कालेधन को लेकर सरकार की कोशिश ला रही है रंग, अब नौकरशाही के भ्रष्टाचार पर कब लगेगी लगाम

बैंकों में खाते रखने वाले भारतीयों की जो सूची भारत सरकार को उपलब्ध कराई, वह काले धन के खिलाफ लड़ी जा रही

Update: 2020-10-10 01:57 GMT
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। स्विट्जरलैंड ने अपने यहां के बैंकों में खाते रखने वाले भारतीयों की जो सूची भारत सरकार को उपलब्ध कराई, वह काले धन के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई की सफलता का परिचायक है। इसके पहले इसी तरह की एक सूची पिछले साल भी मिली थी। स्विट्जरलैंड से इस तरह की सूचियां मिलना इसीलिए संभव हो पा रहा है, क्योंकि भारत ने इसके लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आवाज उठाई।

फिलहाल यह कहना कठिन है कि स्विट्जरलैंड से मिली जानकारी के आधार पर विदेश में काला धन रखने वालों के खिलाफ क्या कार्रवाई हो सकेगी, लेकिन इतना तो है ही कि ऐसे लोग हतोत्साहित होंगे। चूंकि ऐसे आंकड़े सामने आए हैं कि काला धन बाहर जाने का सिलसिला कमजोर पड़ा है, इसलिए इस नतीजे पर पहुंचा जा सकता है कि सरकार की कोशिश रंग ला रही है।

केंद्र सरकार और उसकी विभिन्न एजेंसियों को काले धन और खासकर भ्रष्ट तौर-तरीकों से हासिल किए गए धन को विदेश ले जाने वालों के खिलाफ सख्ती का सिलसिला कायम रखने के साथ ही इस पर भी ध्यान देना चाहिए कि भ्रष्टाचार पर भी लगाम लगे। आखिर यह भ्रष्टाचार ही है जो काले धन का कारण बनता है। लक्ष्य केवल यही नहीं होना चाहिए कि काला धन बाहर न जाने पाए, बल्कि यह भी होना चाहिए कि वह पनपने ही न पाए।

यह सही है कि केंद्र सरकार के उच्च स्तर पर जारी रहने वाले भ्रष्ट तौर-तरीकों पर एक बड़ी हद तक लगाम लगी है, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि अन्य स्तरों पर व्याप्त भ्रष्टाचार पर भी काबू पा लिया गया है। केंद्रीय सत्ता के निचले स्तरों और साथ ही राज्य सरकारों के स्तर पर भ्रष्टाचार अभी भी सिर उठाए हुए है। इसके चलते भ्रष्ट तत्व केवल लाखों-करोड़ों के वारे-न्यारे ही नहीं करते, बल्कि जनता का शोषण भी करते हैं।

जब आम आदमी सरकारी दफ्तरों में व्याप्त रोजमर्रा के भ्रष्टाचार से दो-चार होता है तो वह ऐसे दावों पर मुश्किल से ही यकीन करता है कि काले धन पर लगाम लग रही है। आखिर उस भ्रष्टाचार पर लगाम कब लगेगी जो विकास परियोजनाओं और जन कल्याणकारी योजनाओं की गुणवत्ता की अनदेखी करता है या फिर जिससे आम आदमी त्रस्त होता है?

यह सवाल केवल केंद्रीय सत्ता के समक्ष ही नहीं, राज्य सरकारों के सामने भी है। इस सवाल को हल करने के लिए वैसी ही प्रतिबद्धता दिखाई जानी चाहिए, जैसी विदेश भेजे जाने वाले काले धन पर अंकुश लगाने के मामले में दिखाई गई है। वास्तव में हमारे नीति-नियंताओं को यह समझने की जरूरत है कि नौकरशाही के भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के मामले में अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है।

Tags:    

Similar News

-->