लड़की क्या कोई प्लास्टिक की बनी है, जो उसके शरीर पर बाल नहीं होंगे?
सोशल मीडिया पर कई लोगों ने इस तरह के सवाल किए हैं कि
मनीषा पांडेय।
नवंबर का महीना है और "नो शेव कैंपेन" चल रहा है. कभी कैंसर पेशेंट्स को सपोर्ट करने के लिए ये कैंपेन शुरू हुआ था. हर साल नवंबर के महीने में इस कैंपेन में हिस्सा लेने वाले लोग अपने बॉडी हेयर को साफ नहीं करते. सिर, त्वचा, अंडरआर्म के बालों की ग्रूमिंग नहीं की जाती.
सोशल मीडिया पर कई लोगों ने इस तरह के सवाल किए हैं कि इस कैंपेन में हिस्सा लेने वाले ज्यादातर मर्द ही क्यों हैं. स्त्रियां इस कैंपेन का हिस्सा क्यों नहीं. वो क्यों बालों से भरे अपने हाथ, पैंरों और अंडरआर्म्स के फोटो सोशल मीडिया पर लगाकर इस कैंपेन को सपोर्ट करने का दावा नहीं करतीं.
लड़कियों के लिए त्वचा पर उगने वाले बाल इतना बड़ा टैबू हैं कि टीवी और प्रिंट के हेयर रिमूवल प्रोडक्ट्स के विज्ञापनों तक में कभी किसी बालों वाली लड़की को नहीं दिखाते. आपने कभी नहीं देखा होगा कि शेविंग रेजर के विज्ञापन में कोई लड़की सचमुच में बाल शेव कर रही हो. सारे विज्ञापनों में शेव की जा रही स्किन पहले से शेव्ड और चमकीली होती है.
लड़कियों के लिए बॉडी हेयर टैबू और शर्म की बात है. इतिहास में जाएंगे तो पता चलेगा कि स्त्रियों की देह के बाल को लेकर दुनिया की तमाम सभ्यताओं का रवैया कितना हिंसक रहा है. तमाम बेहद तकलीफदेह और दर्दनाक तरीकों से स्त्रियों के शरीर के बाल प्राचीन मिस्र से लेकर यूनान तक की सभ्यताओं में उखाड़े जाते रहे हैं.
आधुनिक उत्पादों ने इस काम को आसान जरूर बना दिया, लेकिन पॉपुलर भी क्योंकि प्राचीन मिस्र, यूनान और इंग्लैंड में शरीर के बाल उखाड़े जाने की प्रथा सिर्फ कुछ अमीर और कुलीन महिलाओं के बीच ही थी. आम महिलाओं में यह परंपरा नहीं थी.
प्राचीन मिस्र में शंख और सीपी को काटकर एक खास तरह का रेजर बनाया जाता था, जिसका इस्तेमाल महिलाएं अपने सिर के बाल और प्यूबिक हेयर साफ करने के लिए करती थीं. प्राचीन मिस्र में चीनी और शहद वाले वैक्स से हाथ-पैरों के बाल उखाड़े जाने के भी संकेत मिलते हैं.
इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने सबसे पहले अपने के बालों को थोड़ा ऊपर तक साफ करना शुरू किया ताकि उनका माथा ज्यादा बड़ा नजर आए. इतिहासकारों ने लिखा है कि इंग्लैंड में महिलाएं अपने चेहरे के बालों के अलावा अपनी भौंहों के बालों को भी पूरी तरह शेव करती थीं. बिना बालों वाली स्त्री कुलीन मानी जाती थी. लेकिन शरीर के बाल उखाड़ना आम प्रचलन में नहीं था.
ये कब और कैसे हुआ कि एक खास कुलीन समूह से निकलकर वैक्सिंग, थ्रेडिंग और यहां तक कि प्यूबिक हेयर भी साफ करने की प्रथा आम महिलाओं के बीच भी इतनी पॉपुलर हो गई. इसका सारा श्रेय 19वीं सदी के मध्य में शुरू हुई उन महिला पत्रिकाओं को जाता है, जिन्होंने इस आइडिया को पॉपुलर करने का काम किया.
