चुनाव का अहम चरण पूरा

लोकतन्त्र का जश्न आज पांच राज्यों में जिस उत्साह के मनाया गया है उसका प्रमाण यहां के मतदाताओं का बढ़-चढ़ कर मतदान में भाग लेना है।

Update: 2021-04-07 05:07 GMT

आदित्य नारायण चोपड़ा: लोकतन्त्र का जश्न आज पांच राज्यों में जिस उत्साह के मनाया गया है उसका प्रमाण यहां के मतदाताओं का बढ़-चढ़ कर मतदान में भाग लेना है। आज तमिलनाडु, पुडुचेरी, असम, केरल व प. बंगाल में विभिन्न दलों के हजारों प्रत्याशियों का भाग्य इन राज्यों के 20 करोड़ से अधिक मतदाताओं ने ईवीएम मशीनों में कैद कर दिया। सबसे अधिक मतदान असम राज्य में 80 प्रतिशत से भी ऊपर होने की खबर आयी है, इसके बाद प. बंगाल की 31 सीटों पर भी लगभग इसके करीब ही मतदान हुआ और पुडुचेरी जैसे अर्द्ध राज्य में भी मतदान प्रतिशत इसके आसपास ही रहा। सबसे कम मतदान तमिलानडु में हुआ जहां 66 प्रतिशत के करीब लोग मतदान करने पहुंचे और केरल में भी उत्साहपूर्ण वातावरण में 70 प्रतिशत से ऊपर मतदान रहा। इसका मतलब यही निकलता है कि भारत का मतदाता लगातार जागरूक हो रहा है और संविधान प्रदत्त अपने एक वोट के अधिकार की महत्ता को समझ रहा है।

दूसरा अर्थ यह भी निकलता है कि मतदाता राजनैतिक दलों के प्रचार से प्रभावित इस मायने में हो रहे हैं कि उन्हें अपने एक वोट की ताकत का अन्दाजा हो रहा है। मगर यह भी हकीकत है कि इन पांचों राज्यों में चुनाव प्रचार की तेजी इस कदर कर्कश रही कि इनमें खड़े किये गये राजनैतिक विमर्शों का स्तर लगातार नीचे गिरते चला गया और कभी-कभी तो यह आभास तक हुआ कि जैसे ये राज्यों के चुनाव न होकर किसी म्यूनिसिपलिटी के चुनाव हो रहे हैं क्योंकि बहस तू- तू- मैं- मैं में व्यक्तिगत स्तर पर उतर गई। स्वस्थ लोकतन्त्र के लिए आवश्यक है कि राज्यों के चुनावों में सम्बन्धित राज्य के मुद्दे इस प्रकार छाये रहे कि सत्तारूढ़ दल को अपने पिछले पांच साल का रिकार्ड मतदाताओं के सामने पेश करने के लिए मजबूर होना पड़े। दुखद यह रहा कि किसी भी राज्य की सरकार ने न तो अपने द्वारा लोकहित में किये गये कार्यों का न तो सिलसिलेवार लेखा-जोखा प्रस्तुत किया और न ही विपक्ष ने सत्तारूढ़ दलों को ऐसे मुद्दों पर घेरने का प्रयास किया। आज का मतदान होने के बाद चार राज्यों असम, केरल, तमिलनाडु व पुडुचेरी में चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो गई है जबकि प. बंगाल में मतदान के अभी पांच चरण शेष बचे हैं।

मतदान लगभग शान्तिपूर्ण ही कहा जायेगा हालांकि प. बंगाल से ईवीएम खराब होने या हिंसा की छुटपुट खबरें जरूर मिली हैं। केरल विधानसभा में कुल 140 सीटों पर कुल 957 प्रत्याशी खड़े हुए थे। यहां असली मुकाबला वामपंथी मोर्चे और कांग्रेस नीत संयुक्त प्रजातान्त्रिक मोर्चे के बीच था। इस राज्य की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां विरोधी गुटों के बीच आधा प्रतिशत मतों का अन्तर रहने के बावजूद सत्ता पलट बड़ी आसानी के साथ हो जाता है और किनारे के बहुमत पर बैठी सरकार पांच साल पूरे कर जाती है। यहां दल-बदल की बीमारी नहीं है। इसकी असली वजह इस राज्य की सिद्धान्त मूलक राजनीति होना है। तमिलनाडु में असली संघर्ष द्रमुक व अनाद्रमुक गठबन्धनों के बीच है। पिछले दस साल से यहां स्व. जय ललिता की अन्ना द्रमुक सरकार सत्ता पर काबिज है जिसे गद्दी से उतारने का बीड़ा इस बार स्व. करुणानिधी के पुत्र द्रमुक नेता एम.के. स्टालिन ने उठाया है। गौर से देखा जाये तो इस राज्य की 234 सीटों पर बहुत सीधे चुनाव हो रहा है क्योंकि दोनों ही प्रतिस्पर्धी मोर्चों ने अपने मुख्यमन्त्री पद के दावेदार पहले से ही घोषित कर रखे हैं। जबकि 30 सदस्यों वाली पुडुचेरी विधानसभा तक के लिए मुख्यमंत्री पद के दावेदारों के नाम पर अंधेरा है।

असम की 126 सदस्यीय विधानसभा की हालत भी लगभग ऐसी ही है जहां मुख्यमन्त्री पद की दावेदारी पर कोई भी पक्ष स्पष्ट मत नहीं रख रहा है। प. बंगाल में केवल तृणमूल कांग्रेस की नेता सुश्री ममता बनर्जी ही चुनावों के बाद मुख्यमन्त्री बने रहने का सन्देश दे रही हैं। केरल में भी मामला अधर में ही अटका हुआ है क्योंकि विरोधी प्रजातान्त्रिक मोर्चे ने किसी को मुख्यमन्त्री के रूप में पेश नहीं किया है जबकि मार्क्सवादी पार्टी चुनावी नतीजों के बाद क्या रुख अपनाती है इस बारे में फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता। अब 29 अप्रैल तक पं. बंगाल में ही चुनाव होने हैं और वे भी पांच चरणों में, इसलिए अब चुनावी केन्द्र में और भी अधिक पुरजोर तरीके से यही राज्य रहने वाला है और यहां इस बार भाजपा ममता दी को सीधी चुनौती दे रही है। चुनाव परिणाम 2 मई को सभी राज्यों के आयेंगे और इसी दिन पता चलेगा कि मतदाताओं ने अपना दिमाग लड़ा कर किस पार्टी को किस राज्य में सत्ता के सिंहासन पर बैठाने का फैसला किया है। तब तक प. बंगाल के रण का शोर ही रहेगा।


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