अब 2022 के लिए चुनौती उस परिवर्तन को एक संस्कृति में बदलना है, जिसे 'चेंज 2.0' कहते हैं
ये शब्द सुनकर आपके दिमाग में क्या आया
एन. रघुरामन। मदुरई। ये शब्द सुनकर आपके दिमाग में क्या आया? अगर आपको पता है कि ये एक शहर का नाम है तो फिर आपको यहां का विश्वविख्यात मीनाक्षी मंदिर याद होगा। तमिलनाडु के इस मंदिरों वाले शहर की यात्रा करने वालों में कुछ लोगों को यह यहां के आपराधिक रिकॉर्ड के कारण याद होगा। पर चंद लोग ही जानते होंगे कि ये आईटी इंडस्ट्री का नया गढ़ है! ताज्जुब हुआ? हां, आपने सही पढ़ा।
जैसे एनआरआई कोविड के बाद बिजनेस शुरू करने के लिए भारत लौट रहे हैं, कई स्थानीय टेकीज़ लंबे समय से स्टार्टअप शुरू करने मदुरई लौट रहे हैं। वैसे यहां परंपरागत बिजनेस जैसे मदुरा कोट्स, थियागराजर मिल्स, टीवीएस ग्रुप लंबे वक्त से हैं, पर 5400 कर्मचारियों के साथ आईटी फर्म एचसीएल व साल 2000 के बीच आए हनीवैल जैसे बड़े नियोक्ताओं ने टेक कंपनियों के फलने-फूलने के बीज बो दिए हैं।
चूंकि टीयर-2 शहरों जैसे कोयम्बटूर-इंदौर की तुलना में यहां नौकरी देने या साथ बनाए रखने की लागत 20% कम है, अधिकांश टेक कंपनियां फ्रेशर्स लुभाने के लिए क्षेत्रीय ऑफिस बनाने लगी हैं। लोकल टैलेंट एक बार नौकरी मिलने के बाद रुकने में खुश रहता है। यही कारण है कि 2 टियर शहरों में लंबे समय में काम छोड़ने की दर 20% और यहां 4% है।
दिलचस्प रूप से आईआईटी-एनआईटी नहीं होने के बावजूद, कई कम जाने-पहचाने एमबीए-इंजीनियरिंग कॉलेज इन कंपनियों के लिए प्रतिभाएं निखारने पर फोकस करते हुए खुद को आईटी इंडस्ट्री नर्सरी के रूप में बदल रहे हैं। शहर में 2014 से टेक्नोलॉजी बिजनेस इनक्यूबेटर है और इसमें विभिन्न क्षेत्रों के 25 टेक स्टार्टअप काम कर रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय उड़ानों की बुरी कनेक्टिविटी के बावजूद, हर जगह बिछी गुणवत्तापूर्ण सड़कों का नेटवर्क क्लाइंट्स लाने में मदद कर रहा है। कुछ सालों पहले खाली रहने वाले आईटी पार्क आज गुलज़ार हैं। कई कंपनियों में जैसे गोफ्रुगल का 15 हजार वर्ग फुट का दफ्तर और हाल में 65 हजार वर्ग फुट में शुरू हुए नीयामो के ऑफिस के कारण इसका 60% हिस्सा पहले ही भर चुका है।
मिसाल के तौर पर 'ग्रेट इनोवस' लेते हैं, स्थानीय सीरियल आंत्रप्रेन्योर कल्याण सुंदरम की इस कंपनी को ज्यादा लोग नहीं जानते होंगे। अपने घर की गैराज से कई टेक स्टार्टअप शुरू करने के लिए उसने अमेरिका की नौकरी ठुकरा दी। उसकी एक आईपी को ब्लैकबैरी ने खरीद लिया। उसकी कंपनी दुनियाभर के 300 से ज्यादा क्लाइंट्स को सर्विस देती है, इसमें हनीवैल, बेस्टबाय, एलएंडटी भी शामिल हैं।
इन अलग-अलग लोगों के प्रयासों को बाद में टेक कंपनियों ने पहचाना और आईटी मानसिकता में आई लय बरकरार रखते हुए कंपनियों ने मंदिरों के इस शहर में आईटी संस्कृति विकसित कर दी, इसलिए इसे आज तमिलनाडु की सिलिकॉन वैली कहा जा रहा है। सार्वजनिक स्थानों पर थूंकने के िखलाफ बनाए कानूनों को लागू कराने में जिम्मेदार तंत्र का सहयोग नहीं मिलता, इसलिए कानून अमल में नहीं आ पाते।
सख्त निगरानी हो, तो सिंगापुर जैसे शहर बनते हैं। कुछ बदलना, फिर उस बदलाव को खो देना मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावहीन बना देता है, चाहे इकोनॉमी विकसित करने का मामला हो या स्वच्छ शहर का दर्जा हो। अगर उसी जगह पहुंचना चाहते हैं, तो यह सब शुरू ही क्यों किया जाए? समय के साथ बदलने और उस बदलाव को खो देने के दुष्चक्र में फंसना हमेशा थकाऊ होता है। वास्तविक बदलावों की निगरानी और लंबे समय तक बने रहने पर ही वे संस्कृति बनते हैं।