राहत का सफर
पिछले साल जब दुनिया भर में कोरोना संक्रमण ने गंभीर महामारी की शक्ल लेना शुरू कर दिया, तब तमाम देशों ने न केवल अपने यहां इससे निपटने के हर इंतजाम किए, बल्कि विदेशों में भी अपनी पहुंच के इलाकों में हर संभव मदद की।
पिछले साल जब दुनिया भर में कोरोना संक्रमण ने गंभीर महामारी की शक्ल लेना शुरू कर दिया, तब तमाम देशों ने न केवल अपने यहां इससे निपटने के हर इंतजाम किए, बल्कि विदेशों में भी अपनी पहुंच के इलाकों में हर संभव मदद की। यह वैश्विक महामारी का सामना करने के क्रम में उपजी आम मानवीयता थी, जिसकी सराहना की गई। मगर इलाज से लेकर टीकाकरण के जरिए इस महामारी को कमजोर करने के रास्ते जैसे-जैसे साफ होते जा रहे हैं, वैसे-वैसे कुछ जगहों पर पनपने वाले आग्रह या शंकाएं अफसोस की वजह बन रही हैं। मसलन, कुछ समय पहले ब्रिटेन ने भारत में चल रहे टीकाकरण में कोविशील्ड को मान्यता दी थी, मगर यह शर्त लगा दी कि टीके की दोनों खुराक लेने के बावजूद वहां आने वाले भारतीय यात्रियों को दस दिन के एकांतवास में गुजारना होगा।
यह अपने आप में वैश्विक स्तर पर तय हो रहे नियमों में विरोधाभास का उदाहरण था, जिसमें एक ओर कोविड-19 से बचाव का टीका लेने को कहीं आने-जाने के लिए 'अनुमति-पत्र' के तौर पर देखा जा रहा है, तो दूसरी ओर टीकाकरण की दोनों खुराकों के बावजूद नए तरह के प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं। जाहिर है, यह भारत के लिए न केवल असुविधाजनक स्थिति थी, बल्कि यहां चल रहे टीकाकरण को लेकर गैरजरूरी विवाद खड़ा करने जैसा और निराधार शक पैदा करना था।
इसलिए भारत ने पहले ब्रिटेन से इस तरह के कदम पर पुनर्विचार का आग्रह किया, लेकिन इसके बाद जवाबी कार्रवाई के तौर पर यहां आने वाले ब्रिटिश यात्री के लिए समान नियम यानी दस दिन के एकांतवास की शर्त लगा दी। दोनों तरफ से उठाए गए इन कदमों की सफाई में कहा जा सकता है कि कोरोना संक्रमण को लेकर एहतियात बरतने के लिए ऐसा किया गया, मगर इस तरह के फैसले लिए जाते समय नाहक संदेह, प्रतिद्वंद्विता या शक जैसी स्थितियों के बजाय विवेक और परिपक्वता को तरजीह दी जानी चाहिए। भारत की कार्रवाई के बाद शायद ब्रिटेन को अपने रुख पर पुनर्विचार करना जरूरी लगा और उसने भारतीय यात्रियों को लेकर घोषित शर्तों को हटा दिया। इसके बाद अब भारत ने भी यहां आने वाले ब्रिटिश यात्रियों के लिए दस दिन के एकांतवास की शर्त खत्म कर दी है।
सही है कि कोरोना विषाणु के संक्रमण की तीव्रता फिलहाल कमजोर होती दिख रही है, लेकिन खतरा अभी पूरी तरह टला नहीं है। इसलिए सभी देशों की सरकारें अगर इस मसले पर अतिरिक्त सावधानी बरत रही हैं, तो यह स्वाभाविक ही है। हालांकि यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि महामारी से बचाव के समांतर ऐसे उपायों की ओर भी कदम बढ़ाना जरूरी है, जो आम जनजीवन को सहज बना सके और लोग सुरक्षित हालात में पहले की तरह जी सकें।
इसके लिए जरूरी है कि रोजमर्रा की आर्थिक गतिविधियों में पर्यटन सहित दूसरे सभी मोर्चों पर आवश्यक सावधानी के साथ सहजता लाई जाए। लापरवाही से बचने की जरूरत इसलिए भी है कि टीके की दोनों खुराक लेने वाले लोग भी कोरोना के नए स्वरूपों से संक्रमित हो रहे हैं। ऐसे में अगर बचाव के लिहाज से तय नियम-कायदों सहित किसी मामले में जरा-सी कोताही हुई तो वह भारी पड़ सकती है। जरूरत इस बात की है कि इससे निपटने के लिए अलग-अलग देश टीका या अन्य मसलों पर किसी प्रतिद्वंद्विता का शिकार होने के बजाय सामूहिक जिम्मेदारी के साथ काम करें और आपसी सहयोग से नया रास्ता तैयार करें।