भारत-ब्रिटेन संबंधों की नई दिशा
भारत और ब्रिटेन दुनिया की अग्रणी और तेजी से बढ़ती आर्थिक शक्तियों में शुमार हैं। ऐसे में लिज ट्रस की निगाहें भारत पर केंद्रित रहेंगी। इस बात की पूरी संभावना है
ब्रह्मदीप अलूने: भारत और ब्रिटेन दुनिया की अग्रणी और तेजी से बढ़ती आर्थिक शक्तियों में शुमार हैं। ऐसे में लिज ट्रस की निगाहें भारत पर केंद्रित रहेंगी। इस बात की पूरी संभावना है कि लिज ट्रस भारत से होने वाले मुक्त बाजार समझौते को तुरंत हरी झंडी दे दें। भारत के लिए ब्रिटेन एक महत्त्वपूर्ण आयातक देश है। हालांकि यह भारत को बड़ी मात्रा में निर्यात भी करता रहा है, लेकिन इसमें वृद्धि के स्थान पर गिरावट आई है।
ब्रिटेन की नई प्रधानमंत्री लिज ट्रस ने करीब एक दशक पहले एक किताब लिखी थी 'ब्रिटैनिया अनचेंज्ड'। उसमें उन्होंने ब्रिटेन की मजबूती के लिए क्रांतिकारी बदलाव लाने और मुक्त बाजार की परिकल्पना की थी। उसके बाद लिज ट्रस को ब्रिटेन में संभावनाओं वाली नेता के रूप में पहचान मिली और अंतत: उन पर कंजरवेटिव पार्टी ने भी भरोसा जताया।
मगर जिस दौर में उन्होंने देश की कमान संभाली है, उनका आगे का रास्ता बेहद चुनौतीपूर्ण नजर आता है। करीब पौने सात करोड़ आबादी वले इस देश में प्रवासियों की संख्या अच्छी-खासी है और ब्रिटिश नागरिक बाहर से आए नागरिकों को लेकर आशंकित रहने लगे हैं। यूरोपियन यूनियन से अलग होने का एक कारण यह भी था कि ब्रिटेन के लोग आप्रवासन से उपजी परिस्थितियों को लेकर बैचेन हो रहे थे। ब्रेक्जिट से जनता खुश तो है, लेकिन आर्थिक समस्याओं में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है।
लिज ट्रस ने लोगों की आर्थिक नीतियों पर नाराजगी दूर करने के साथ ही 2025 में होने वाले आम चुनावों में कंजरवेटिव पार्टी को जीत दिलाने का भरोसा भी दिलाया है। ब्रिटेन में इस वर्ष मुद्रास्फीति नौ फीसद से आगे निकल गई है। नई प्रधानमंत्री को मांग और आपूर्ति में पैदा हुआ असंतुलन दूर कर वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें नियंत्रित करना होगा।
कर वृद्धि को लेकर लोग कंजरवेटिव पार्टी की नीतियों से नाराज हैं। बोरिस जानसन के इस्तीफे का एक प्रमुख कारण यह भी था। उनके कार्यकाल में राष्ट्रीय बीमा में योगदान को सवा फीसद तक बढ़ा कर कंजरवेटिव पार्टी की सरकार ने दावा किया था कि करों में वृद्धि स्वास्थ्य और सामाजिक देखरेख के क्षेत्र में लगाई जाएगी। लेबर पार्टी का कहना है कि कंजर्वेटिव सरकार द्वारा कामकाजी लोगों पर कर लागत बढ़ाया जाना, जीवन-यापन की चुनौतियों बढ़ाना है।
ब्रिटेन में बढ़ती महंगाई के कारण लोगों के पास अतिरिक्त पैसे नहीं हैं, वहीं यूरोप में जंग छिड़ी है और महामारी के प्रकोप से देश अब भी बाहर नहीं निकल पाया है। ब्रेक्जिट का असर देश में बड़ा मुद्दा है और 2025 में होने वाले आम चुनावों के पहले जनता को संतुष्ट करना उनके लिए चुनौतीपूर्ण होगा। इन सबके बीच सत्तारूढ़ कंजरवेटिव पार्टी की लोकप्रियता में लगातार कमी आई है और वह विपक्षी लेबर पार्टी से पीछे नजर आ रही है।
लिज ट्रस को कर कम करने के लिए व्यापारिक भागीदारी बढ़ानी पड़ेगी। इसलिए भारत के लिए यह बेहतर अवसर है। यूरोप में व्यापार करने के लिए भारतीय ब्रिटेन को द्वार समझते हैं, इसलिए अधिकांश भारतीय व्यापारियों ने ब्रिटेन को ठिकाना बनाया हुआ है। भारत के लिहाज से ब्रिटेन का परिवर्तन बेहद दिलचस्प है, क्योंकि पड़ोसी आर्थिक शक्तियों को लेकर इन दोनों देशों में समानता दिखाई पड़ती है।
ब्रिटेन यूरोपीय संघ से बाहर हो गया है, जबकि भारत ने भी चीन-केंद्रित क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी में शामिल होने से इनकार कर नए रास्ते खोजने की ओर तेजी से कदम बढ़ाए हैं। भारत और ब्रिटेन दुनिया की अग्रणी और तेजी से बढ़ती आर्थिक शक्तियों में शुमार हैं। ऐसे में लिज ट्रस की निगाहें भारत पर केंद्रित रहेंगी। इस बात की पूरी संभावना है कि लिज ट्रस भारत से होने वाले मुक्त बाजार समझौते को तुरंत हरी झंडी दे दें। भारत के लिए ब्रिटेन एक महत्त्वपूर्ण आयातक देश है।
