शिक्षा पर कोविड की मार
कोविड-19 ने मानव समाज को कितना पीछे धकेला है, इसके सटीक आकलन में अभी वर्षों लगेंगे
कोविड-19 ने मानव समाज को कितना पीछे धकेला है, इसके सटीक आकलन में अभी वर्षों लगेंगे, क्योंकि महामारी पर निर्णायक नियंत्रण का कोई सिरा फिलहाल ठीक-ठीक दिख नहीं रहा और दुनिया का एक बड़ा व बेबस हिस्सा अब भी इसकी वैक्सीन के इंतजार में है। पर इसके जो तात्कालिक असर दिख रहे हैं, वही काफी दिल दुखाने और चिंतित करने वाले हैं। भारत के संदर्भ में मशहूर अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज, रीतिका खेड़ा और शोधार्थी विपुल पैकरा का एक ताजा सर्वेक्षण बताता है कि लंबे अरसे तक स्कूलों के बंद रहने की सबसे बड़ी कीमत ग्रामीण इलाकों के गरीब बच्चों ने चुकाई है। कक्षा एक से आठवीं तक के बच्चों के बीच किए गए इस सर्वे के मुताबिक, गांवों में रहने वाले 37 प्रतिशत बच्चों ने इस अवधि में बिल्कुल पढ़ाई नहीं की, जबकि सिर्फ आठ फीसदी बच्चे नियमित रूप से ऑनलाइन पढ़ाई कर सके। शहरी क्षेत्र के आंकडे़ भी कोई बहुत राहत नहीं देते। यहां भी सिर्फ 24 प्रतिशत बच्चे नियमित रूप से ऑनलाइन शिक्षा ग्रहण कर सके।
क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान