'पंजाब में नया सूरज'

पंजाब विधानसभा चुनावों में इस बार आम आदमी पार्टी ने जो कमाल दिखाया है उसकी अपेक्षा संभवतः खुद इस पार्टी के नेताओं तक को नहीं थी

Update: 2022-03-17 03:31 GMT

­आदित्य नारायण चोपड़ा: पंजाब विधानसभा चुनावों में इस बार आम आदमी पार्टी ने जो कमाल दिखाया है उसकी अपेक्षा संभवतः खुद इस पार्टी के नेताओं तक को नहीं थी मगर कुल 117 सीटों में से 92 सीटें आप को देकर पंजाबियों ने विजयी पार्टी के सर्वेसर्वा दिल्ली के मुख्यमन्त्री अऱविन्द केजरीवाल पर यकीन किया औऱ आंख मींच कर ईवीएम मशीन में झाड़ू का बटन दबा दिया। इन चुनाव परिणामों से प्रायः राजनीतिक विश्लेषकों को आश्चर्य हो रहा है मगर इसमें अचम्भे की बात इसलिए नहीं है क्योंकि पंजाबियों का मिजाज ही चमत्कार करने का रहा है। कृषि से लेकर शिक्षा औऱ विज्ञान से लेकर खेल तक के मैदान में पंजाबी अपने इस कौशल का परिचय देते रहे हैं औऱ राष्ट्र सुरक्षा के मामले में भी उनका कोई सानी नहीं रहा है। पंजाबियों के इस मिजाज की छाप राजनीति पर भी आजादी के पहले से ही नजर आती रही है। इसकी प्रमुख वजह यह है कि पंजाबियों में हमेशा कुछ नया करने की चाह रही है। लकीर का फकीर बनना उनकी कभी आदत ही नहीं रही है। उनके इस गुण की उपस्थिति हम जीवन के प्रत्येक आर्थिक व सामाजिक क्षेत्र में बखूबी देख सकते हैं। आजादी के बाद 1956 में 'पेप्सू' को समाहित करके बने पंजाब औऱ उसके बाद 1966 में हरियाणा व हिमाचल को अलग करके पुनर्गठित पंजाब राज्य में अभी तक का यह सबसे बड़ा राजनीतिक जलजला है जिसकी हुंकार ने आप पार्टी का हुकूमत में बैठा दिया है और इसके नेता भगवन्त सिंह मान को सीधे अर्श पर पहुंचाते हुए मुख्यमन्त्री बना दिया है। श्री मान ने आज शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह के पैतृक गांव खटकल कलां में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में जब अपने पद की शपथ ली तो स्पष्ट हो गया कि आगे की मंजिल बहुत आसान नहीं है और उन्हें शपथ लेते ही पंजाब के लोगों की आकांक्षाओं पर खरा उतरने के लिए रात–दिन एक करते हुए सरकार चलाने की पुरानी रवायतों को इस तरह बदलना होगा कि आम पंजाबी को उसमें अपनी हिस्सेदारी का एहसास हो। इसकी वजह यह है कि पंजाब की तबीयत ही इस तरह की है कि इसमें किसी भी क्षेत्र में दकियानूसीपन के लिए कभी कोई जगह ही नहीं रही है। मगर पिछले बीस सालों की पंजाब की जो राजनीति रही है उसमें इस राज्य ने बजाय तरक्की करने के पीछे की तरफ चाल भरी है जिसे लेकर आम पंजाबी के दिल में भारी व्यथा रही जिसका इजहार इन चुनावों में उसने घोषित रूप से किया और इस तरह किया कि भारत के हर प्रान्त के लोग चौकन्ने हो जायें। यह कोई छोटी बात नहीं है कि पंजाब की सबसे पुरानी क्षेत्रीय पार्टी अकाली दल का इस बार लगभग सफाया ही नहीं हुआ बल्कि पंजाब के महारथी कहे जाने वाले सरदार प्रकाश सिंह बादल तक अपना चुनाव आप पार्टी के प्रत्याशी से हार गये। उनकी पराजय से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोगों में पिछले कई दशकों से चली आ रही कांग्रेस-अकाली दल के बीच के राजनीतिक तरीकों के प्रति कितना रोष था। क्योंकि मुख्यमन्त्री चरणजीत सिंह चन्नी के साथ ही पूर्व मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह भी अपना चुनाव हार गये। पंजाबियों का यह स्वभाव होता है कि वे जो भी काम करते हैं 'रज के करते हैं' परन्तु साथ ही यह नीयत भी रखते हैं कि वे जिस पर विश्वास करते हैं वह अपना कार्य पूरी ईमानदारी और मेहनत के साथ इस प्रकार करें कि फराख दिली का असर दिखाई दे। आम आदमी पार्टी के मुख्यमन्त्री श्री मान को इस बात का ध्यान रखना होगा कि वह पंजाब अब तीन लाख करोड़ रु. का कर्जदार बन चुका है जिसे साठ के दशक तक भारत का 'यूरोप' माना जाता था औऱ यह स्थिति भी उसने तब प्राप्त की थी जब 1947 में बंटवारे के बाद इस राज्य की माली हालत बहुत ज्यादा खराब हो गई थी और यह भीतर तक लहूलुहान हो गया था। आज के पंजाब में नशे का माफिया एक समस्या बन चुका है और साथ ही बालू या रेत का माफिया भी अपनी हरकतें करने से बाज नहीं आ रहा है। इस राज्य का एक जमाने में अव्वल दर्जे का शिक्षा तन्त्र बिखरा हुआ है और स्वास्थ्य सेवाओं के अलावा कृषि क्षेत्र भी आगे नहीं बढ़ रहा है। हद तो यह हो चुकी है कि पिछले 20 साल में इस प्रदेश में एक भी नया बड़ा कारखाना नहीं लगा है। कोरोना काल में इस राज्य के मजबूत कहे जाने वाले मध्यम औद्योगिक क्षेत्र को भारी नुक्सान भी हुआ है। कुल मिला कर इसकी प्रगति थमी हुई है। बेरोजगारी भी बढ़ी है। इन सभी समस्याओं का हल आम आदमी पार्टी की सरकार को इस प्रकार खोजना होगा कि इस प्रदेश के नागरिक सन्तुष्ट दिखाई दे। निश्चित रूप से यह कोई आसान काम नहीं है । अतः पंजाबियों ने अपनी हसरतों का जो नया सूरज पंजाब में उगाया है उसकी रोशनी हर गांव व शहर के जरूरतमंद बन्दें तक जानी जरूरी है।


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