मुश्किल में ममता
बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाले में ईडी द्वारा ममता सरकार के मंत्री पार्थ चटर्जी की गिरफ्तारी और उनकी करीबी अर्पिता मुखर्जी के घर से लगभग इक्कीस करोड़ रुपए की बरामदगी हैरानी करने वाली है।
Written by जनसत्ता: बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाले में ईडी द्वारा ममता सरकार के मंत्री पार्थ चटर्जी की गिरफ्तारी और उनकी करीबी अर्पिता मुखर्जी के घर से लगभग इक्कीस करोड़ रुपए की बरामदगी हैरानी करने वाली है। ईडी के अनुसार यह पैसा शिक्षक भर्ती घोटाले का है। जांच एजेंसियों की रिपोर्ट के अनुसार पश्चिम बंगाल में पैसा देकर बड़ी संख्या में शिक्षकों की नियुक्ति की गई थी। यह घोटाला सरकार की निगरानी में किया गया था और इसके तार शीर्ष नेताओं तक जुड़े होंगे। बंगाल सरकार ईडी के दुरुपयोग का मामला उठाती है, लेकिन घोटालों की बात पर बचना चाहती है। पैसे की बरामदगी पर सरकार की बोलती बंद हो चुकी है। इतनी बड़ी रकम की बरामदगी अपने आप में कई सवाल खड़े करती है।
समाज के निर्माण की जिम्मेदारी शिक्षकों के ऊपर होती है। अगर शिक्षकों की नियुक्ति ही भ्रष्टाचार की नींव पर होगी, तो एक आदर्श समाज का निर्माण कैसे होगा। इस मामले की पूरी ईमानदारी से जांच और दोषियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, क्योंकि उन्होंने प्रतिभावान युवाओं की योग्यता का गला घोंट दिया है। अगर सरकार ही पैसे लेकर बहाली करना प्रारंभ करेगी, तो गरीब और मेधावी छात्र कहां जाएंगे?
देश के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण ने मीडिया, खासकर इलेक्ट्रानिक मीडिया पर तर्कहीन बहस को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने यह भी कहा कि इससे विधिवेत्ताओं को संवैधानिक बहस करने और निर्णय लेने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। यह बात सही है कि टीवी चैनलों पर टीआरपी बढ़ाने और पहले-पहल खबर देने की होड़-सी लगी हुई है, जिससे खबरों की प्रामाणिकता पर संदेह की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
चैनलों पर हर छोटी-छोटी बात पर बड़ी-बड़ी बहसों का चलन इतना बढ़ गया है कि अब जनता में इसकी आलोचनाएं होने लगी हैं तथा इस पर अंकुश लगाने की भी मांग उठने लगी है। वैसे देखा जाए, तो इलेक्ट्रानिक मीडिया और सोशल मीडिया के लिए आचार संहिता बननी चाहिए, ताकि प्रामाणिक खबरें और तर्कसंगत बहस प्रसारित हों, जिससे भ्रम पैदा न होने पाए। सरकार को भी सीजेआई की फिक्र पर फिक्रमंद होना चाहिए।
आधुनिक परिवेश में बिजली रोजमर्रा के जीवन का अहम हिस्सा है। अलग-अलग राज्यों में बिजली बिलों की गणना के विभिन्न मानक हैं। बिजली पर सबसिडी, मुफ्त योजनाएं, बिजली चोरी, बकाया देनदारी पर छूट, भ्रष्टाचार, फिजूलखर्ची आदि का कुल बोझ सभी बिल अदाकर्ताओं पर ही पड़ता है। इन सबसे ऊपर प्रति यूनिट की गणना पर बनी रकम पर लगने वाले अनेक टैक्स हैं, जो कि असल बिल की रकम को अप्रत्याशित रूप से बढ़ा देते हैं।
दिल्ली के बिलों में समायोजित टैक्स देखें तो फिक्स्ड चार्ज, फ्यूल चार्ज के साथ पेंशन सरचार्ज और लेट पेमेंट आदि कारणों से जनता को इन बोझों को झेलना पड़ता है। एक तरफ सरकारें मुफ्त, सब्सिडी, छूट मेला लगाती हैं, दूसरी तरफ इन बिलों पर लगने वाले टैक्स की भरमार लगा रखी है। लेट पेमेंट और चैक बांउस चार्ज का तो कहना क्या? कुछ एक लोग ही होंगे, जो बिजली बिलों की गणना समझ पाएं, वर्ना अधिकतर को यूनिट खर्च और रकम अदायगी से इतर कुछ पता ही नहीं है।