यूपी छोड़िए, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में उपमुख्यमंत्री क्यों नहीं बनवा पाए असदुद्दीन ओवैसी?

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहदुल मुसलमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) यूपी के मुसलमानों को उनके वोट के दम पर उपमुख्यमंत्री का सब्ज़बाग़ दिखा रह हैं

Update: 2021-12-18 09:34 GMT

यूसुफ़ अंसारी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहदुल मुसलमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) यूपी के मुसलमानों को उनके वोट के दम पर उपमुख्यमंत्री का सब्ज़बाग़ दिखा रह हैं. इसके लिए वो विधानसभा की 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा कर रहे हैं. उनका तर्क है कि यूपी के मुसलमान अगर उनकी पार्टी के उम्मीदवारों को एकजुट होकर वोट करें तो यूपी में मुस्लिम उपमुख्यमंत्री बन सकता है. सवाल पैदा होता है कि अगर ओवैसी के पास इतना अच्छा फार्मूला है तो इसका इस्तेमाल करके वो अपने गृहराज्यों पहले आंध्र प्रदेश और अब तेलंगाना में अपनी पार्टी से किसी मुसलमान को उपमुख्यमंत्री क्यों नहीं बनवा पाए?

अगर असदुद्दीन ओवैसी में उत्तर प्रदेश में यह संभावना नज़र आती है कि मुस्लिम वोटों के एकजुट करके किसी मुस्लिम को उपमुख्यमंत्री बनवाया जा सकता है तो फिर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में अभी तक ऐसा क्यों नहीं हुआ. ओवैसी आंध्र प्रदेश में पैदा हुए. तेलंगाना के अलग राज्य बनने के बाद वो वहां के हो गए. तेलंगाना उनकी राजनीतिक कर्मभूमि है. हैदराबाद और आसपास के क्षेत्रों में उनकी पार्टी की मज़बूत पकड़ भी है. क़ायदे से ओवैसी को इन दोनों राज्यों में अपनी पार्टी का मुस्लिम उपमुख्यमंत्री बनवाकर एक मिसाल पेश करनी चाहिए थी. उसके बाद ही उन्हें अपना राजनीतिक प्रयोग दूसरे राज्यों में दोहराना चाहिए था. लेकिन ऐसा करने में वो पूरी तरह नाकाम रहे. इसीलिए अन्य राज्यों में उनकी पार्टी की छवि वोट कटवा की बन गई है.
आंध्र प्रदेश में क्या रही स्थिति
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन यूं तो 1927 में वजूद में आ गई थी. आज़ादी के बाद 1960 के दशक से उसने स्थानीय निकायों के चुनाव में हिस्सा लेना शुरू किया. बाद में वो विधानसभा चुनाव भी लड़ने लगी. 1984 के लोकसभा चुनाव में असदुद्दीन के पिता सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी कांग्रेस के समर्थन से पहली बार जीतकर लोकसभा पहुंचे. 1999 तक लगातार जीतते रहे. 2004 से लगातार असदुद्दीन ओवैसी इसी सीट से सांसद हैं. ओवैसी की पार्टी 1989 के विधानसभा चुनाव में पहली बार 35 सीटों पर चुनाव लड़कर 4 सीटें जीती थी. 1994 में 20 सीटें लड़कर सिर्फ़ एक सीट जीती. 1999 में कांग्रेस के साथ गठबंधन करके 5 सीटों पर चुनाव लड़ा और चार जीतीं. 2009 में कांग्रेस के समर्थन से ही 8 सीटों पर चुनाव लड़ा और 7 सीटें जीतीं.
