इसमें नगरपालिका की खास चूक है और टाऊन प्लानिंग में बहुमंजिला इमारतों का प्रावधान क्यों रखा गया? दो-तीन मंजिला घरों को अच्छी बुनियाद के बलबूते पर लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। शिमला में जितनी जमीन नहीं है, उससे ज्यादा घर हैं। पहाड़ी शहरों का जिस तीव्रता से शहरीकरण हुआ है, उससे वहां पर हर तरह का भवन निर्माण हुआ है। शिमला, कुल्लू, सोलन, मंडी, बिलासपुर, मनाली में इतने घरों का निर्माण हुआ है कि आप कल्पना नहीं कर सकते। कुल्लू में सुल्तानपुर, अखाड़ा बाजार, ढालपुर, गांधीनगर, सरवरी, सब जगहों पर इतने घर हैं कि सूरज की रौशनी अब वहां जाने से कतराने लगी है। बढ़ती हुई आबादी और बड़े परिवारों का टूट कर बंट जाना भी इसके लिए जिम्मेदार है।
बहुत से रियल एस्टेट शार्क इन जगहों को अपना निशाना बना रहे हैं, क्योंकि हिमाचल में गैर निवासी जगह नहीं खरीद सकते। लेकिन यह प्रापर्टी डीलर्स किसी तरह जमीन का एक टुकड़ा हासिल करने में सफल हो जाते हैं और उस पर बहुमंजिला अपार्टमेंट्स बनाकर जो लोग पहाड़ पर अपना घर बनाकर रहना चाहते हैं, वे खरीद लेते हैं। अपार्टमेंट्स का यह रिवाज कुल्लू, सोलन, मंडी, बिलासपुर, सुंदरनगर, परवाणू तथा दूसरे इलाकों में जंगल में लगी आग की तरह फैल रहा है। इसको रोका जाना चाहिए। आने वाले समय में पलायन और पहाड़ों में बसने की लालसा ऐसे बहुमंजिला निर्माण को और बढ़ावा दे सकती है। बढ़ती जनसंख्या, अंधाधुंध भवन निर्माण और विकास अपने साथ कई और जरूरतें लेकर आता है। सरकार को आने वाले समय में बहुमंजिला इमारतों के निर्माण पर रोक लगानी होगी। बड़े शहरों के आसपास के इलाकों को विकसित करने का प्रावधान करना होगा। नगरपालिका को यह देखना होगा कि ऐसे भवन जो जनता के लिए खतरा हो सकते हैं या कभी भी गिर सकते हैं, उनका संज्ञान लेना होगा ताकि उनमें रहने वाले लोगों को बचाया जा सके, जैसे शिमला में इमारत गिरने से पहले किया गया। अवैध निर्माण को रोकना होगा और पहाड़ों में तीन मंजिल से ज्यादा ऊंचाई वाले घरों को निर्माण की मंजूरी किसी भी सूरत में नहीं देनी चाहिए। सरकार को इस विषय पर बहुत ध्यान देकर सोचने की आवश्यकता है, वरना शिमला की तरह कई शहर बारूद के ढेर पर बैठे हैं।
रमेश पठानिया
स्वतंत्र लेखक