करने की जिम्मेदारी, करार करने वाली फर्म द्वारा ली जानी थी। मगर किसानों को ये तर्क उचित नहीं लगे, उन्हें लगा कि नए कानूनों द्वारा अनुबंध करने वाली कंपनियां उनकी जमीन हथिया लेंगी तथा सरकार एमएसपी को धीरे-धीरे दरकिनार उद्योगपतियों के के पक्ष में खड़ी जाएगी। पर वास्तव में सरकार नए कृषि कानूनों के म के माध्यम से कृषि क्षेत्र में नए निवेश के लिए दरवाजे खोलना चाहती थी, ताकि किसानों की आमदनी बढ़ सके। किसान विगत कई वर्षों से मानसून की अनियमितता, कम पैदावार, अस्थिर बाजार और संसाधनों की कमी की मार झेल रहे हैं। इसी दुश्वारी चलते अनेक किसान आत्महत्या करने आए हैं। राष्ट्रीय अपराध रेकार्ड ब्यूरो के अनुसार 1955 से 2022 तक 2,06,485 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। नाबार्ड बैंक के अनुसार देश के किसानों पर 21 लाख करोड़ रुपए का कर्जा है। इन्हीं समस्याओं के चलते किसान संगठनों ने 2020 में बड़े पै पर आंदोलन किया था। किसानों की प्रमुख मांग शुरू एमएसपी की कानूनी गारंटी की है। उनका मानना है प्रधानमंत्री फसल बीमा और उर्वरकों पर सबसिडी जारी रखने की नए साल पर घोषणा एमएसपी को दरकिनार करती है। इसके अलावा, सरकार द्वारा हाल ही में जारी किए गए 'अगले वर्षों के लिए कृषि विपणन की राष्ट्रीय रूपरेखा' के मसविदे में एमएसपी का जिक्र तक नहीं है।
गौरतलब है कि सरकार हर वर्ष तेईस फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा करती है। पर उपज का मूल्य एमएसपी में घोषित मूल्य के नीचे जाने पर उक्त फसल को एमएसपी पर खरीदने की सरकारी योजना प्रभावी साबित नहीं हो रही है। इसलिए किसान अपनी उपज को घाटे में बेचने पर मजबूर होते हैं। इस तरह एमएसपी में निहित न्यूनतम और समर्थन मूल्यों का कोई मतलब नहीं रह जाता है, यानी एमएसपी की कोई कानूनी गारंटी नहीं रहती। दरअसल, एमएसपी को महत्त्वपूर्ण कृषि उत्पादों के मूल्य को स्थिर रखने के लिए बनाया गया था। इसका आशय कृषि उत्पादों के मूल्यों को उतार-चढ़ाव से संरक्षित करना है। पर सरकार को लगता है कि अगर एमएसपी को कानूनी रूप से बाध्यकारी बना दिया जाएगा, तो उसे प्रत्येक कृषि उत्पाद को एमएसपी में घोषित मूल्य पर क्रय करना होगा, जो सरकार के लिए संभव नहीं है। कानूनी रूप से बाध्यकारी एमएसपी का मूल सिद्धांत बहुत सरल है। किसानों को अपनी उपज का उचित / वैधानिक मूल्य प्राप्त करने का अधिकार होना चाहिए। इसलिए राज्य का यह दायित्व है कि किसानों को उनकी फसल का वैधानि मूल्य प्राप्त हो, न कि किसानों की उपज को खरीदना, इसी प्रकार किसानों का अधिकार अपनी उपज का वैधानिक मूल्य प्राप्त करना है, चाहे वह इस मूल्य को किसी से प्राप्त करें।
अब समय आ गया है कि किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी देने पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। एमएसपी लागू करने के लिए मुख्य रूप से तीन सुझाव हैं- विस्तारित खरीद, प्रभावी बाजार हस्तक्षेप तथा सुनिश्चित घाटा भुगतान सर्वप्रथम हमें विक्रय के संचालन को विस्तारित और अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता है। वर्तमान में दालों, तिलहनों अधिक खरीद करने की आवश्यकता है, क्योंकि इनका उचित मूल्य प्राप्त न होने के कारण किसान इन फसलों के उत्पाद को लगातार कम करता जा रहा है तथा इन उपजों को खाद्य सुरक्षा योजनाओं में शामिल करने की भी महती आवश्यकता है। इससे वर्तमान में व्याप्त असंतुलन को दूर करने में मदद मिलेगी। दूसरा प्रमुख बिंदु, बाजार में हस्तक्षेप करके मूल्यों की अस्थिरता को कम करना है। इसके तहत सरकार जब भी मूल्य एमएसपी से नीचे गिरने लगे, तो सीमित खरीद करके बाजार में नीलामी के माध्यम से न्यूनतम मूल्य पर स्थिर करके, वर्तमान गोदाम योजना में सुधार करके बाजार मूल्यों को एमएसपी के बराबर स्थिर कर सकती है।
इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय व्यापार नीति में बदलाव करना, एफपीओ (किसान उत्पादक संगठनों) को प्रभावी बनाना, ताकि छोटे किसान अपनी उपज का तब तक भंडारण कर सकें, जब तक वाजिब मूल्य प्राप्त न हो, आदि शामिल हैं। मगर उपरोक्त उपाय अगर कारगर साबित नहीं होते, तो सरकार को आखिरकार कानूनी तौर पर एमएसपी और औसत बाजार मूल्य के अंतर को किसानों को भुगतान करने का प्रावधान करना होगा। अगर पहले दो उपाय सरकार प्रभावी ढंग से लागू कर पाए, तो उसे एमएसपी और औसत मूल्य के के अंतर का भुगतान करने की आवश्यकता ही नहीं होगी। सरकारी हस्तक्षेप तभी आवश्यक होगा जब किसी उपज का बाजार मूल्य एमएसपी से नीचे जाता है।
समय पर बाजार में हस्तक्षेप और ऊपर वर्णित सभी अन्य उपाय यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि कि बाजार मूल्य स्वचालित रूप से एमएसपी के करीब होगा और इस प्रकार सरकार को घाटा काफी कम होगा। वर्तमान दरों पर पर कानूनी रूप से गारंटीकृत एमएसपी की लागत केंद्रीय बजट का लगभग 0.5 से 0.6 फीसद होगा, क्योंकि विगत वर्ष सरकारी आंकड़ों के अनुसार मांगी गई एमएसपी के नीचे कुल घाटा 2,00,710 करोड़ रुपए आया। देश में चली आ रही कृषि संस्कृति को देखते हुए तथा किसानों के हाथों में आने वाली अतिरिक्त क्रय शक्ति को ध्यान में रखते हुए, जो अर्थव्यवस्था के सकारात्मक विकास को बढ़ावा देगी, यह व्यय किसानों की दशा सुधारने में अग्रणी कदम होगा। इसलिए एमएसपी पर कानूनी गारंटी लागू करने की संभावनाओं पर विचार किया जाना चाहिए।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल ‌ शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कोर चंद मलोट पंजाब
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