Madhya Pradesh Coronavirus: कोरोना संकट में अवसर तलाश रहे मानवता के शत्रु
यद्यपि मध्य प्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर धीरे-धीरे उतर रही है, लेकिन
संजय मिश्र। यद्यपि मध्य प्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर धीरे-धीरे उतर रही है, लेकिन संकट अभी टला नहीं है। यह सूचना थोड़ी सुकून देने वाली है कि संक्रमण दर 25 फीसद से घटकर बुधवार को 14 फीसद पर आ गई है, परंतु सक्रिय मरीजों की संख्या में अभी भी अपेक्षित कमी नहीं आ पाई है। स्वास्थ्य व्यवस्था पर दबाव पहले की तरह ही बना हुआ है। ग्रामीण इलाकों में इन दिनों कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं। उन्हें नियंत्रित करना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि वहां का स्वास्थ्य ढांचा बेहद कमजोर है।
जांच व इलाज की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। आक्सीजन, रेमडेसिविर इंजेक्शन के साथ जीवन रक्षक दवाओं की उपलब्धता अब भी आसान नहीं हो पाई है। मरीजों की बढ़ी संख्या ने सरकारी व्यवस्था को कमजोर तो किया ही है, बिचौलियों एवं काला बाजारी करने वालों को अवसर भी दे दिया है। दवाओं से लेकर निजी अस्पतालों में बेड तक मुंहमांगे दाम पर बेचे जा रहे हैं। लोग मजबूर होकर इन पिशाचों को जान की कीमत अदा कर रहे हैं।
यह कम हैरानी की बात नहीं है कि निजी अस्पतालों की अंधेरगर्दी पर लंबे समय तक प्रशासन ने आंखे मूंदे रखीं। वह जागा तब जब सरकार के पास इस इसकी सूचनाएं पहुंचने लगीं और लगा कि कोरोना से भी बडी आफत तो इस लूट के कारण आने वाली है। कई अस्पतालों द्वारा एक दिन के 50 हजार से लेकर एक लाख रुपये तक वसूले गए। अब जबकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुद मोर्चा संभाला है तो अंधेरगर्दी मचाने वाले अस्पतालों पर कार्रवाई शुरू हो गई है। भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर, छिंदवाड़ा, देवास एवं उज्जैन सहित राज्य के लगभग हर जिले में प्रशासन ने बिचौलियों एवं कालाबाजारी करने वालों पर कार्रवाई की है। अब तक 30 से अधिक लोगों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत कार्रवाई की जा चुकी है। इंदौर में तो रेमडेसिविर की कालाबाजारी करने वालों के बडे़ नेटवर्क का राजफाश हुआ है।
मुख्यमंत्री के सख्त संदेश देने के बाद कोरोना मरीजों से अधिक शुल्क वसूलने पर 61 निजी अस्पतालों और इनके संचालकों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए हैं। इनमें 33 निजी अस्पतालों से मरीजों को लाखों रुपये वापस दिलवाए गए हैं। यह वह धनराशि है जो मरीजों की मजबूरी का फायदा उठाकर निजी अस्पतालों ने शुल्क के नाम पर वसूले थे। दो अस्पतालों के लाइसेंस निरस्त किए गए और कालाबाजारी में शामिल 22 व्यक्तियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई गई है। मरीजों से अधिक वसूली के मामले में पहली कार्रवाई भोपाल के होशंगाबाद रोड स्थित उबंटू अस्पताल के खिलाफ की गई, जिसने चंद दिनों के लिए एक मरीज से दो लाख रुपये से अधिक वसूले थे। जब जांच की गई तो बिल महज एक लाख 30 हजार रुपये का निकला। प्रशासन के दखल के बाद अस्पताल प्रबंधन ने 71 हजार रुपये लौटाए। इसी तरह सिटी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल गौतम नगर ने लगभग 20 दिन भर्ती रहीं एक मरीज शोभा मालवीय के इलाज का कुल 12 लाख रुपये का बिल बना दिया था। शिकायत पर कलेक्टर अविनाश लवानिया ने की जांच कराई तो अस्पताल प्रबंधन ने छह लाख रुपये वापस किए।
ये सब तो कुछ बानगी भर है। ऐसे मामले राज्य के हर जिले में सामने आ रहे हैं, जहां इलाज के नाम पर मरीजों से मनमनी कीमत वसूली जा रही है। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राज्य के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्र को सामने आकर यह कहना पड़ा है कि 'मरीजों की मजबूरी का फायदा उठाकर नकली दवा और इंजेक्शन बेचने वाले एवं अधिक शुल्क वसूलने वाले इंसानियत के दुश्मन हैं। सरकार ऐसे लोगों के खिलाफ आजीवन कारावास की सजा का कानूनी प्रविधान करने जा रही है।' सरकार की सख्ती के बाद शुरू हुई कार्रवाई निश्चित रूप से उम्मीद जगाने वाली है, लेकिन कानून के जानकारों का मानना है कि कालाबाजारी एवं संकट में अवसर तलाशने वालों को सबक सिखाने के लिए इससे भी कठोर कदम उठाने की जरूरत है। ऐसी कार्रवाई होनी चाहिए कि मजबूरी का फायदा उठाकर मरीजों को लूटने वाले अस्पताल संचालकों में डर पैदा हो। हालांकि रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी करने वालों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई शुरू हो गई है। इन कार्रवाइयों के बावजूद विपक्ष सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहा है। विपक्ष के नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ लगातार आरोप लगा रहे हैं कि निजी अस्पतालों पर कार्रवाई करने में सरकार ने शिथिलता बरती है।
[स्थानीय संपादक, नवदुनिया, भोपाल]