किसी महामारी से जूझते हुए समाज में अगर चिकित्सकों को एक बेवजह के विवाद में उलझ जाना पडे़, तो इसे कोई अच्छा लक्षण नहीं माना जा सकता। योगगुरु रामदेव ने आधुनिक चिकित्सा पद्धति को लेकर जो बयान दिए, और उनसे जो विवाद खड़ा हुआ है, वह ऐसा ही विवाद है। रामदेव के आरोपों का जवाब आधुनिक चिकित्सकों के तमाम संगठनों ने दिया और यह मांग की कि वह माफी मांगें। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवद्र्धन ने, जो खुद एक ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉक्टर हैं, योगगुरु रामदेव से आग्रह किया और रामदेव ने अपने बयान पर खेद भी व्यक्त किया, लेकिन यह विवाद थमा नहीं है। इस वक्त अगर किसी पेशे के लोग सबसे ज्यादा खतरा उठा रहे हैं, तो वह डॉक्टर ही हैं, जो दिन में कई-कई घंटे कोरोना मरीजों के इलाज में जुटे रहते हैं। देश भर से कई सौ डॉक्टरों की कोरोना से मौत की खबरें आई हैं, बल्कि दुनिया भर में इस महामारी से बहुत डॉक्टर जान गंवा चुके हैं। ऐसी स्थिति में उनके या उनके काम के बारें में विवादास्पद बातें करने से बचा जा सकता था; बचने की जरूरत है। ऐसी बातें करना न सिर्फ डॉक्टरों के मनोबल को गिराना है, बल्कि मरीजों के मन में भी इनसे संदेह पैदा होता है।
भारत में पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों का बहुत सम्मान है और उनके प्रति समाज में काफी गहरा विश्वास है। इसी वजह से भारत उन कुछ देशों में से एक है, जहां वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों को भी मान्यता मिली हुई है। मगर यह भी सच है कि परंपरागत ज्ञान या अनुभव पर आधारित चिकित्सा पद्धतियों में बहुत कुछ मूल्यवान है, तो उनकी सीमाएं भी बहुत हैं, क्योंकि वे तब विकसित हुईं, जब सूक्ष्म जांच-परख के तरीके और उपकरण नहीं थे। आम तौर पर भारतीय जन इस बात को सहज रूप से जानता है, और यह समझता है कि कब उसे डॉक्टर या अस्पताल की शरण में जाने की जरूरत है। दूसरी तरफ, रामदेव जैसे योग व आयुर्वेद के प्रचारकों का प्रभाव भी समाज में काफी है, इसलिए जब वह सनसनीखेज दावे करते हैं या कोई आरोप लगाते हैं, तब उसका गलत असर हो सकता है। यह सही है कि कोरोना का अक्सीर इलाज आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में नहीं है, मगर चिकित्सा वैज्ञानिकों को यह भी मालूम है कि उनके ज्ञान की सीमा कहां है और वे उसके आगे बढ़ने की कोशिश लगातार कर रहे हैं। कोरोना के मरीजों के इलाज में पिछले एक साल में बहुत तरक्की हुई है। दूसरे, कोरोना के गंभीर मरीजों को बचा सकने का जितना भी सामथ्र्य है, वह आधुनिक चिकित्सा में ही है। अगर किसी मरीज का ऑक्सीजन का स्तर एक हद से नीचे चला गया, तो वह किसी काढे़ या प्राणायाम से नहीं ठीक हो सकता, उसे ऑक्सीजन ही देना होगा। कोरोना एक ऐसी बीमारी है, जिसमें नब्बे प्रतिशत से ज्यादा मरीज अपने आप ठीक हो जाते हैं, चाहे वे कोई भी इलाज करें या न करें। इसलिए इसके बारे में अवैज्ञानिक दावे करना आसान है। लेकिन हमें यह समझना जरूरी है कि सवाल किसी पद्धति या व्यक्ति-संस्था की प्रतिष्ठा का नहीं, लोगों की सेहत का है, इसलिए थोड़ा संयम बरतना ठीक होगा। फिर अतिरंजित दावों से आयुर्वेद या परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों की विश्वसनीयता कम ही होती है। इसलिए अपनी सीमाओं को समझना सबके हित में है।