हुड्डा बनाम सुरजेवाला : हरियाणा में गुटबाजी को कांग्रेस आलाकमान क्यों बढ़ावा दे रही है?

हुड्डा बनाम सुरजेवाला

Update: 2021-05-29 05:15 GMT

अजय झा। हरियाणा कांग्रेस में इन दिनों एक नयी मुहिम की शुरुआत हुयी है जिसके अंतर्गत राजनीतिक विरोधियों से टक्कर लेने से पहले घर के दुश्मनों को ठिकाने लगाने की योजना पर काम चल रहा है. गुटबाजी कांग्रेस पार्टी के लिए हमेशा से ही एक मुसीबत रही है. कुछ समय पूर्व तक हरियाणा में कांग्रेस पार्टी कम से कम छः गुटों में बंटी थी. खबर है की अब इन गुटों में लामबंदी हो रही है ताकि एक दूसरे को ठिकाने लगाने में कोई कठिनाई ना आये.जहाँ एक तरफ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा और कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला एकजुट हो गए हैं, दूसरी तरफ भूतपूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, जो वर्तमान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं, ने कुलदीप बिश्नोई से हाथ मिला लिया है. पूर्व मंत्री किरण चौधरी और कैप्टेन अजय यादव का गुट अब कमजोर और अप्रभावी हो चुका है.

