लता मंगेशकर :दक्षिण एशिया की आत्मा की आवाज

उनका नश्वर शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया, लेकिन उनकी अमर आवाज हमें अपनी सभ्यता की पहचान के बारे में बताती रहेगी।

Update: 2022-02-12 01:49 GMT

मुझे घर से लता मंगेशकर के अंत्येष्टि स्थल शिवाजी पार्क ले जाने वाला टैक्सी ड्राइवर अनवरत उनके गाने बजा रहा था। अंत्येष्टि स्थल से पहले ही पुलिस ने टैक्सी रोक दी। एक अंतहीन जनसैलाब पार्क की ओर बढ़ रहा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काफिले के पहुंचने के साथ ही पार्क के सभी प्रवेश द्वार बंद कर दिए गए। मैंने दूर से ही लता दीदी को प्रणाम किया और दादर बीच की ओर चल पड़ा।

सर्दियों का सूरज अब अरब सागर के पीछे ढलने ही वाला था। अवरुद्ध कंठ और उदासी के साथ मैंने खुद से सवाल किया कि 'लता मंगेशकर अमर रहे' का क्या अर्थ है? जैसे ही मैं वापस मुड़ा, मुझे हजारों आम मुंबईकर के चेहरे पर इसका जवाब मिला, जो उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए धैर्यपूर्वक कतार में खड़े थे। उनमें युवा, बुजुर्ग, अमीर, गरीब, पुरुष और उतनी ही महिलाएं शामिल थीं, जो शहर के सामाजिक इंद्रधनुष को प्रदर्शित कर रहे थे। वे सभी कृतज्ञता के भाव से मौन खड़े थे। उन सबको उनके गीतों ने छुआ था- उनके प्यार और खुशी के क्षण में, दर्द और पीड़ा के क्षणों में, उनकी प्रार्थना और देशभक्ति के गौरव के क्षण में, और दुनिया के सभी सुंदर और उसके रहस्यमयी आनंद व आश्चर्य के अनुभव में। निराशा के दिनों में उनके गीतों ने उन्हें सुकून दिया था, जैसे एक मां अपने रोते हुए बच्चे को दिलासा देती है।
इस प्रकार उनके गीतों ने अपने देश और विदेशों में भी विभिन्न धर्मों, जातियों, वर्गों और भाषाओं के अनगिनत लोगों के जीवन को प्रभावित किया, यह एक ऐसी उपलब्धि है, जो दुर्लभतम व्यक्तियों को ही मिलती है। वजह साफ है। महान कला मानव को वह पोषण प्रदान करती है, जो रोटी से ज्यादा बुनियादी चीज है। भारतीय उपमहाद्वीप की आत्मा की आवाज लता दीदी को पूरे भारत के लोगों ने भावभीनी विदाई दी, जिन्होंने आठ दशक पहले गाना शुरू किया था। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान से लेकर बांग्लादेश की शेख हसीना, श्रीलंका के महिंदा राजपक्षे, नेपाल की विद्या देवी भंडारी-सभी ने शोक संदेश में अपने नागरिकों की भावनाओं को व्यक्त किया। क्रिकेटरों, संगीतकारों, राजनेताओं और पाकिस्तान के आम लोगों की ओर से ट्विटर पर दी गई श्रद्धांजलि सबसे ज्यादा दिल को छू लेने वाली थी। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि लता दीदी ने अपनी मातृभाषा मराठी और हिंदी की तरह उर्दू में भी उतनी ही मधुरता से गाया है।
मुझे 1980 के दशक का एक दिलचस्प वाकया याद आ रहा है। पाकिस्तान में तब जनरल जिया उल हक का सैन्य शासन था और समाज का इस्लामीकरण चरम पर था। उस समय लता मंगेशकर खाड़ी देशों के दौरे पर गई हुई थीं। वहां पाकिस्तानी दूतावास ने उन्हें एक संगीत कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। बाद में दूतावास को इस्लामाबाद से एक दुश्मन देश की गायिका को आमंत्रित करने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। इस पर पाकिस्तान के सबसे बड़े अखबार डॉन में एक स्तंभकार ने सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए पूछा कि 'क्या संगीत को सरहदों में कैद किया जा सकता है? लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी केवल भारत के हैं? क्या मेहंदी हसन सिर्फ पाकिस्तान के हैं?' गजल के शहंशाह मेहंदी हसन ने एक बार खुद कहा था कि 'मैं उतना ही भारत का हूं, जितना पाकिस्तान का। मुझे भारतीयों से जो प्यार मिला है, वह मेरे अपनों से मिले प्यार से कम नहीं है।'
मुझे लगता है कि लता मंगेशकर का हमारे लिए क्या मतलब है, इसे समझने में अभी लंबा वक्त लगेगा। लेकिन एक बात तो निश्चित है कि जिस तरह से उन्होंने हमारे विभाजित उपमहाद्वीप को जोड़ा, कम से कम वैसा कोई भी नहीं कर पाएगा। इस मुश्किल वक्त में जब हमने कट्टरता और पूर्वाग्रह की संकीर्ण घरेलू दीवारें खड़ी कर ली हैं, उनका संगीत हमें याद दिलाता रहेगा कि हम सभी एक संयुक्त उपमहाद्वीप परिवार के सदस्य हैं। उनका नश्वर शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया, लेकिन उनकी अमर आवाज हमें अपनी सभ्यता की पहचान के बारे में बताती रहेगी।

सोर्स: अमर उजाला

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