Lok Sabha Election 2024 : आगामी लोकसभा चुनाव 2024 के लिए क्या तैयार हो रहा बीजेपी का ब्रह्मास्त्र

आगामी लोकसभा चुनाव 2024 के लिए क्या तैयार हो रहा बीजेपी का ब्रह्मास्त्र

Update: 2022-04-06 10:24 GMT

दिनेश गुप्ता

लोकसभा के चुनाव (Lok Sabha Election 2024) के लिए अभी दो साल का समय है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) अगला चुनाव समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) के मुद्दे पर लड़ सकती है. इस बात के संकेत बीजेपी शासित राज्यों में समान नागरिक संहिता को लेकर चल रही कवायद से मिल रहे हैं. उत्तराखंड में पुष्कर धामी के नेतृत्व वाली सरकार ने संहिता को लागू करने के लिए कमेटी के गठन का निर्णय ले लिया है. उत्तर प्रदेश में संगोष्ठियों के जरिए समान नागरिक संहिता पर विचार विमर्श हो रहा है. मध्यप्रदेश में भी बीजेपी के भीतर से ही यह मांग उठी है कि राज्य में समान नागरिक संहिता लागू की जानी चाहिए.
समान नागरिक संहिता बीजेपी के हिंदुत्व वाले उन मुद्दों में एक है, जिन्हें पिछले चार दशक से पार्टी चुनाव में आगे रखती है. बीजेपी ने वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में पहली बार अपने घोषणा पत्र में समान नागरिक संहिता के मुद्दे को जगह दी थी. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी यह मुद्दा चर्चा में रहा. 2019 के लोकसभा चुनाव में सर्जिकल स्ट्राइक के मुद्दे ने सभी मुद्दे को पीछे छोड़ दिया था. समान नागरिक संहिता के अलावा राम मंदिर और कश्मीर में अनुच्छेद 370 को समाप्त किया जाना बीजेपी के प्रमुख चुनावी मुद्दे रहे हैं.
बीजेपी के इन मुद्दों को 2014 के बाद देश में बहुसंख्यक का साथ मिल रहा है. पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को ऐतिहासिक 303 सीटें हासिल हुईं थीं. पांच दशक से भी अधिक समय तक देश पर राज करने वाली कांग्रेस पार्टी की करारी शिकस्त हुई थी. देश में समान नागरिक संहिता लागू न होने की वजह मुस्लिम अल्पसंख्यक रहे हैं. समान नागरिक संहिता लागू होने की स्थिति में मुस्लिम अथवा ईसाई अल्पंख्यक के अपने-अपने कानूनों का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा.
समान नागरिक संहिता लागू न हो पाने की वजह मुस्लिम तुष्टिकरण?
संविधान के अनुच्छेद 44 में स्पष्ट तौर पर समान नागरिक संहिता की बात कही गई है. कानून बनाने का अधिकार राज्यों को दिया गया है. अनुच्छेद में कहा गया है राज्य अपने नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता प्राप्त करने का प्रयास करेगा. संविधान के अंगीकार किए जाने के बाद देश के किसी भी राज्य ने अनुच्छेद 44 का पालन करने का प्रयास नहीं किया. 1989 से पहले तक देश के अधिकांश राज्यों में कांग्रेस की सरकार रही है. कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने पार्टी की नीति न होने के कारण इस मुद्दे को कभी छुआ नहीं. देश में गोवा अकेला ऐसा राज्य है जहां आजादी के पहले से ही समान नागरिक संहिता लागू है.
गोवा में यह पुर्तगाल सिविल कोड 1867 के तहत लागू है. गोवा के भारत में विलय के बाद भी इस कानून में कोई बदलाव नहीं हुआ. गोवा में लागू कॉमन सिविल कोड के कोई दुष्प्रभाव भी देखने को नहीं मिले. जाहिर है कि गोवा के नागरिक समान व्यवस्था के पक्षधर हैं. समान नागरिक संहिता से मजबूत होगा स्वतंत्रता का अधिकार समान नागरिक संहिता देश में हर धर्म और जाति के लोगों को एक कानून में बांधकर रखता है. कोई भी धार्मिक संस्था या संगठन अपनी प्रथाओं अथवा धार्मिक ग्रंथों को आधार बनाकर अपने वर्ग के लोगों को देश के दूसरे नागरिकों की तरह स्वतंत्र रहने के अधिकार से वंचित नहीं कर सकती.
