Novel: अब मिनी को नए स्कूल वाले घर मे शिफ्ट होना था। एक दिन पापा ने कहा- " मिनी ! आखिर तुम्हारे दहेज़ को हम लोग कब तक संभाल कर रखेंगे ? अब तुम ससुराल के करीब जा रही हो तो सारा सामान लेते हुए जाओ।" मिनी ने पापा से तो कुछ नही कहा पर मिनी को आभास हो गया था कि पापा ये बात ऐसे ही नही कह रहे है। मिनी ने माँ से कहा-- " माँ ! आप ही बताइये, जिस दहेज़ को मेरे पूरे ससुराल वाले छोड़कर गए है उसे मैं कैसे ले कर जाऊँ ?" माँ ने पापा से मिनी की बातें कह दी। पापा जी को गुस्सा आ गया। पापा जी ने बहुत सख्त आदेश दे दिया कि अब तुम्हारी माँ तुम्हारे साथ नही जाएगी। मिनी और मां दोनो इस फरमान से स्तब्ध थे पर पापा की बातो को काटने की हिम्मत किसी मे नही थी। पता नही पापा मिनी के ससुराल वालों के सामने क्यों इतने खामोश रहे, उन्होंने क्यों इतना बर्दाश्त किया ये मिनी के लिए आठवें आश्चर्य से कम नही था। उसका एक ही कारण मिनी को समझ मे आता था कि चाचा जी नही थे जिनके ऊपर सामाजिक कार्यो की पूरी जिम्मेदारी हुआ करती थी। माँ ने अपनी तरफ से समझाने की कोशिश की पर नही, पापा ने जो कह दिया वो कह दिया।
अब मिनी क्या करती। उसने एक अंकल जी कहा- "अंकल जी! क्या आप मेरे लिए एक गाड़ी बुक कर सकते है?" अंकल जी ने सारी बाते सुनी। उनकी भी 3 बेटियां थी। बेटियों से उन्हें बहुत प्रेम था। उन्होंने कहा- मिनी ! तुम चिंता मत करो। मैं तुम्हारे साथ चलूंगा।" पर मां मिनी को अकेले कैसे भेजती। मां पापा से विनती करने लगी कि उन्हें मिनी के साथ कुछ दिन के लिए जाने दे क्योंकि बच्चा भी अभी छोटा है पर पापा का गुस्सा शांत नही हुआ। मिनी ने कुछ ही सामान गाड़ी में रखे और जाने के लिए विदा मांगने लगी। मां से रहा नही गया। माँ ने पापा से फिर कहा कि मैं मिनी को घर तक पहुँचा के आ जाऊंगी , मुझे जाने दीजिए।
पापा क्रोध से आग बबूला हो रहे थे। पापा ने कहा- "अगर तुम पहुंचा के तुरंत उसी पांव वापस नही आई तो कभी मेरे घर की चौखट पर पांव मत रखना। हमेशा के लिए मेरे घर के दरवाजे तुम्हारे लिए बंद हो जाएंगे।" बड़े ही दुखी मन से मिनी और मां दोनो घर से निकले। साथ मे अंकल जी और ड्राईवर। केवल एक स्टोव और कुछ बर्तन ही मिनी ने रखे थे और एक चटाई एक दो चादर , अपने और बच्चे के कुछ कपड़े। गांव पहुचते तक रात 11 बज रहे थे। हर तरफ अंधेरा था। कही स्ट्रीट लाइट भी नही जल रही थी। करेंट ऑफ था। जिस घर मे शिफ्ट होना था वहाँ अम्मा बाबूजी और उनके दो बेटे रहते थे। सभी सो चुके थे। दरवाजा खटखटाए ,उन्हें जगाए और अंधेरे में ही एक कमरे में सामान उतारे और मिनी को तब और बड़ी तकलीफ हुई जब माँ उस घर मे बैठी भी नही और पापा के डर में ,उसी पाँव जैसे पापा का आदेश था , घर वापस लौट गई।
मिनी ने एक दीपक की रोशनी में चटाई बिछाई, चादर डाले और बच्चे को लेकर रोते -रोते सो गई। मिनी के पास और कोई रास्ता ही कहाँ था जो वो और कुछ करती।
मिनी जैसे ही प्राइमरी से मिडिल स्कूल पहुंची, दादा जी माँ से कहते थे कि अब हमारी एक ही लाडली नातिन है उसकी शादी यही गांव घर मे कर देते , हमारी नज़रों के आगे रहेगी तो अच्छा रहेगा। माँ कहती- "बापरे! इतनी छोटी बच्ची की शादी मैं नही करूंगी बाबा।" फिर भी दादा जी ने बहुत प्रयास किये, कई जगह शादी की बाते भी चलाई। माँ ने मिनी को बताया था कि उनकी शादी तभी हो गई थी जब वो पांचवी कक्षा में थी। माँ ने मिनी को बचा लिया। बड़ी मुश्किल से मिनी हाई स्कूल में पहुची। अब घर के सारे लोग शादी के लिए तैयारियां करने लगे। पापा जी तभी बी.एस.पी. की नौकरी से सेवा निवृत्त होकर आए थे। जैसे ही मिनी बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण की , पापा जी इतने सख्त हो गए , उन्होंने साफ कह दिया कि अब मिनी की शादी करनी है इसलिए मिनी को आगे नही पढ़ाएंगे।
