Pakistan Political Crisis : क्या संसद में हार के बाद सड़क पर संघर्ष का रास्ता अख़्तियार करेंगे इमरान ख़ान?

पाकिस्तान के राजनीतिक समीकरण बताते हैं कि इसमें उन्हें मुंह की खानी पड़ सकती है

Update: 2022-04-09 08:44 GMT
यूसुफ़ अंसारी।
'निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए थे लेकिन, बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले.' मिर्ज़ा ग़ालिब का ये मशहूर शेर पाकिस्तान (Pakistan) के मौजूदा प्रधानमंत्री इमरान ख़ान (Imran Khan) की हालत पर एकदम सटीक बैठता है. कुछ दिन पहले ही संसद में वहां की नेशनल एसेंबली में एक गेंद पर तीन विकेट लेकर सियासी बाज़ी पलटने का दावा करने वाले इमरान ख़ान को सुप्रीम कोर्ट में मुंह की खानी पड़ी है. सुप्रीम कोर्ट ने उनके सारे फ़ैसलों को ग़ैर क़ानूनी बताकर पलट दिया है. अब इमरान ख़ान को शनिवार यानि 9 अप्रैल को अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) का सामना करना होगा.
पाकिस्तान के राजनीतिक समीकरण बताते हैं कि इसमें उन्हें मुंह की खानी पड़ सकती है. जिस नेशनल असेंबली से इमरान ख़ान विजेता की तरह बाहर निकलना चाह रहे थे, अब वहीं से उन्हें हार के बाद बेआबरू होकर निकलना पड़ेगा.
सियासत में मात खा गया क्रिकेट का चैंपियन
क्रिकेट के खेल में आख़िरी गेंद पर बाज़ी पलटने का हुनर रखने वाले इमरान ख़ान समझ रहे थे कि सियासत में भी उन्होंने आख़िरी पल में विपक्षी पार्टियों और सेना की मिली जुली साज़िश को मात दे दी है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पता चला कि विपक्ष और सेना के बिछाए जाल में वह बुरी तरह उलझ गए हैं. इस जाल से बाहर निकलने की कोशिशों के चलते वह खुद को इसमें और फंसा बैठे हैं. विपक्षी पार्टियों ने अविश्वास प्रस्ताव से पहले ही इमरान पर इस्तीफे का दबाव बनाया था.
लेकिन इमरान ख़ान इस्तीफ़ा नहीं देने पर अड़े रहे. आख़िरी समय में उन्होंने डिप्टी स्पीकर से सेटिंग करके अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया था. नेशनल असेंबली के साथ ही प्रांतीय असेंबलियों को भंग करके नए सिरे से चुनाव कराने का ऐलान कर दिया था. ये सब इतनी जल्दबाज़ी में हुआ कि पाकिस्तान के तमाम विपक्षी दलों के साथ ही सेना भी देखती रह गई. इस दांव से इमरान ने पाकिस्तान की सियासत में ख़ुद को मंझे हुए खिलाड़ी के रूप में स्थापित करने की कोशिश की थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बाज़ी पलट दी.
सुप्रीम कोर्ट ने पलटी बाज़ी
इमरान ख़ान का तर्क था कि उनकी सरकार गिराने के पीछे विदेशी साज़िश है इस आधार पर उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता है. लिहाज़ा इसे ख़ारिज किया जाए. डिप्टी स्पीकर क़ासिम सूरी ने ऐसा ही किया भी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट में इमरान ख़ान विदेशी साजिश के सबूत पेश नहीं कर पाए. लिहाज़ा सुप्रीम कोर्ट ने इमरान खान के सारे फैसले को पलटते हुए उन्हें अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने के लिए मजबूर कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने इमरान खान के खिलाफ लाए गए विपक्षी दलों के अविश्वास प्रस्ताव को ख़ारिज करने के फैसले को रद्द कर दिया.
साथ ही शीर्ष अदालत ने यह कहते हुए नेशनल असेंबली को बहाल करने का आदेश दिया कि संसद भंग करने और चुनाव कराने का प्रधानमंत्री का क़दम "असंवैधानिक" था. विपक्ष ने डिप्टी स्पीकर के अविश्वास प्रस्ताव को खारिज करने और इमरान ख़ान के नेशनल असेंबली को भंग करके चुनाव कराने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले ने कुछ साल पहले नवाज़ शऱीफ को प्रधानमंत्री पद के लिए अयोग्य ठहराने के फैसले की याद ताज़ा कर दी है. विपक्ष इसी तरह के फैसले की उम्मीद कर रहा था.
क्या है नेश्नल असेंबली में गणित
पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग कराने का आदेश दिया है. 342 सांसदों वाली नेशनल असेंबली में बहुमत का जादुई आंकड़ा 172 है. प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी इससे काफी दूर है. उनके पास 142 सांसदों का समर्थन है, जबकि एकजुट हुए विपक्ष के पास 199 सांसद हैं. ऐसे में इमरान का जाना और विपक्षी मोर्चे का सत्ता में आना तय है. लेकिन माना जा रहा है कि नई सरकार भी कमजोर नींव वाली ही होगी. विपक्षी मोर्चे में आसिफ अली ज़रदारी की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) और नवाज़ शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) नई सरकार के प्रमुख घटक होंगे.