तीन तलाक की व्यवस्था के समाप्त होने से मुस्लिम अल्पसंख्यक वर्ग की महिलाओं का बीजेपी को व्यापक समर्थन मिला. तीन तलाक की व्यवस्था सफलतापूर्वक समाप्त होने से समान नागरिक संहिता लागू किए जाने की जमीन भी तैयार हो गई. उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव के दौरान ही मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने समान नागरिक संहिता को लेकर साफ शब्दों में कहा था कि उनकी सरकार बनी तो पहला निर्णय संहिता को लागू करने का लिया जाएगा. विधानसभा चुनाव में धामी खुद हार गए. लेकिन, बीजेपी को बहुमत मिला. बीजेपी नेतृत्व ने हार के बाद भी धामी को दोबारा मुख्यमंत्री बनाया तो इसके पीछे भी कहीं न कहीं समान नागरिक संहिता का मुद्दा भी रहा है.
धामी ने जो कहा वह उनकी सरकार कर रही है. संहिता को लागू करने के लिए कमेटी के गठन का निर्णय लिया जा चुका है. धामी सरकार के इस निर्णय से समान नागरिक संहिता का मुद्दा धीरे-धीरे राजनीति के केन्द्र में आता जा रहा है. उत्तर प्रदेश में संवैधानिक व संसदीय अध्ययन संस्थान द्वारा समान नागरिक संहिता पर विचार गोष्ठी की गई. विधान परिषद के सभापति मानवेंद्र सिंह ने कहा कि गोष्ठी में आए विचारों को केंद्रीय शाखा को भेजे जाएंगे. मध्यप्रदेश में भी समान नागरिक संहिता को लागू करने की मांग बीजेपी के भीतर से उठी है. राज्यसभा सदस्य अजय प्रताप सिंह ने इस बारे में एक पत्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लिखा है. उन्होंने मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि उत्तराखंड की तरह मध्यप्रदेश भी संहिता को लागू करने की पहल की जाए.
सीधे विरोध से बच रहे हैं मुस्लिम अल्पसंख्यक संगठन
कांग्रेस अपनी नीति के अनुसार समान नागरिक संहिता का विरोध कर रही है. राम मंदिर के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश में बहुसंख्यक संगठित होता दिखाई दिया है. कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद राजनीति पूरी तरह बदल गई है. जिन संवेदनशील मुद्दों को केवल चुनावी माना जाता था,उनका निराकरण भी हो रहा है.
इससे कांग्रेस की स्थिति भी कमजोर हुई है. उसका अल्पसंख्यक वोट पहले ही क्षेत्रीय दलों की झोली में चला गया था. अब इनकी वापसी आसान नहीं लग रही है. अल्पसंख्यक वोट भी बंटा है. बीजेपी को भी इसका लाभ मिल रहा है. पढ़ा लिखा मुस्लिम वर्ग टकराव को पसंद नहीं कर रहा. लेकिन, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे संगठन कई मुद्दों पर बदलाव को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं.
खासकर हिजाब जैसे विवादास्पद मुद्दे. यद्यपि बोर्ड ने विरोध की अपनी रणनीति में बदलाव किया है. बोर्ड की बैठक अध्यक्ष मौलाना सैयद मोहम्मद राबे हसनी नदवी की अध्यक्षता लखनऊ में हुई. इस बैठक में संहिता के मुद्दे को तूल न देने की रणनीति बनी है. बोर्ड का मानना है कि यह केवल मुस्लिम अल्पसंख्यकों से जुड़ा मुद्दा नहीं है. बोर्ड ने आंदोलन एवं प्रदर्शन से भी दूरी बनाने का निर्णय लिया है.
लोकसभा से पहले विधानसभा चुनाव में बन सकता है मुद्दा
चुनावी मैदान में वोटों का ध्रुवीकरण मुद्दे के समर्थन अथवा विरोध से ही होता है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भले ही खुलकर समान नागरिक संहिता का विरोध न करे. लेकिन, अल्पसंख्यक की राजनीति करने वाली पार्टियां जरूर विरोध करेंगीं. समर्थन हो या विरोध मुद्दे का लाभ हर हाल में बीजेपी के खाते में ही जाना है. यह मुद्दा बीजेपी का है. बीजेपी इसका लाभ 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी लेना चाहती है. इस साल के आखिरी महीनों में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हैं. अगले साल मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा के चुनाव हैं.
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