ममता बनर्जी का 'खेला' 2024 में राहुल गांधी का खेल बिगाड़ने के लिए काफी है
बात 25 नवम्बर 2016 की है. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) उन दिनों कांग्रेस पार्टी (Congress Party) के उपाध्यक्ष होते थे
अजय झा बात 25 नवम्बर 2016 की है. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) उन दिनों कांग्रेस पार्टी (Congress Party) के उपाध्यक्ष होते थे. कांग्रेस पार्टी के मुख्यालय में एक प्रेस कांफ्रेंस हुई. राहुल गांधी ने अपने चिरपरिचित अंदाज़ में नरेन्द्र मोदी सरकार (Narendra Modi Government) को आड़े हाथों लिया. देश में विमुद्रीकरण हुए 18 दिन हो चुके थे, अफरा तफरी की स्थति बनी हुई थी. 500 और 1000 रुपये के नोट बंद हो चुके थे. लोगों के पास पैसे थे, पर वह किसी काम का नहीं था. बैंकों के सामने पुराने नोट बदलने के लिए लम्बी लाइन होती थी. मोदी सरकार आज तक नहीं बता पायी कि नोटबंदी से देश और देश की जनता को क्या फायदा हुआ. प्रमुख विपक्षी दल द्वारा सरकार की आलोचना तो बनती ही थी.
राहुल गांधी ने भी जम कर प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना की. मोदी की तुलना फ्रांस के 2000 वर्ष पूर्व के रोमन साम्राज्य के क्रूर शासक नीरो से की. अगर किसी को ना पता हो कि नीरो कौन था, राहुल गांधी ने विस्तार से बताया कि जब रोम जल रहा था तो नीरो वायलिन बजा रहा था. ठीक पांच साल बाद, 25 नवम्बर 2021 को, यानि कल, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बंगले पर कांग्रेस पार्टी के बड़े नेताओं की बैठक हो रही थी. सुबह खबर आई थी कि मेघालय में पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा के नेतृत्व में विद्रोह का बिगुल बज चुका है.
अब नीरो की तरह वायलिन कौन बजा रहा है
कांग्रेस पार्टी के सभी विधायकों ने कांग्रेस पार्टी छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने की घोषणा कर दी थी. एक के बाद एक नेता पार्टी छोड़ कर ऐसे जाते जा रहे थे, जैसे कि जहाज डूबने से पहले चूहे भागने लगते हैं. उम्मीद की जा रही थी कि कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता इस गंभीर विषय पर चर्चा करेंगे. पर नहीं. कांग्रेस पार्टी ने एक बार फिर से दर्शा दिया कि वह लकीर की फ़क़ीर है. मीटिंग का जो एजेंडा था, सिर्फ उस पर चर्चा हुई कि 29 नवम्बर से शुरू होने वाले संसद में शीतकालीन सत्र में सरकार को कैसे और किन मुद्दों पर घेरा जाए. योजना बना रहे थे मोदी सरकार को घेरने की, जबकि विभिन्न राज्यों में धीरे-धीरे पार्टी की इमारत गिरती जा रही है.
अब जब कांग्रेस पार्टी जल रही है तो इससे बेसुध हो कर नीरो की तरह वायलिन कौन बजा रहा था? हालांकि नेताओं का कांग्रेस पार्टी छोड़ने का सिलसिला नया नहीं है, पर नज़र डालते हैं पिछले तीन महीनों की घटनाओं पर, अगस्त में महीने में सुष्मिता देव, जो उस समय महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष थीं, कांग्रेस पार्टी को छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गयीं. अगले महीने गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुइज़िन्हो फलेरियो ने कांग्रेस पार्टी को अलविदा कह दिया और तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए. फलेरियो वर्षों तक कांग्रेस पार्टी के पूर्वोत्तर र्राज्यों के प्रभारी रह चुके थे. और अब कल मेघालय में मुकुल संगमा और अन्य 11 विधायक तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए.
