ऐसा हो तो क्या बात है!

मणिपुर के विधानसभा चुनाव में इस बार एक खास बात वहां पर्यावरण समस्या का चुनावी मुद्दा बनना रहा

Update: 2022-03-09 07:26 GMT
By NI Editorial
जिस समय देश में सियासी चर्चा धर्म और जाति से आगे नहीं बढ़ पाती, उस समय पर्यावरण सुधारने के बढ़-चढ़ कर वायदे करने की होड़ एक सुखद आश्चर्य की तरह आया। मणिपुर में तमाम दलों तक ने न सिर्फ पर्यावरण के मुद्दे को अपने घोषणापत्र में जगह दी, बल्कि चुनाव प्रचार के दौरान जोर-शोर से इस मुद्दे की चर्चा की।
मणिपुर के विधानसभा चुनाव में इस बार एक खास बात वहां पर्यावरण समस्या का चुनावी मुद्दा बनना रहा। जिस समय देश में सियासी चर्चा धर्म और जाति से आगे नहीं बढ़ पाती, उस समय पर्यावरण सुधारने के बढ़-चढ़ कर वायदे करने की होड़ एक सुखद आश्चर्य की तरह आया। वहां सत्तारूढ़ भाजपा से लेकर कांग्रेस और बाकी तमाम क्षेत्रीय दलों तक ने न सिर्फ पर्यावरण के मुद्दे को अपने घोषणापत्र में जगह दी, बल्कि चुनाव प्रचार के दौरान जोर-शोर से इस मुद्दे की चर्चा की। राज्य के 60 सदस्यीय विधानसभा के लिए चुनाव हुआ है। वहां पूर्वोत्तर भारत में मीठे पानी की सबसे बड़ी लोकटक लेक में दुनिया का अकेला तैरता हुआ केबुल लामजाओ नेशनल पार्क है, जहां लुप्तप्राय संगाई हिरण भी रहते हैं। संगाई हिरण मणिपुर का राजकीय पशु है। अपने किस्म के इस अनूठे लेक में जगह-जगह द्वीप और घर बने हुए हैं। हजारों लोग मछली पालन के जरिए पीढ़ियों से अपनी आजीविका चलाते रहे हैं।
मणिपुर में सत्ता के दावेदार तमाम राजनीतिक दलों ने लोकटक लेक के विकास, वहां ईको-टूरिज्म को बढ़ावा देने, पर्यावरण की सुरक्षा और मछली पालन को बढ़ावा देने को अपने घोषणापत्र में प्रमुखता से जगह दी है। सत्तारूढ़ भाजपा ने अपने घोषणापत्र में राज्य की लुप्तप्राय प्रजातियों, वनस्पतियों और जीवों की रक्षा के लिए एक ठोस कार्ययोजना बनाने का भरोसा दिया है। राज्य में सत्ता में रहने के दौरान लोकटक सुरक्षा अधिनियम पारित करने वाली कांग्रेस ने भी राज्य वन विकास निगम और लोकटक लेक रिसर्च एंड ट्रेनिंग सेंटर स्थापित करने की बात कही है। मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) भी इस बार मणिपुर के चुनाव मैदान में है। उसने अपने घोषणापत्र में 2006 के लोकटक सुरक्षा अधिनियम की समीक्षा करने के बाद उसमें जरूरी संशोधन कर उसे और वैज्ञानिक और जन केंद्रित बनाने का भरोसा दिया है। मगर एक गौरतलब बात यह है कि लोकटक लेक से आजीविका चलाने वाले मछुआरे राजनीतिक दलों को वादों से खुश नहीं हैं। उन्हें डर है कि विकास परियोजनाओं को लागू करने की स्थिति में जहां उनके सामने विस्थापन का खतरा पैदा हो जाएगा, वहीं पारंपरिक मछली पालन उद्योग की कमर टूट जाएगी। ये अपेक्षा तमाम दलों से रहेगी कि सत्ता में आने पर वे हाशिये पर रहने वाले ऐसे तबकों की चिंताओं का भी ख्याल रखें।
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