जहाँ शैलजा को कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गाँधी का करीबी माना जाता है, सुरजेवाला राहुल गाँधी के नजदीकियों में गिने जाते हैं. समझा जा रहा है कि शैलजा-सुरजेवाला गुट को हुड्डा को ठिकाने लगाने की मुहिम में पार्टी आलाकमान का आशीर्वाद प्राप्त है. हुड्डा काफी समय से पार्टी के लिए मुसीबत बने हुए हैं. इसमें कोई शक नहीं की हुड्डा एक कद्दावर नेता हैं और वर्तमान में जाट समुदाय के सबसे बड़े नेता माने जाते हैं. अपने कद का दुरुपयोग कर पार्टी से अपनी बात मनवाने का उन पर हमेशा से आरोप लगता रहा है.उम्र 73 वर्ष हो चुकी है और उनकी अब बस एक ही इच्छा है कि अपने पुत्र दीपेन्द्र सिंह हुड्डा को अपने जीते जी हरियाणा में कांग्रेस पार्टी का सबसे बड़ा नेता स्थापित कर दें.
अशोक तंवर जब नाममात्र के प्रदेश अध्यक्ष बनकर रह गए थे
फरवरी 2014 में राहुल गाँधी ने अशोक तंवर को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था. हुड्डा उस समय मुख्यमंत्री होते थे. राहुल गाँधी द्वारा उनकी मर्ज़ी के खिलाफ प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त करना हुड्डा को नामंजूर था. कहने को तो तंवर पार्टी अध्यक्ष साढ़े पांच साल तक रहे, पर हुड्डा हमेशा से उनकी राह में रोड़े अटकाते ही दिखे. उनकी चलने नहीं दी और हुड्डा समर्थकों ने तंवर की पिटाई तक कर दी थी. हुड्डा अपना सामानांतर कांग्रेस चलाते रहे, दीपेन्द्र को आगे बढ़ाते रहे और पार्टी कमजोर होती गयी. कांग्रेस पार्टी हरियाणा में लगातार चार चुनाव हार चुकी है. दो बार लोकसभा चुनाव और दो बार विधानसभा चुनाव जिसमें हुड्डा का बड़ा योगदान माना जाता है. अक्टूबर 2019 में विधानसभा चुनाव होना था और हुड्डा अपनी जिद पर अड़े हुए थे की पार्टी या तो उनकी बात माने या फिर वह अपनी अलग पार्टी का गठन कर लेंगे. पूरी तैयारी हो चुकी थी. गुलाम नबी आजाद हरियाणा के प्रभारी होते थे. उनके प्रयासों से पार्टी का विभाजन नहीं हुआ पर पार्टी आलाकमान को हुड्डा के सामने घुटने टेकने पड़े. चुनाव के ठीक पहले तंवर को पार्टी अध्यक्ष पद से हटा दिया गया. हुड्डा या उनके पुत्र को तो यह पद नहीं मिला पर वह शैलजा के नाम पर मान गए. हास्यास्पद स्थिति तब बनी जबकि चुनाव के ठीक पहले उन्हें नेता प्रतिपक्ष घोषित कर दिया गया.
गांधी परिवार की इच्छा के विपरीत शैलजा की जगह दीपेंद्र को भेजा राज्य सभा
फिर कुछ ऐसी ही स्थिति दिखी पिछले साल. 2019 के लोकसभा चुनाव में हुड्डा पिता पुत्र और शैलजा चुनाव हार चुके थे. उस समय शैलजा राज्य सभा सदस्य थीं. उनका कार्यकाल अप्रैल 2020 में समाप्त हो रहा था. कांग्रेस पार्टी हरियाणा से सिर्फ एक सीट ही जीतने की स्थिति में थी. पार्टी आलाकमान की इच्छा थी कि दुबारा शैलजा को ही राज्यसभा भेजा जाये, पर हुड्डा नहीं माने. उन्होंने जिद थाम ली थी कि राज्यसभा दीपेन्द्र हुड्डा ही जायेंगे. माना जाता है कि प्रियंका गाँधी ने हुड्डा से इस बारे में बात भी की पर वह अपनी मांग पर अड़े रहे. चूंकि कांग्रेस के ज्यादातर विधायक हुड्डा समर्थक थे, इस बात की सम्भावना बनती जा रही थी कि दीपेन्द्र हुड्डा बागी उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगे और जीत भी जायेंगे. एक बार फिर कांग्रेस आलाकमान को हुड्डा के सामने झुकना पड़ा और दीपेन्द्र हुड्डा राज्यसभा के लिए चुन लिए गए. पर हुड्डा ने ऐसा करके ना सिर्फ गाँधी परिवार से नाराज़गी मोल ले ली बल्कि शैलजा को भी अपना दुश्मन बना लिया.
अब हुड्डा की नज़र 2024 के विधानसभा चुनाव पर टिकी है. उनकी चाहत है कि शैलजा को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा कर दीपेंद्र हुड्डा को यह पद सौंप दिया जाये ताकि कांग्रेस पार्टी के चुनाव जीतने की स्थिति में दीपेन्द्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री की दौर में एकलौते नेता रहें. इसके लिए वह नेता प्रतिपक्ष पद छोड़ने को तैयार हैं. पर पार्टी आलाकमान अब और हुड्डा के सामने झुकने को तैयार नहीं है. शैलजा की रूचि केंद्र की राजनीति में हमेशा से ज्यादा रही है और मुख्यमंत्री पद पर सुरजेवाला की निगाह भी है, भले ही वह लगातार दो बार विधानसभा चुनाव हार चुके हों.
शैलजा-सुरजेवाला बनाम हुड्डा-बिश्नोई
शैलजा-सुरजेवाला गुट इन दिनों हरियाणा में काफी एक्टिव देखा जा रहा है, वही दूसरी तरफ हुड्डा ने एक समय के अपने पुराने प्रतिद्वंद्वी कुलदीप बिश्नोई को अपने साथ जोड़ लिया है. 2004 में बिश्नोई के पिता भजनलाल हुड्डा के कारण ही मुख्यमंत्री नहीं बन पाए थे. हुड्डा उन दिनों सोनिया गाँधी के करीबी होते थे और हरियाणा के नए मुख्यमंत्री का नाम सोनिया गाँधी ने तय किया. कुलदीप बिश्नोई और भजनलाल ने इसके कारण कांग्रेस पार्टी छोड़ कर अपनी खुद की पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस का गठन किया. 2009 के चुनाव में कांग्रेस की सीटों में कमी आयी और हुड्डा पर आरोप लगा कि अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए हुड्डा ने बिश्नोई के विधायकों को खरीद लिया. पर राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता. एक समय के जानी दुश्मन हुड्डा और बिश्नोई अब दोस्त बन चुके हैं ताकि शैलजा-सुरजेवाला गुट को कड़ी टक्कर दे सकें. उनकी डील है कि अगर किसी जाट को मुख्यमंत्री बनाने की स्थति में बिश्नोई दीपेन्द्र हुड्डा का समर्थन करेंगे और अगर गैर-जाट के मुख्यमंत्री बनने की स्थिति में हुड्डा बिश्नोई का समर्थन करेंगे. इस जाट-गैर जाट गठबंधन का कारण है दूसरे खेमे में जाट-गैर जाट की उपस्थिति. शैलजा गैरजाट हैं और सुरजेवाला जाट.
सबसे दुखद बात है कि कांग्रेस आलाकमान पार्टी को एकजुट करने की जगह हरियाणा में गुटबाजी को बढावा देती दिख रही है. हुड्डा को ठिकाने लगाने के चक्कर में कहीं ऐसा ना हो जाए कि कांग्रेस पार्टी जाट समुदाय को ही नाराज़ कर बैठे और पार्टी का अहित हो जाए.
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