भारत का 'साबित दोस्त'
इस संवाद के बाद ‘दोस्ती’ और समन्वय का नया अध्याय शुरू होगा
By: divyahimachal
अब जापान भारत का एक 'साबित दोस्त' बन गया है। हालांकि यह दोस्ती सात दशकों पुरानी है, लेकिन आपसी संबंध इतने अंतरंग और रणनीतिक नहीं रहे, जितने होने चाहिए थे। धीरे-धीरेे यह दोस्ती परवान चढ़ी है। जापान ने 3.5 ट्रिलियन येन के पूंजी-निवेश का लक्ष्य हासिल कर लिया है। अब नया लक्ष्य 5 ट्रिलियन जापानी येन (3.20 लाख करोड़ रुपए) के निवेश का है। जापान भारत में विदेशी पूंजी-निवेश करने वाला पांचवां सबसे बड़ा स्रोत है। यह भारत-जापान की दोस्ती की एक पराकाष्ठा है। जापान के प्रधानमत्री फुमियो किशिदा ने अक्तूबर, 2021 में इस पद की शपथ ली थी और प्रथम द्विपक्षीय शिखर-संवाद के लिए भारत को ही चुना। यह आपसी संबंधों की गहराई और गंभीरता को प्रमाणित करता है। दरअसल भारत-जापान दोस्ती की इबारत 2006 में लिखी गई थी, जब दोनों देशों के बीच 'रणनीतिक एवं वैश्विक साझेदारी' का करार हुआ था। तब भारत के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह थे। उसके बाद आपसी कारोबार और भागीदारी के आयाम और भी खुले। जब 2014 में प्रधानमंत्री मोदी जापान गए, तो 'पूंजी-निवेश संवर्धन अनुबंध' भी हुआ और दोस्ती को सांस्कृतिक आयाम भी दिए गए।
दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच शिखर-वार्ता कोरोना महामारी के कारण लगातार दो साल तक नहीं हो सकी। 2019 में प्रधानमंत्री मोदी और जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो आबे की शिखर-वार्ता गुवाहाटी में होनी थी, लेकिन 'भारतीय नागरिकता कानून' में संशोधनों के विरोध-प्रदर्शनों के कारण रद्द करनी पड़ी, लिहाजा प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री किशिदा का यह संवाद बेहद महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। ये रणनीतिक और सांस्कृतिक संबंध एशिया ही नहीं, पूरी दुनिया के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण हैं। दोनों प्रधानमंत्रियों ने रूस-यूक्रेन युद्ध के अलावा, हिंद प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा, उसके साझा इस्तेमाल और चीन के साथ भारत के सरहदी गतिरोध और अतिक्रमण पर भी बातचीत की। भारत और जापान अमरीका और ऑस्टे्रलिया के साथ 'क्वाड' के सदस्य देश हैं। उनका प्रयास है कि समंदर सबके लिए साझा है और सभी देश सहजता से इसके जरिए आवागमन कर सकते हैं। परोक्ष तौर पर क्वाड चीन की दादागीरी के लिए गंभीर चुनौती है, लिहाजा भारत-जापान के संबंधों को समझा जा सकता है। भारत और जापान वैश्विक स्तर पर शांति, स्थिरता, साइबर सुरक्षा, ग्रीन प्रौद्योगिकी आदि के पक्षधर रहे हैं। दोनों देशों मंे ऐसे ही करार किए गए हैं। भारत में एक छोटा जापान भी बसता है। हमारे देश में 1455 जापानी कंपनियां सक्रिय हैं और 11 जापानी औद्योगिक टाउनशिप स्थापित किए गए हैं।
जापान की तकनीकी और वित्तीय मदद से मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल, डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर और मेट्रो परियोजनाएं आदि सफलतापूर्वक चल रही हैं। भारत के बुनियादी ढांचे के विस्तार, तकनीकी सम्पन्नता और साइबर सुरक्षा में जापान की भूमिका अहम है। भारत और जापान एशिया में दो बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं, जो चीन के वर्चस्व को चुनौती देती रही हैं। चीन के जापान के साथ भी मधुर और सौहार्द्रपूर्ण संबंध नहीं हैं, लिहाजा उसके समानांतर भारत-जापान एक साझा शक्ति का निर्माण करते हैं। दोनों देशों में ऐसी रणनीतिक साझेदारी है कि दोनों सरकारों के प्रवक्ता और अधिकारी रणनीतिक मामलों पर साझा बयान जारी करते रहे हैं। जापान ने भारत में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद और हमलों की कठोर निंदा की है। भारत-जापान दोनों ने ही अफगानिस्तान में शांति, सुरक्षा और स्थिरता को सुनिश्चित करने के बयान दिए हैं। महात्मा बुद्ध भारत में पूजनीय हैं, तो जापान में भी उनका उतना ही सम्मान है, लिहाजा सांस्कृतिक आधार पर भी 'दोस्ती' गहरी है। प्रधानमंत्री मोदी ने संकल्प लिया था कि वह जापान के क्योटो शहर की तर्ज पर काशी का रूप-रंग बदलेंगे। वह प्रक्रिया जारी है। जापान हमें कौशल विकास और श्रमिकों के प्रशिक्षण में भी योगदान दे रहा है। बहरहाल दोनों प्रधानमंत्रियों ने एक-दूसरे से संवाद किया है। इस संवाद के बाद 'दोस्ती' और समन्वय का नया अध्याय शुरू होगा।