सुष्मिता देव ने तो यह खुलासा नहीं किया कि किसके कहने पर उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस को ज्वॉइन किया था, पर फलेरियो और संगमा ने तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी के सलाहकार प्रशांत किशोर का नाम लिया. उम्मीद यही की जानी चाहिए कि सुष्मिता देव के कांग्रेस छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने के पीछे भी प्रशांत किशोर का ही हाथ रहा होगा.
कांग्रेस को कमजोर करने का पूरा खेला प्रशांत किशोर का था
मेघालय में जब कांग्रेस पार्टी को झटका लगा तो उस समय ममता बनर्जी दिल्ली में ही थीं. मंगलवार को तीन पूर्व सांसदों ने नई दिल्ली में तृणमूल कांग्रेस को ज्वॉइन किया था जिसमें से दो – कीर्ति आजाद और अशोक तंवर कांग्रेस पार्टी से जुड़े थे. सबसे दिलचस्प बात यह है कि दिल्ली में रहते हुए अपने तीन दिन के प्रवास के दौरान ममता बनर्जी सोनिया गांधी से नहीं मिलीं. उनका अधिकारिक तौर पर बुधवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलना ही एकमात्र कार्यक्रम था. अगर सिर्फ प्रधानमंत्री से ही मिलना था तो उसके लिए दिल्ली में तीन दिन रुकने की क्या जरूरत थी? जरूरत थी, क्योंकि प्रशांत किशोर कांग्रेस पार्टी के खिलाफ खेला उसके नाक के नीचे करना चाहते थे, ताकि नेशनल मीडिया में यह बात उछले.
ममता बनर्जी के दिल्ली प्रवास के दौरान मंगलवार और गुरुवार की घटना, या खेला, पूर्व नियोजित था. जब कल ममता बनर्जी से पूछा गया कि वह विपक्षी एकता की बात कर रही हैं तो दिल्ली में रहते हुए वह सोनिया गांधी से क्यों नहीं मिलने जा रही हैं, तो दीदी को गुस्सा आ गया और उन्होंने कहा कि क्या यह संविधान में लिखा है कि हरेक बार जब वह दिल्ली एं तो सोनिया गांधी से उन्हें मिलना ही होगा?
2024 में विपक्ष का चेहरा बनना चाहती हैं ममता बनर्जी
पिछली बार जब ममता बनर्जी जुलाई महीने के अंत में दिल्ली आई थीं तब वह सोनिया गांधी से मिलने उनके बंगले पर गईं जहां राहुल गांधी भी मौजूद थे. मीटिंग का एजेंडा था विपक्षी एकता और 2024 में बीजेपी को सत्ता से बाहर करना. पश्चिम बंगाल चुनाव जीतते ही तृणमूल कांग्रेस ने घोषणा कर दी थी कि ममता बनर्जी विपक्ष को इकठ्ठा करेंगी और प्रधानमंत्री पद के लिए जनता के सामने अपनी दावेदारी पेश करेंगी. ममता और सोनिया की मुलाकात हुई, जहां सोनिया गांधी ने उनके प्रधानमंत्री पद के दावेदारी की पुष्टि नहीं कि पर ममता बनर्जी को यूपीए अध्यक्ष पद देने की पेशकश की, जिसे दीदी से ठुकरा दिया.
भला सोनिया गांधी अपने बेटे राहुल गांधी की दावेदारी कैसे ख़त्म कर देतीं, जब कि उनके इसी सपने के कारण कांग्रेस पार्टी लगातार कमजोर होती जा रही थी. पिछले दो चुनावों में वह प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे और दोनों बार देश की जनता ने राहुल गांधी को रिजेक्ट कर दिया था. गांधी परिवार तीसरी बार फिर से राहुल गांधी को विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाना चाहती है.