मिनी के विद्यालय में जब खबर पहुची कि मिनी आगे पढ़ाई नही कर रही तो सभी शिक्षक घर आये , गनीमत उस समय पापा घर पे नही थे। मां से बाते हुई। मां ने उन्हें बताया कि मिनी के पापा की बातों को टालना बहुत कठिन है। तब सभी दुखी मन से वापस चले गए थे।
मिनी ने माँ से कहा कि मैं घर बैठे क्या करूंगी इसलिये मोहल्ले के बच्चों को ही पढ़ा लेती हूँ । मां ने सोचा ठीक है मिनी का भी मन लगा रहेगा।
कुछ दिनों बाद जब प्राचार्य महोदय को पता चला तो मिनी के लिए संदेशा भिजवाया कि हमारे विद्यालय में शिक्षको की कमी है इसलिए अगर समय मिले तो विद्यालय में अध्यापन के लिए आ सकती हो और ये हमारे विद्यालय के लिए खुशी की बात होगी।
मिनी ने माँ से पूछा और सहर्ष निःशुल्क अध्यापन के लिए तैयार हो गयी। माँ ने भी इज़ाज़त दे दी। वहां मिनी के सभी शिक्षकों को बहुत दुःख होता था कि आखिर मिनी को आगे पढ़ने से क्यों रोका जा रहा है?
सभी शिक्षकों ने मिलकर आखिर मिनी को कॉलेज़ का फॉर्म भरवा दिया, और बी. ए. की किताबें भी उपलब्ध करवा दी क्योंकि वहाँ बायो ग्रुप नही था। मिनी बायो ग्रुप के पहले बेच की स्टूडेंट थी। मिनी अपने शिक्षक शिक्षिकाओ की भी लाडली थी।
कुछ दिनों के बाद ये बात मोहल्ले में आग की तरह फैल गई कि मिनी को सभी शिक्षकों ने पैसे देकर कॉलेज में एडमिशन दिलाया है। ये बात मोहल्ले के एक मामा जी को जो बड़े पापा के भी रिश्ते में थे नागवार गुजरी। उन्होंने जाकर चाचा जी को बता दी और ये भी कह दिया कि बड़े फैक्टरी मालिक बनते हो और तुम्हे पता भी नही है कि तुम्हारी भतीजी चंदे से पढ़ाई कर रही है तुम्हे शर्म आनी चाहिए। चाचा जी सुनकर अवाक हो गए। उनकी इंडस्ट्रियल एरिया में बहुत बड़ी फैक्ट्री थी जहाँ मिक्सचर मशीन बॉयलर प्लांट वगैरह बनते थे। लगभग 100 मजदूरों के रहने के लिए चाचा जी ने अलग से बहुत सारे ब्लॉक बनवाये थे।
दूसरे ही दिन चाचा जी मिनी को लेने घर पहुच गए। और मिनी को लेकर प्राचार्य महोदय के पास चले गए और सर से बोले कि मैं कल ही मिनी को अपने साथ लेकर जा रहा हूँ अब मिनी मेरे पास ही रहकर पढ़ाई करेगी। प्राचार्य महोदय और सभी शिक्षक शिक्षिकाएं खुश हो गयी।
एडमिशन का समय समाप्त हो चुका था फिर भी चाचा जी ने बड़ी मशक्कत के बाद मिनी का एडमिशन बी.एस सी. के लिए करवा दिया। अब हॉस्टल में भी एडमिशन दिलाना था क्योंकि इंडस्ट्रियल एरिया से कॉलेज आना बहुत मुश्किल था।
दादा जी के देहांत को एक वर्ष भी पूरे नही हुए थे। पूरे वर्ष भर घर मे दीपक भी जलाना था। चाचा जी ने कहा कि जब तक हॉस्टल नही मिल जाता तब तक एक घर किराए पर लेकर रहना होगा। अब माँ क्या करे? माँ ने तब बहुत ही हिम्मत का काम किया। वो सारे रस्मो रिवाज़ छोड़ कर मिनी के साथ किराए के घर मे शिफ्ट हो गयी। तब मां को समाज के लोगो से बहुत ताने सुनने पड़े थे।
किसी ने कहा कि अभी ससुर जी के देहांत को एक वर्ष भी पूरे नही हुए, घर मे दीपक जलाना छोड़कर बेटी को पढ़ाने गयी है। किसी ने कहा पता नही बेटी को इतना पढ़ाकर क्या करेगी, वो तो पराया धन है। किसी ने कुछ, किसी ने कुछ । मां ने तब किसी की बातों में ध्यान नही दिया था। बस इतना कहती थी -"मिनी! तू मेरी जान है , मैं तेरे बिना नही रह सकती"..........क्रमशः
रश्मि रामेश्वर गुप्ता
बिलासपुर छत्तीसगढ़