अफगानी शरणार्थियों की आड़ में ISI एजेंट्स भेज सकता है पाकिस्तान, कोरोना संक्रमण फैलने का भी हो सकता है खतरा
कोरोना संक्रमण फैलने का भी हो सकता है खतरा
ज्योतिर्मय रॉय।
आधुनिक टैंक, आर्टीलरी, रॉकेट्स और एयरफोर्स के साजो समान के साथ तीन लाख से अधिक आधुनिक ट्रेनिंग और हथियार से लैस अफगानी सेना (Afghan Army) थोड़े से तालिबानियों (Taliban) के सामने धराशायी हो गए. क्या कारण है कि तालिबान के छोटे-छोटे हमलों से इतनी बड़ी अफगानी सेना को आत्मसमर्पण करना पड़ा. अफगानिस्तान के अंदरूनी हालात इस कदर बनते गए कि देश के राष्ट्रपति अशरफ गनी को मजबूरन अफगानिस्तान (Afghanistan) से पलायन करना पड़ा और देखते ही देखते अफ़गानिस्तान की हुकूमत पर तालिबानियों का कब्जा हो गया. जबकि कुछ स्वाभिमानी प्रांतों में आज भी तालिबान को रोकने के प्रयास किए जा रहे हैं.
आश्चर्य की बात तो यह है कि विश्व की ताकतवर अमेरिकी सेना ने 20 साल तक अफगानिस्तान के सैनिकों को आधुनिक सैन्य प्रशिक्षण से प्रशिक्षित किया था. इसके बाद भी तालिबान के हाथों अफगानिस्तान की हुकूमत अपने आप में आश्चर्यजनक है. अफगानिस्तान की हुकूमत में तालिबान कि पूर्ण वापसी क्या इसे हम अमेरिकी खुफिया विभाग की ऐतिहासिक विफलता माने, या तालिबान के साथ गुप्त समझौता का एक हिस्सा.
तालिबान के काबुल पर कब्ज़ा करने के बाद असहाय अफ़गानों के हवाई अड्डे पर देश छोड़ने की दिल दहला देने वाली तस्वीरों ने दुनिया को हिलाकर रख दिया. विश्व के कई हिस्सों में अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान में फैली अराजकता और सत्ता पलट के लिए अमेरिका की भूमिका को संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है. विश्व के कई देशों में अमेरिका पर विश्वास, आस्था ओर अमरीकी नेतृत्व को लेकर कई प्रकार के सवाल खड़े किए जा रहे हैं.
क्या अमेरिका को इस बात का पता नहीं था की अफगानिस्तान में तालिबान हुकूमत आने पर विश्व स्तर पर आतंकी संगठनों को बल मिलेगा? क्या अमेरिका को यह पता नहीं था कि इसके दुष्परिणाम स्वरूप दक्षिण एशिया क्षेत्र में आतंकवाद फिर से सर उठाना शुरू करेगा? क्या आर्थिक तंगी से जूझती अमेरिकी सरकार हथियारों के व्यापार में तेजी लाना चाहता है? इन सवालों का जवाब आज नहीं तो कल अमेरिका को देना ही होगा.
पाकिस्तान के लिए आतंकवाद एक उद्योग
पाकिस्तान के लिए आतंकवाद एक उद्योग हैं. अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों के प्रशिक्षण केन्द्र के साथ-साथ पाकिस्तान सुरक्षित शरणगाह भी बन गया है. आतंकवाद का सहारा लेकर पाकिस्तान अपनी टूटती अर्थव्यवस्था को अब खड़ा करने का प्रयास करेगा. अफगानिस्तान को लेकर चीन और पाकिस्तान का अपना-अपना नजरिया है. अपनी खराब अर्थव्यवस्था के कारण जहां चीन का एजेंट बना पाकिस्तान अब अफगानिस्तान में अपना भविष्य तलाश रहा है, वहीं चीन पाकिस्तान के कंधों पर चढ़कर अफगानिस्तान पर अपना वर्चस्व देखना चाह रहा है. लेकिन अफगानिस्तान में ऐसे बहुत से आतंकी संगठन हैं जो पाकिस्तान को पसंद नहीं करते, जो भविष्य में चीन और पाकिस्तान के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं.
बांग्लादेश में पाकिस्तान की खुफिया विभाग आईएसआई सक्रिय
सच तो यह है कि, अफगानिस्तान में सत्ता-बदल खेल कि दुष्परिणाम बांग्लादेश, पाकिस्तान और भारत में भी देखने को मिलेगा. इन राष्ट्रों में अफगान शरणार्थियों के दबाव बढ़ने की संभावना है. कोरोना काल में आर्थिक तंगी से गुजरते इन राष्ट्रों की आर्थिक स्थिति शरणार्थियों के कारण और दयनीय हो सकती है. इन परिस्थितियों में विशेषकर बांग्लादेश और भारत में आतंकवादी हमलों की संभावनाओं को नजरंदाज नहीं किया जा सकता. 1971 का बदला लेने के लिए पाकिस्तान की खुफिया विभाग आईएसआई बांग्लादेश में पहले से ही सक्रिय है. अफगानिस्तान की घटना के बाद बांग्लादेश में अलगाववाद और कट्टरता फिर से सर उठा सकते हैं. बांग्लादेश सरकार अगर समय रहते सचेत नहीं हुई तो बांग्लादेश को इसका हर्जाना भरना पड़ेगा.
