उपन्यास: Part 22- संस्था प्रमुख

Update: 2024-09-30 11:21 GMT
Novel: बिटिया छोटी थी उसकी तबियत खराब होने लगी। मिनी ने उसे डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने कहा - "मुझे आपसे अकेले में बाते करनी है।" बिटिया और सर दोनो बाहर हो गए। डॉक्टर चाइल्ड स्पेसलिस्ट थी और मिनी से बहुत पहले से ही परिचित थी पर उन्हें वर्तमान का पता नही था। उन्होंने साफ-साफ पूछा कि आप अपने बच्चों के तरफ ध्यान नही दे रही हैं आखिर क्यों? मिनी ने माँ की स्थिति बताई। डॉक्टर ने मिनी को बहुत समझाया । वो कहने लगी-" देखिए! मैं ये नही कहती कि आप मां की सेवा मत कीजिये पर इतना जरूर कहूंगी कि मां अब बुजुर्ग हो गई है। कब तक आपका साथ देंगी? आखिर एक न एक दिन मां से आपको बिछड़ना होगा पर आप अपने बच्चों को जो इग्नोर कर रही हैं वो आपको बहुत ही मंहगा पड़ने वाला है।अभी भी समय है आप अपने बच्चों को संभालिये।"
मिनी के तो जैसे होश गायब होने लगे। अब उसे लगने लगा कि मैं कहाँ से इतना समय लाऊँ? माँ को बिस्तर पर ही ब्रश करवाना, नहलाना , खाना खिलाना, मालिश करना, खाना बनाना, टिफिन बनाना, अगर कोई मां से मिलने आ रहा है तो उन्हें समय देना 11.30 से 5.00 बजे तक स्कूल का समय, 20 मिनिट के दीर्घ अवकाश में फिर घर आना फिर जाना । आखिर समय लाये भी तो कहाँ से ? फिर भी बच्चों को भी संभालना जरूरी था। मिनी कोशिश करती कि बच्चों को पहले से अधिक समय दे।
दसवीं, बारहवीं बोर्ड की परीक्षा शुरू हो गयी। बेटे का पहला ही पेपर बिगड़ गया। उस समय गणित का पेपर इतना कठिन आया था कि विधानसभा में भी प्रश्न उठाया गया था कि ऐसा क्यों? अब जो होशियार बच्चे होते हैं उन्हें एक-एक नंबर की चिन्ता सताती रहती है। बेटा इतना मायूस हुआ कि मिनी का स्कूल जाना दूभर हो गया। प्राचार्य महोदया, मिनी के चेहरे पढ़ लिया करती थी। उन्होंने पूछा - "आखिर बात क्या है ?" मिनी की हालत उनसे छुपी नही थी। उन्होंने समझाया कि आप बेटे के साथ एग्जाम होते तक रहिये देखना वो आपके साथ रहेगा तो खुद को संभाल
लेगा । आखिर उसके भविष्य का
सवाल है। 
मिनी ने उनकी बातों को स्वीकार किया। 15 दिनों का अवकाश लेकर मिनी घर में रही। इस बीच विद्यालय के सभी सदस्य मिनी का , बच्चों का हाल जानने बराबर घर आते रहे। बच्चों का उत्साह वर्धन करते रहे। कितना पारिवारिक माहौल था वो।वास्तव में संस्था प्रमुख की मिनी के जीवन में इतनी अहम भूमिका थी कि वो अधिकार पूर्वक कहती थी- "मिनी! जब भी तुम्हारा मन भर आये न तब तुम मेरे पास बैठकर जी भर के रो लिया करो। तुम्हारा मन हल्का हो जाएगा।".........क्रमशः
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