नवाज की पीएमएल-एन के नेशनल असेंबली में 84 जबकि पीपीपी के 47 सांसद हैं. लिहाजा पीपीपी पहले ही नवाज़ की पार्टी को प्रधानमंत्री का पद देने को तैयार है. नवाज़ शरीफ के भाई शहबाज़ का अगला पीएम बनना तय है. पाकिस्तान के पंजाब सूबे में मजबूत आधार वाली पीएमएल-एन और सिंध की ताकतवर पार्टी पीपीपी कभी धुर विरोधी रही हैं. अब सत्ता के लिए उन्होंने आपस में हाथ मिला लिया है.
कितने दिन चलेगी गठबंधन सरकार?
हालांकि पाकिस्तान में इमरान ख़ान की सरकार के भाग्य और नई सरकार का गठन शनिवार को होने वाले अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान के बाद ही होगा, लेकिन वहां के सियासी गलियारों में ये सवाल तैरने लगा है कि इमरान को हटाकर बनने वाली नई गठबंधन सरकार कितने दिन चलेगी? पाकिस्तान के राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मौजूदा परिस्थितियों में 9 अप्रैल को विश्वासमत से पहले इमरान प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे सकते हैं. संभावना यह भी है कि नए सिरे से चुनाव हों.
जाने माने राजनीतिक विश्लेषक डॉ. मोहम्मद खान कहत हैं, अब तक इमरान ख़ान और उनके गठबंधन ने जो किया, वह सत्ता बचाने के लिए किया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भविष्य के पाकिस्तान का रास्ता साफ कर दिया है. वोटिंग में इमरान सरकार जाएगी. इसके बाद बनने वाली गठबंधन सरकार में प्रमुख पार्टियां शामिल होंगी. नई सरकार उन विवादित कानूनों को हटाने की कोशिश करेगी, जो इमरान ने बनाए थे. हालांकि नई सरकार भी ज्यादा दिन नहीं चलेगी.
डॉ. ख़ान के मुताबिक पाकिस्तान में यह ट्रेंड रहा है कि जो भी सरकार आती है, वह पिछली सरकार पर भ्रष्टाचार के केस खोलती है. इमरान ने भी ऐसा ही किया था. पूर्व पीएम नवाज़ शरीफ पर भ्रष्टाचार के केस लगाकर जेल में डाल दिया. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि जब पीएमएल-एन और पीपीपी सरकार बनाएंगी तो इमरान से राजनीतिक खुन्नस निकालेंगी. ऐसा होने भी लगा है.
ज़मीनी संघर्ष के रास्ते पर इमरान
सुप्रीम कोर्ट में विपक्ष से मिली 'हार' को इमरान खान नहीं पचा पा रहे हैं. यही वजह है कि उनकी पार्टी आने वाले दिनों में आंदोलन का प्लान बना रही है. अब पाकिस्तान की तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर अपनी सरकार की बर्खास्तगी के खिलाफ आंदोलन शुरू करने का फैसला किया है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले क बाद शनिवार (नौ अप्रैल) होने को वाली अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग में इमरान सरकार के बचने की कोई उम्मीद नज़र नहीं आती.
पाकिस्तान के तमाम राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि इमरान को अविश्वास प्रस्ताव में मुंह की खानी पड़ सकती है. लिहाज़ा उनकी पार्टी ने अभी से सड़कों पर संघर्ष का ऐलान कर दिया है. पार्टी हर मंच पर नई सरकार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन करेगी. पार्टी ने यह भी घोषणा किया कि वह राष्ट्रीय और प्रांतीय विधानसभाओं में अपने सांसदों के सामूहिक इस्तीफे पर भी विचार कर रही है. ऐसा करके इमरान ख़ान पाकिस्तान में जन नेता बनने की कोशिश कर सकते हैं. इमरान ख़ान पाकिस्तान की सियासत में शुरू से ही अपना अलग रास्ता चुनने के लिए जाने जाते हैं. क्रिकेट से रिटायर होने के बाद पाकिस्तान की दोनों ही प्रमुख पार्टियों से उनके लिए बड़ा ऑफर था. लेकिन उन्होंने किसी का पिछलग्गू बनने के बजाय अपना अलग रास्ता चुना. अपनी पार्टी बनाकर नए पाकिस्तान का सपना अपने देश की जनता के सामने रखा.
1996 में बनी उनकी पार्टी 2018 में गठबंधन के ज़रिए सत्ता में पहुंची. इमरान नें सत्ता संभालते ही इस्लामी क़ानूनों के मुताबिक़ जनकल्याणकारी योजनाएं लागू करने का ऐलान किया था. लेकिन पाकिस्तान में सत्ता में सेना के दख़ल के चलते उन्हें काफी दिक्कतें हुईं. इमरान ने सरकार के कामकाज में सेना की गैर जरूरी दख़लंदाज़ी का विरोध भी किया. इसका ख़ामियाज़ा उन्हें अपनी सरकार गंवा कर भुगतना पड़ सकता है. मौजूदा हालात में इमरान के पास जनता के बीच जाने के सिवा कोई और रास्ता नहीं हैं. उन्हें उम्मीद है कि पाकिस्तान की जनता उन्हें अगले चुनाव में पूर्ण बहुमत से सत्ता सौंपेगी.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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