शरणार्थियों के रूप में भारत में आईएसआई एजेंट भेज सकता है पाकिस्तान
अफगानिस्तान के तख्तापलट को पाकिस्तान सरकार, पाकिस्तानी खुफिया विभाग आईएसआई के जीत के रूप में देख रही है. अफगानिस्तान सैनिकों द्वारा मारे गए तालिबानियों के शरीर से पाकिस्तानी सैनिकों और आईएसआई एजेंटों के आईकार्ड मिले हैं, जो तालिबान के भेष में अफगानिस्तान में लड़ रहे थे. विशेषज्ञों का कहना है, अफगानिस्तान कि वर्तमान स्थिती का लाभ उठाते हुए पाकिस्तान अपने आईएसआई एजेंट्स को अफगानी शरणार्थियों की आड़ में विभिन्न देशो में भेजने का प्रयास कर रहा है, विशेष तौर पर पाकिस्तान की नजर भारत और बांग्लादेश पर है. भारत और बांग्लादेश की सरकार को सचेत रहने की आवश्यकता है.
अफगानिस्तान में कोरोना
विश्व आज कोरोना-त्रासदी से जूझ रहा है. संभावित कोरोना की तीसरी लहर को रोकने के लिए भारत प्रयास कर रहा है. तालिबान द्वारा अफगानिस्तान अधिग्रहण करने से पहले ही, अफगानिस्तान सूखे, भूख और कोरोना वायरस रोग सहित कई समस्याओं से जूझ रहा था. अफगानिस्तान में तेजी से कोरोना फैल रहा है. अमेरिकी सैनिकों की वापसी से उत्पन्न परिस्थिति के कारण अफगानिस्तान की चिकित्सा व्यवस्था पूर्णतः पतनावस्था की कगार पर पहुंच गई है. इस अवस्था में कोरोना रोगियों का चिकित्सा अफगानिस्तान में ना के बराबर है.
16 जुलाई 2021 तक, देश के सभी 34 प्रांतों में 671,455 परीक्षणों में से 139,051 सकारात्मक मामलों की पुष्टि हुई है, जिसमें 86,219 ठीक हो चुके हैं और 6,072 मौतें हुई हैं. अफगानिस्तान में काबुल प्रांत में सबसे अधिक 18,896 COVID-19 मामले हैं, इसके बाद हेरात में 9,343 मामले हैं, और फिर बल्ख में 3,431 मामले हैं. हालांकि, 5 अगस्त 2020 को, सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्रालय के एक आधिकारिक सर्वेक्षण ने बताया कि देश की लगभग एक तिहाई आबादी कोरोना से प्रभावित हुई है.
अफगानिस्तान में 16 जून को कोरोना संक्रमण के कूल 2,313 नए मामले थे, जो संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के हिसाब से "महामारी की शुरुआत के बाद से एक ही दिन में दर्ज किए गए नए मामलों की सबसे अधिक संख्या थी." संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि हाल के हफ्तों में परीक्षण किए जा रहे सभी लोगों में से लगभग आधे 42 फीसदी कोरोनवायरस से संक्रमित हैं. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, कम परीक्षण दर और राष्ट्रीय मृत्यु रजिस्टर की कमी के कारण, अफगानिस्तान में COVID-19 से होने वाली मौतों की पुष्टि कम रिपोर्ट की गई है.
अफगान शरणार्थियों से कोरोना संक्रमण फैलने की संभावना
किसी भी देश के लिए कोरोना से मुक्ति एक अघोषित युद्ध है. विश्व के किसी भी राष्ट्र की स्वास्थ्य और चिकित्सा व्यवस्था इस प्रकार की बीमारी से जूझने के लिए तैयार नहीं थी और यही कारण है कि प्रभावित राष्ट्रों में कोरोना संक्रमण के दौरान हाहाकार और मौत का तांडव देखने को मिला. अफगानिस्तान से पलायन के दौरान काबुल हवाई अड्डे पर किसी का भी परीक्षण संभव नहीं हो सका. अफगानिस्तान से आए यात्री और शरणार्थियों का कोरोना परीक्षण युद्ध स्तर पर होना अति आवश्यक है, अन्यथा देश में फिर से कोरोना संक्रमण फैलने की संभावना है. क्योंकि सम्पूर्ण वैक्सीनेशन जब तक संभव नहीं 'ब्रेक द चेन' फॉर्मूला को अपनाना होगा और कोरोना से संबंधित सभी सरकारी नियमों का पालन करना होगा. इन शरणार्थियों को सुरक्षा की दृष्टि से 14 दिन के एकांतवास में रखना जरूरी है.
अफगानिस्तान की घटनाओं पर भारत सरकार अपनी नजर रखे हुए है. मानव अधिकार को लेकर भारत सदैव मुखर रहा है. भारत ने 1979 से पारंपरिक रूप से अफगानिस्तान शरणार्थियों की मेजबानी की है. कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि भारत शरणार्थियों को शरण दे रहा है, यह सरकार की सद्भावना है, लेकिन भारत अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के तहत शरण देने के लिए बाध्य नहीं है. क्योंकि भारत 1951 के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन या 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, न ही भारत की कोई शरणार्थी नीति या स्वयं का शरणार्थी कानून है. वर्तमान परिस्थिति में, अफगानिस्तान शरणार्थियों को लेकर भारत जो भी कदम उठाएगा वो भारत और अफगानिस्तान संपर्क को ध्यान में रखकर ही लिया जाएगा.