चुनाव से पहले कांग्रेस को खोखला कर देंगी ममता बनर्जी
दीदी के कोलकाता लौटने के ठीक बाद राहुल गांधी की तरफ से विपक्ष के नेताओं को सुबह के नाश्ते पर 3 अगस्त को आमंत्रित किया गया. जिस अंदाज़ में वहां राहुल गांधी ने अपनी बात रखी, यह साफ हो गया कि वह अपने को देश के अगले प्रधानमंत्री के रूप में देख रहे हैं. फिर कुछ समय बाद सोनिया गांधी ने प्रमुख विपक्षी दलों की एक बैठक विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए की. मुद्दा वही था – 2024 चुनाव के मद्देनजर विपक्षी एकता. कांग्रेस पार्टी, खासकर गांधी परिवार नही चाहती थी कि ममता बनर्जी राहुल गांधी की जगह प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बन जाए और यकायक सक्रिय होती दिखीं. अब यह बात दीदी को कहां रास आने वाला था. इसका जवाब उन्होंने नई दिल्ली में रहते हुए दिल्ली के दूसरे दौरे में कल दे दिया.
इतना तो साफ हो गया है कि तृणमूल कांग्रेस पूर्वोत्तर के राज्यों से कांग्रेस पार्टी की बची खुची जड़ें नष्ट करने में जुट गई हैं. सुष्मिता देव, फिर कांग्रेस के पूर्वोतर के भूतपूर्व प्रभारी फलेरियो और अब मेघालय में बगावत, इस योजना की पुष्टि करता है. प्रशांत किशोर की यह योजना लगती है कि 2024 चुनाव आने के पहले कांग्रेस पार्टी को जितना कमजोर किया जाए वह ममता बनर्जी के प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को उतनी ही मजबूती देगा.
गांधी परिवार की पूरी कोशिश केवल अपनी कुर्सी बचाने की है
वैसे यह भी बता दें कि प्रशांत किशोर की कांग्रेस पार्टी में शामिल होने की भी बात जुलाई में चल रही है. वह राहुल गांधी के अनऔपचारिक सलाहकार बन गए थे और यह माना जाता है कि उनकी सलाह पर ही पंजाब में कांग्रेस पार्टी ने चुनाव के पहले अपने पैर पर कुल्हाड़ी चलाई जिसके कारण पहले प्रदेश अध्यक्ष और फिर मुख्यमंत्री को हटा दिया गया. कांग्रेस पार्टी प्रशांत किशोर के बारे में फैसला नहीं कर पायी और बाद में उन्हें बताया गया कि वह पहले कांग्रेस पार्टी में शामिल हो जायें और फिर बाद में उनके पद पर चर्चा होगी, जो प्रशांत किशोर को मंजूर नहीं था.
पर तब तक प्रशांत किशोर ने अपना काम कर लिया था और सुनिश्चित कर चुके थे कि अगले वर्ष की शुरुआत में होने वाले पंजाब चुनाव में कांग्रेस पार्टी हार जाए. बाद में फिर प्रशांत किशोर के कहने पर ही तृणमूल कांग्रेस ने गोवा विधानसभा चुनाव लड़ने का निर्णय लिया और वहां भी कांग्रेस पार्टी छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस में नेताओं को शामिल किया जा रहा है. प्रशांत किशोर की योजना कि कांग्रेस पार्टी को 2024 के आमचुनाव के पहले और भी कमजोर करना है, ताकि राहुल गांधी ममता बनर्जी के रास्ते में बाधा नहीं बने.
यह सब कुछ होता रहा और गांधी परिवार नीरो की तरह वायलिन बजाते रहे. अगले सवा दो साल में और क्या क्या खेला होगा और कैसे कांग्रेस पार्टी ममता बनर्जी की सामने भिखारी बन जाए इसकी योजना भी शायद प्रशांत किशोर बना रहे होंगे. इतना सब कुछ हो रहा है पर गांधी परिवार की सिर्फ एक ही योजना है कि जैसे भी हो कांग्रेस मुख्यालय में उनकी कुर्सी सलामत रहे और उनकी पकड़ बनी रहे, चाहे पार्टी क्यों ना डूब जाए.