कांग्रेस से किनारा
2009 तक ओवैसी की पार्टी कांग्रेस के समर्थन से चुनाव लड़ती रही. वो सिर्फ़ हैदराबाद की ही लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ती थी. 2012 में ओवैसी ने कांग्रेस से समर्थन वापस लिया. 2014 का लोकसभा और विधानसभा चुनाव पहली बार अपने दम पर लड़ा. लोकसभा की 6 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन सिर्फ हैदराबाद की सीट जीत पाए. विधानसभा की 35 सीटों पर चुनाव लड़ा. इनमें से तेलंगाना की 20 और आंध्र प्रदेश के सीमांचल की 15 सीटों पर. लेकिन जीती तेलंगाना की सिर्फ़ वही सात सीटें जो 2009 के चुनाव में जीती थीं. तेलंगाना के अलग राज्य बनने तक आंध्र प्रदेश में कभी ओवैसी की पार्टी राज्य पार्टी का दर्जा भी हासिल नहीं कर पाई. क्योंकि वो कभी 3 फीसदी सीटें या 8 फीसदी वोट हासिल नहीं कर पाई थी.
तेलंगाना में क्या है हाल
2014 में तेलंगाना में हुए पहले विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने 35 सीटों पर चुनाव लड़कर 7 सीटें जीती थीं. उनकी पार्टी को 7.37 लाख वोट मिले थे, जोकि कुल वोटों के 1.52 फीसदी थे. 2018 में उन्होंने तेलंगाना राष्ट्र समिति के साथ मिलकर सिर्फ 8 सीटों पर चुनाव लड़ा और 7 सीटें जीतीं. इस बार उनकी पार्टी को 5.61 लाख वोट मिले जोकि कुल वोटों के 2.7 प्रतिशत थे. इन दोनों चुनाव में पार्टी को 3 प्रतिशत से ज्यादा सीटें मिली. लिहाज़ा तेलंगाना में इसे राज्य पार्टी का दर्जा हासिल हो गया. चुनावी नतीजे बताते हैं कि लाख कोशिशों के बावजूद ओवैसी तेलंगाना विधानसभा में न तो मुस्लिम विधायकों की संख्या बढ़ा पाए और न ही सत्ता में हिस्सेदारी हासिल कर पाए हैं. किसी को उपमुख्यमंत्री बनवाना तो बहुत दूर की कौड़ी है.
कैसे बन सकता है मुस्लिम मुख्यमंत्री?
किसी भी राज्य में किसी मुसलमान के उपमुख्यमंत्री बनने के सिर्फ दो रास्ते हैं. पहला, विधानसभा में बहुमत पाने वाली पार्टी किसी मुसलमान को उपमुख्यमंत्री बना दे. दूसरा, मुस्लिम नेतृत्व वाली कोई पार्टी इतनी सीटें जीत ले कि उसके बगै़र कोई सरकार बन पाना संभव ना हो. इस स्थिति में वो सरकार बनाने के लिए समर्थन देने के बदले उपमुख्यमंत्री का पद मांग सकती है. सीटें ज्यादा हों तो 6 महीने या साल भर के लिए मुख्यमंत्री पद की भी मांग कर सकती है. इस मांग को मानना या नहीं मानना उस पार्टी पर निर्भर करेगा जो पार्टी उसके समर्थन से सरकार बनाने की स्थिति में होगी. उत्तर प्रदेश के मौजूदा राजनीतिक हालात में ये दोनों ही सूरतें नामुमकिन हैं. ओवैसी इतनी सीटें नहीं जीत सकते कि उनके बगैर किसी की सरकार न बन सके.
