अंतरिक्ष में बढ़ती ताकत

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) साल दर साल नए-नए इतिहास रच रहा है।

Update: 2020-11-18 04:37 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) साल दर साल नए-नए इतिहास रच रहा है। हाल में अंतरिक्ष में एक और बड़ी छलांग लगाते हुए इसरो ने भारत के नवीनतम पृथ्वी अवलोकन उपग्रह 'ईओएस-01' (अर्थ आॅब्जर्वेशन सैटेलाइट) को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में स्थापित कर दिया। इस महत्त्वपूर्ण उपग्रह प्रक्षेपण अभियान में इसरो ने मुख्य उपग्रह के तौर पर भारत के ईओएस-01 के अलावा विदेशी ग्राहकों के नौ वाणिज्यिक उपग्रहों को भी भारत के 'पीएसएलवी-सी49' (पोलर सैटेलाइट लांच व्हीकल) के जरिये प्रक्षेपण के बाद सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया।

विदेशी उपग्रहों में अमेरिका के चार लेमुर मल्टी मिशन रिमोट सेंसिंग उपग्रह, लग्जमबर्ग के क्लेओस स्पेस के चार नौसैन्य उपयोग वाले उपग्रह और लिथुआनिया का एक उपग्रह शामिल था। पीसीएलवी का यह इक्यावनवां सफल उपग्रह प्रक्षेपण अभियान था। इसरो अभी तक तीन सौ अट्ठाईस विदेशी उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने में सफल हो गया है। कोरोना महामारी की शुरुआत से ठीक पहले इसरो के पीएसएलवी रॉकेट ने भारत के शक्तिशाली इमेजिंग सैटेलाइट रीसैट-2बीआर1 और नौ अन्य विदेशी उपग्रहों के साथ अंतरिक्ष की सफल उड़ान भर कर अपना पचासवां मिशन पूरा किया था।

आज दुनिया में जिस तरह के हालात बनते जा रहे हैं, अमेरिका, रूस, चीन जैसे दुनिया के कुछ ताकतवर देश जिस प्रकार पिछले कुछ दशकों में मजबूत अंतरिक्ष शक्ति के रूप में उभरे हैं और अंतरिक्ष में अपने हथियारों की तैनाती कर रहे हैं, उससे भविष्य में अंतरिक्ष युद्ध की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में भारत के लिए भी इसी दिशा में कदमताल करते हुए अंतरिक्ष में अपनी स्थिति मजबूत करना समय की बड़ी मांग है और ऐसे में भारत के लिए इसरो की भूमिका बेहद महत्त्वपूर्ण हो जाती है।

इसरो जिस जोश और बेहद उन्नत तकनीक के साथ एक के बाद एक सफल अभियानों को अंजाम दे रहा है, उसका लोहा आज पूरी दुनिया मान रही है। इसरो के बुलंद हौसलों और उसके अभियानों की बड़ी सफलता दर के कारण ही 'नासा' भी अब अपने उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में स्थापित कराने के लिए इसरो की मदद ले रहा है।

उरी हमले का बदला लेने के लिए भारतीय सेना ने पाकिस्तान में जो सर्जिकल स्ट्राइक की थी, उसमें इसरो के उपग्रहों की मदद से ही आतंकियों के ठिकानों का पता लगाया गया था और सजीव तस्वीरें मंगाई गई थीं। ठीक उसी प्रकार बालाकोट हमले के बाद किए गए हवाई हमलों में भी इसरो ने अंतरिक्ष में स्थापित उपग्रहों से तस्वीरें ली थीं। इसरो की तीन उपग्रह शृंखलाओं (रीसैट, काटोर्सैट तथा जीसैट) इस कार्य में मददगार साबित हुई थीं। काटोर्सैट की ही भांति रीसैट भी हर प्रकार के मौसम में पृथ्वी की तस्वीरें लेने में सक्षम है, जिसके जरिए अंतरिक्ष से जमीन पर तीन फीट की ऊंचाई तक की बेहतरीन तस्वीरें ली जा सकती हैं।

मुंबई के आतंकी हमलों के बाद इसरो ने रीसैट शृंखला के उपग्रहों को सीमाओं की निगरानी और घुसपैठ रोकने के लिए विकसित किया गया था। जीसैट शृंखला के उपग्रहों का उपयोग टेलीफोन और टीवी संबंधी संचार के लिए होता है, जो भारतीय सेनाओं के लिए सुरक्षित संचार की सेवा प्रदान करते हैं। इसके अलावा ये उपग्रह मौसम और आपदाओं का पूवार्नुमान लगाने में भी महत्त्वपूर्ण निभाते हैं। वायुसेना और नौसेना अपने विमानों और जहाजों में दिशाज्ञान इन्हीं उपग्रहों की मदद से करती हैं।