हालांकि यह भारत को बड़ी मात्रा में निर्यात भी करता रहा है, लेकिन इसमें वृद्धि के स्थान पर गिरावट आई है। ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में भारत की कंपनियों की अहम भूमिका है। भारत की कई कंपनियां ब्रिटेन में काम कर रही हैं और इससे लाखों रोजगार जुड़े हुए हैं। उच्च शिक्षा की दृष्टि से भारतीय छात्रों के लिए ब्रिटेन पसंदीदा देश है। दोनों देशों के आपसी संबंधों की मजबूती में वहां रह रहे करीब पंद्रह लाख प्रवासी भारतीयों की अहम भूमिका है। भारत से संबंधों को मजबूत करके लिज दोहरा लाभ उठा सकती हैं।
भारत और ब्रिटेन के बीच रणनीतिक संबंध बढ़ने की असीम संभावनाएं हैं। ब्रिटेन का महत्त्वपूर्ण भागीदार अमेरिका है और बीते कुछ वर्षों में अमेरिका और भारत के संबंधों में गर्मजोशी देखी गई है। खासकर हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन की चुनौती से निपटने के लिए भारत और अमेरिका में सामरिक सहयोग बढ़ा है और अब इसमें ब्रिटेन भी शामिल हो गया है। भारत और ब्रिटेन भी समुद्री क्षेत्र में अपने सहयोग को मजबूत करने पर सहमत हुए हैं और दक्षिण-पूर्व एशिया में समुद्री सुरक्षा विषयों पर यह भागीदारी ज्यादा मजबूत हो सकती है।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बाजार हिस्सेदारी और रक्षा विषयों पर 2015 में दोनों देशों के बीच समझौते हुए। भारत से संबंधों को मजबूत करके ब्रिटेन हिंद-प्रशांत क्षेत्र की विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में अवसरों का लाभ उठाने की कोशिश कर रहा है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र से लगे अड़तीस देशों में दुनिया की करीब पैंसठ फीसद आबादी रहती है। विकासशील देशों के प्रमुख आर्थिक संगठन आसियान की आर्थिक महत्त्वाकांक्षी भागीदारियां, असीम खनिज संसाधनों पर चीन की नजर, कई देशों के बंदरगाहों पर कब्जा करने की चीन की सामरिक नीति तथा क्वाड की रणनीतिक साझेदारी इस क्षेत्र के प्रमुख राजनीतिक और सामरिक प्रतिद्वंद्विता से जुड़े मुद्दे रहे हैं।
चीनी प्रभाव के अभूतपूर्व वैश्विक खतरों से निपटने के लिए अमेरिका हिंद प्रशांत क्षेत्र में संभावनाएं निरंतर तलाश रहा है। अमेरिका को लगता है कि चीन को नियंत्रित और संतुलित करने के लिए एशिया को कूटनीति के केंद्र में रखना होगा। इस नीति पर बराक ओबामा, ट्रंप के बाद अब बाइडेन भी आगे बढ़ रहे हैं। अमेरिका रणनीतिक भागीदारी के साथ आर्थिक और कारोबारी नीतियों पर आगे बढ़ना चाहता है। इसीलिए क्वाड के बाद अब उसने इंडो-पैसिफिक इकोनामिक फ्रेमवर्क की रणनीति पर आगे बढ़ने की बात कही है, जिसमें व्यापारिक सुविधाओं के साथ आपसी सहयोग बढ़ाना है।
इस वर्ष भारत और ब्रिटेन के बीच जो प्रमुख समझौते हुए थे, उनमें ब्रिटेन द्वारा नए लड़ाकू विमानों की प्रौद्योगिकी और नौवहन प्रौद्योगिकी पर भारत के साथ सहयोग और सुरक्षा सहयोग में बदलाव लाने की प्रतिबद्धता पर जोर दिया गया था। इसके साथ ही मुक्त, खुला और सुरक्षित हिंद-प्रशांत को समर्थन देने के लिए सहयोग और संपर्क बढ़ाने की बात कही गई थी। दोनों प्रधानमंत्रियों ने रोडमैप 2030 लागू करने के प्रति प्रतिबद्धता जताते हुए द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करने पर जोर दिया था।
भारत की असल चिंता चीन है। सीमा पर तनाव के बाद भी भारत की व्यापार को लेकर चीन पर निर्भरता कम नहीं हो रही है और भारत इस असंतुलन को दूर करना चाहता है। भारत अब भी चीन से सबसे अधिक चीजें आयात कर रहा है। मेक इन इंडिया में ब्रिटिश निवेश बढ़ सकता है और भारत के लिए यह मुफीद भी होगा। अमेरिका हिंद प्रशांत क्षेत्र में सप्लाई चेन की मजबूती और डिजिटल इकोनामी पर रणनीतिक सहयोग चाहता है।
इसमें भारत के साथ ब्रिटेन की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। हिंद प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका की चीनी खतरे से निपटने और व्यापार में भागीदारी बढ़ाने के लिए आइपीईएफ की रणनीतिक योजना को आगे बढ़ाया है, जिसमें कुल तेरह देश अमेरिका, आस्ट्रेलिया, ब्रूनेई, भारत, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, न्यूजीलैंड, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और विएतनाम शामिल हैं। इसमें से अधिकांश देशों के बाजार पर चीन का गहरा प्रभाव है। ब्रिटेन चीन पर इन देशों की निर्भरता कम करके स्वयं के लिए विकल्प तलाश रहा है। लिज ट्रस के लिए अपने देश को मजबूत करने के कई अवसर हैं और उन्हें आगे बढ़ कर इन अवसरों का फायदा उठाना होगा।