अपने एजेंडे पर नाकाम हैं ओवैसी
महाराष्ट्र, बिहार और पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में ओवैसी ने दो मुद्दे मुख्य तौर पर उठाए. पहला, विधानसभा में मुसलमानों की नुमाइंदगी बढ़ाने का और दूसरा, सत्ता में हिस्सेदारी हासिल करने का. इसी मुद्दे को लेकर अब वो यूपी के चुनावी मौदान में ताल ठोक रहे हैं. हक़ीक़त यह है इन दोनों ही मुद्दों पर वह अपने गृह राज्य में पूरी तरह नाकाम रहे हैं. यह चिराग़ तले अंधेरे वाली कहावत को चरितार्थ करने जैसा है. सबसे अहम सवाल यह है कि अगर ओवैसी अपने गृह राज्य में ही विधानसभा में मुसलमानों की नुमाइंदगी बढ़ाने और सत्ता में हिस्सेदारी हासिल कराने में नाकाम रहें हैं तो बाक़ी राज्यों में वो ये दोनों चीजें कैसे हासिल कर सकते हैं. यह बेहद अहम सवाल हैं. शायद यही वजह है कि बिहार के बाद पश्चिम बंगाल के मुसलमानों ने उन पर भरोसा नहीं किया.
यूपी में पिछले चुनाव में क्या रही स्थिति
यूं तो ओवैसी की पार्टी ने यूपी में पिछले कई चुनाव लड़े. लेकिन इन चुनावों में उन्हें अपनी पार्टी के पैर जमाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी थी. हालांकि वो अपनी पार्टी का खाता तक खोलने में नाकाम रहे थे. लेकिन पिछले चुनाव में उनकी पार्टी ने 38 सीटों पर चुनाव लड़ा था. उसे 2.05 लख वोट मिले थे. प्रतिशत के लिहाज़ से ये बहुत कम महज़ 0.2 प्रतिशत ही थे. लेकिन उनकी पार्टी के उम्मीदवार ज़ियाउर्रहमान बर्क़ संभल सीट पर 60,426 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे. यहां सपा के इक़बाल महमूद जीते थे. ज़ियउर्रहमान सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क के बेटे हैं. तीन और सीटों पर ओवैसी के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर थे. बाकी सीटों पर उनके उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हो गई थी. इसे देखते हुए ओवैसी अब इस चुनाव में अपनी पार्टी का खाता खुलने की उम्मीद कर रहे हैं.
राजभर ने दिखाया था ओवैसी को मुख्यमंत्री का ख़्वाब
क़रीब छह महीने भगीदारी संकल्प मोर्चा के संयोजक और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने ओवैसी को यूपी का मुख्यमंत्री बनाने का ख़्वाब दिखाया था. तब ओवैसी इस मोर्चे का हिस्सा थे. राजभर ने यह कहकर राजनीति में एक नई हलचल पैदा कर दी थी कि असदुद्दीन ओवैसी भी उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बन सकते हैं, बशर्ते कि वह पहले उत्तर प्रदेश के मतदाता बन जाएं. उन्होंने तर्क दिया है कि अगर अजय कुमार बिष्ट नाम का व्यक्ति उत्तराखंड से आकर योगी आदित्यनाथ के नाम से उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बन सकता हैं तो फिर ओवैसी क्यों नहीं बन सकते. उन्होंने यह भी तर्क दिया था कि मुसलमान होना कोई गुनाह नहीं है. मुख्यमंत्री बनने का जितना हक़ है एक हिंदू को है उतना ही एक मुसलमान के बेटे को भी है.
ये अलग बात है कि राजभर अब अखिलेश यादव को दोबारा मुख्यमंत्री बनाने की मुहिम में जुट गए हैं. लिहज़ा मुख्यमंत्री बनने से चूक गए ओवैसी अब अपनी पार्टी से किसी मुसलमान को उपमुख्यमंत्री बनाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. यूपी में पहले मुस्लिम नेतृत्व वाली पार्टियों के प्रयोगों से थक चुके मुस्लमि नेता और उनके साथी कार्यकर्ता अब ओवैसी के सभाओं की शोभा बढ़ा रहे हैं. लेकिन आम मुसलमान ये सवाल पूछ रहा है कि अगर ओवैसी यूपी में किसी मुसलमान को उपमुख्यमंत्री बनाने का करिश्मा कर सकते हैं तो फिर वो आंध्र प्रदेश और तेलंगना में ऐसा क्यों नहीं कर पाए.
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