भारत ने पिछले कुछ समय में जिन उपग्रहों को अंतरिक्ष की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया है, उनमें हाल में स्थापित किए गए ईओएस-01 के अलावा काटोर्सैट-3, रीसैट-2बी, रीसैट-2बीआर1 इत्यादि प्रमुख हैं। ईओएस-01 कृषि, वानिकी और आपदा प्रबंधन सहायता में प्रयोग किया जाने वाला पृथ्वी अवलोकन उपग्रह है। इसके बारे में रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि यह उपग्रह 'अंतरिक्ष में भारत की तीसरी आंख' साबित होगा।

यह एक ऐसा अग्रिम रडार इमेजिंग उपग्रह है, जिसका सिंथेटिक अपरचर रडार बादलों के पार भी दिन-रात और हर प्रकार के मौसम में स्पष्टता के साथ देख सकता है और इसमें लगे कैमरों से बेहद स्पष्ट तस्वीरें खींची जा सकती हैं। इसकी इन्हीं विशेषताओं के कारण इस उपग्रह के जरिये न केवल सैन्य निगरानी में मदद मिलेगी, बल्कि कृषि, वानिकी, मिट्टी की नमी मापने, भूगर्भ शास्त्र और तटों की निगरानी में भी यह काफी सहायक साबित होगा। बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं में भी इसका बेहतर इस्तेमाल हो सकेगा। इसके अलावा चीन और पाकिस्तान की सीमा के आसपास की गतिविधियों पर नजर रखने में भी यह उपग्रह भारतीय सेना के लिए बेहद मददगार साबित होगा।

इसरो द्वारा अंतरिक्ष में स्थापित किए गए अन्य महत्त्वपूर्ण उपग्रहों की बात करें तो रीसैट शृंखला के उपग्रह तो कई वर्षों से अंतरिक्ष में अपना काम कर रहे हैं। 2008 में मुंबई आतंकी हमलों के बाद रीसैट-2 उपग्रह कार्यक्रम को एडवांस रडार प्रणाली के चलते रीसैट-1 से ज्यादा प्राथमिकता दी गई थी। रीसैट-2 उपग्रह को मुंबई हमले के बाद स्थापित गया था, जो खासतौर पर समुद्री सीमाओं की निगरानी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। 2016 में पाकिस्तान में की गई सर्जिकल स्ट्राइक और उसके बाद बालाकोट में जैश के ठिकानों पर किए गए हवाई हमलों में रीसैट-2 शृंखला के उपग्रहों की बहुत बड़ी भूमिका थी।

पिछले साल दिसंबर में इसरो ने रीसैट शृंखला के अत्याधुनिक उपग्रह 'रीसैट-2बीआर1' को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया था। इसमें लगे विशेष प्रकार के सेंसरों के चलते सीमा पार आतंकियों के जमावड़े की सूचना पहले ही मिल जाती है। यह उपग्रह भारतीय सुरक्षा बलों को सीमाओं पर निगरानी रखने, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में आतंकी शिविरों की गतिविधियों पर नजर रखने और समुद्र में दुश्मन के जहाजों का पता लगाने में मदद कर रहा है, जिससे हिंद महासागर में चीनी नौसेना के जहाजों और अरब सागर में पाकिस्तानी युद्धपोतों पर नजर रखी जा रही है। इसे अंतरिक्ष में 'भारत की दूसरी खुफिया आंख' माना जाता है। एक्स बैंड एसएआर क्षमता की वजह से यह उपग्रह घने अंधेरे और हर मौसम में किसी खास इलाके में किसी खास जगह की साफ तस्वीरें ले सकता है। इसे खासतौर से सीमा पार से होने वाली घुसपैठ को रोकने के उद्देश्य से ही तैयार किया गया था।

'रीसैट-2बीआर1' को अतंरिक्ष में स्थापित करने से कुछ ही दिन पहले इसरो ने काटोर्सैट शृंखला के 'काटोर्सैट-3' उपग्रह को अंतरिक्ष में स्थापित किया गया था। काटोर्सैट सैटेलाइट शृंखला के ये सभी उपग्रह भारतीय रिमोट सेंसिंग कार्यक्रम का अहम हिस्सा रहे हैं, जो विशेष रूप से पृथ्वी के संसाधन प्रबंधन और निगरानी के लिए शुरू किए गए हैं। भारत के तटीय इलाक

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