दुनिया की पहली विमेन मैगजीन और फीमेल रेजर
1873 में अमेरिका दुनिया की पहली महिला पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ. नाम था- डेलीनिएटर. इस अंग्रेजी शब्द का अर्थ है, वो चीज जो किसी बात को बहुत विस्तार से और पूरी रूपरेखा के साथ प्रस्तुत करती हो. यह मैगजीन बहुत तरीकों से आधुनिक सौंदर्य उत्पादों को आम महिलाओं के बीच बेचने और उन्हें पॉपुलर बनाने की शुरुआत थी. इस पत्रिका में सबसे पहले फीमेल रेजर का विज्ञापन छपा, जो जिलेट कंपनी ने बनाया था. विज्ञापन के साथ-साथ हर अंक में ऐसे लेख होते, जो हाथ-पैर के बालों को उखाड़ने के फायदे गिना रहे होते थे.
वैक्सिंग या रेजर से बाल साफ करने के पीछे तर्क सिर्फ हाइजीन और क्लीनिंग का नहीं था. यह साफ, गोरी, चमकती और चिकनी त्वचा की तारीफ में पढ़े गए कसीदे भी थे. रेलरोड्स के बढ़ने और संचार के साधनों के विकसित होने के साथ पत्रिकाओं का सर्कुलेशन बढ़ता गया. अमेरिका में 1920 तक आते-आते महिलाओं में साक्षरता की दर भी बहुत तेजी के साथ बढ़ रही थी. इन सारे बदलावों का असर ये हुआ कि 1890 से लेकर 1920 तक आते-आते इन पत्रिकाओं का विज्ञापन रेवन्यू दुगुना हो गया. कंपनियां लगातार बाजार में नए प्रोडक्ट उतार रही थीं और महिला पत्रिकाएं उन प्रोडक्ट्स के विज्ञापन बेचने के साथ-साथ उस लाइफ स्टाइल को भी बेचने का काम कर रही थीं.
1970 का दशक सेकेंड वेव फेमिनिस्ट मूवमेंट का था, जिसने तमाम पितृसत्तात्मक मूल्यों पर सवाल खड़े करने के साथ-साथ ब्यूटी के पॉपुलर आइडिया को भी सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया. उन्होंने पूछा कि क्या लड़की कोई प्लास्टिक की बनी है, जो उसके शरीर पर बाल नहीं होंगे.
यहां एक और रोचक तथ्य गौर करने लायक है कि जिस तरह प्राचीन मिस्र, रोम, यूनान और इंग्लैंड के कुलीन समूहों में शरीर के बाल उखाड़ने की परंपरा स्त्री और पुरुष दोनों के बीच कॉमन थीं, वहीं 19वीं सदी का विस्तृत हो रहा बाजार अपने इन उत्पादों के लिए सिर्फ औरतों को निशाना बना रहा था. सिगरेट से लेकर बीयर तक के विज्ञापनों में छाती पर ढेर सारे बाल वाले मर्दों की तस्वीर छपी होती थी और उसके बगल में बिकनी पहनकर खड़ी औरत की त्वचा बिलकुल चिकनी, चमकीली होती, जिस पर बालों का नामोनिशान नहीं होता.
बेट्टी फ्राइडेन अपनी किताब द फेमिनिन मिस्टिक में लिखती हैं कि मर्दों के बॉडी हेयर उस तरह टैबू नहीं थे, बल्कि वो मर्दानगी का प्रतीक थे. टैबू फीमेल हेयर थे, जिनसे छुटकारा पाने के हजारों नुस्खे महिला पत्रिकाएं बता रही थीं और उसके उत्पाद कंपनियां बना रही थीं.
आज भी फीमेल वैक्सिंग बहुत कॉमन प्रैक्टिस है. ज्यादातर महिलाएं अपनी त्वचा के बाल साफ करती हैं, लेकिन अब महिलाओं का एक समूह इस पर सवाल भी खड़े कर रहा है. लड़कियां पूछ रही हैं कि क्या वो प्लास्टिक की बनी हैं, जो उनके शरीर पर बाल नहीं होंगे.