सुक्खू के हाथ में हिमाचल
हिमाचल प्रदेश में जिस प्रकार स्व. वीरभद्र सिंह की पत्नी सांसद श्रीमती प्रतिभा सिंह ने राज्य कांग्रेस की अध्यक्ष होते हुए यह बयान जारी किया कि वह प्रदेश के मुख्यमन्त्री पद की दावेदार हैं, पूरी तरह अपनी पार्टी के स्वीकृत सिद्धान्तों के विरुद्ध था क्योंकि पार्टी ने अपने उदयपुर चिन्तन शिविर में एक व्यक्ति-एक पद का नियम लागू कर दिया था। इसके साथ ही श्रीमती प्रतिभा ने अपनी और अपने परिवार की शान में शेखी यह कह कर बघारी कि कांग्रेस विधानसभा चुनाव स्व. वीरभद्र सिंह की विरासत की वजह से जीती है, अतः पार्टी आलाकमान को उनके परिवार की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
आदित्य चोपड़ा; हिमाचल प्रदेश में जिस प्रकार स्व. वीरभद्र सिंह की पत्नी सांसद श्रीमती प्रतिभा सिंह ने राज्य कांग्रेस की अध्यक्ष होते हुए यह बयान जारी किया कि वह प्रदेश के मुख्यमन्त्री पद की दावेदार हैं, पूरी तरह अपनी पार्टी के स्वीकृत सिद्धान्तों के विरुद्ध था क्योंकि पार्टी ने अपने उदयपुर चिन्तन शिविर में एक व्यक्ति-एक पद का नियम लागू कर दिया था। इसके साथ ही श्रीमती प्रतिभा ने अपनी और अपने परिवार की शान में शेखी यह कह कर बघारी कि कांग्रेस विधानसभा चुनाव स्व. वीरभद्र सिंह की विरासत की वजह से जीती है, अतः पार्टी आलाकमान को उनके परिवार की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। लगता है श्रीमती सिंह 21वीं सदी में न जीकर पिछली सदी में जी रही हैं जिसमें राजे- रजवाड़ों की ताजपोशी उनकी वंशावली देख कर की जाती थी। उन्हें यह पता होना चाहिए कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है और कांग्रेस में प्रारम्भ से ही जीवन्त लोकतन्त्र की परंपरा अपने आन्तरिक मामलों में भी रही है। संसदीय लोकतन्त्र में मुख्यमन्त्री पद पर केवल पारिवारिक विरासत की वजह से दावेदारी करना यही बताता है कि श्रीमती प्रतिभा सिंह हिमाचल की जनता को आज भी अपने रजवाड़े की रियासत मानती हैं जबकि हकीकत यह है कि प्रतिभा सिंह के पास भी एक वोट की ताकत है और उनके पुराने महल में झाडू लगाने वाले सफाई कर्मचारी के पास भी एक वोट का संवैधानिक अधिकार है। समाजवादी चिन्तक डा. राम मनोहर लोहिया कहा करते थे कि लोकतन्त्र मंे एक महारानी और एक मेहतरानी की राजनैतिक हैसियत एक समान होती है। अतः कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें मुख्यमन्त्री पद की दौड़ से बाहर करके लोकतन्त्र का सम्मान किया है और सिद्ध किया है कि यह वही कांग्रेस है जो आजादी से पहले किसी 'खान बहादुर' के खिलाफ 'नाई' को लड़ा कर उसे जनता द्वारा विजयी करा दिया करती थी।लोकतन्त्र की असली मालिक जनता होती है और जिसे वह चाहती है उसी के सिर पर सेहरा बंधता है। जिस परिवारवाद के आरोप को गलत साबित करने के लिए कांग्रेस पार्टी ने अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष एक दलित वर्ग के मजदूर के बेटे श्री मल्लिकार्जुन खड़गे को बनाया है, उसे ही पुनः सिद्ध करने के लिए श्रीमती प्रतिभा सिंह अड़ी हुई थीं। यह पूरी तरह बेमानी और लोकतन्त्र विरोधी कदम होता यदि पार्टी आलाकमान श्रीमती सिंह के दबाव के आगे झुक जाता। सर्वप्रथम प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष होने की वजह से उन्हें मुख्यमन्त्री पद की दावेदारी नहीं करनी चाहिए थी। दूसरे उन्हें अपने परिवार की यशोगाथा का बखान चुनावी विजय के सन्दर्भ में बिल्कुल नहीं करना चाहिए था क्योंकि 2017 का विधानसभा चुनाव भी कांग्रेस श्री वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में ही भाजपा से हारी थी। चुनावों में हार-जीत दिलाने का श्रेय केवल मतदाता को जाता है परन्तु श्रीमती सिंह ने राज्य कांग्रेस को स्व. वीरभद्र सिंह का ही पर्याय बना डाला। यह कांग्रेस की संस्कृति कभी नहीं रही है। बेशक पिछले कुछ वर्षों से इस पर परिवारवाद के आरोप लगते रहे हैं मगर विभिन्न राज्यों में कांग्रेस ने प्रादेशिक नेतृत्व को उभरने की भी पूरी छूट दी है। यदि ऐसा न होता तो श्रीमती प्रतिभा सिंह को आलाकमान प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष कभी न बनाता। उनकी महत्ता व स्व. वीरभद्र सिंह की निष्ठा व कांग्रेस सिद्धान्तों के लिए प्रतिबद्धता देखते हुए ही ऐसा किया गया था। राज्य में कांग्रेस प्रत्याशियों के समर्थन में श्रीमती प्रियंका गांधी ने भी जमकर चुनाव प्रचार किया था और कांग्रेस की नीतियों के बारे में मतदाताओं को समझाया था। अतः न तो कभी किसी एक परिवार की विरासत के सहारे चुनाव जीते जा सकते हैं और न ही केवल सहानुभूति के सहारे चुनावी नैया पार हो सकती है। इसके लिए पार्टी के छोटे से लेकर बड़े कार्यकर्ता के समग्र व समन्वित प्रयास की जरूरत होती है। जब कांग्रेस पिछली विधानसभा में विपक्ष में थी तो इसका विधानसभा में नेतृत्व श्री मुकेश अग्निहोत्री कर रहे थे। अतः आलाकमान ने यदि सभी परिस्थितियों का संज्ञान लेते हुए एक साधारण कार्यकर्ता से नेता बने श्री सुखविन्दर सिंह सुक्खू को मुख्यमन्त्री पद के लिए चुना है तो इसके लिए पार्टी को साधूवाद और श्री सुक्खू को पंजाब केसरी परिवार की ओर से ढेरों शुभकामनाएं। हिमाचल छोटा राज्य है और उत्तर भारत का पहला पहाड़ी राज्य है जो पंजाब से काट कर बनाया गया था। इस राज्य के लोगों की अपनी विशिष्ट समस्याएं हैं। इनका हल ढूंढने में नये मुख्यमन्त्री कामयाब हों, इसके लिए उन्हें पहले दिन से ही कठिन परिश्रम करना होगा और राज्य हित में कठोर निर्णय भी करने पड़ेंगे। लोकतन्त्र में जब जमीन से उठा आदमी शीर्ष पद पर पहुंचता है तो सामान्य व्यक्ति खुद को सत्तासीन महसूस करता है। सवाल सिर्फ उसकी समस्याएं दिल से हल करने का होता है।