अलविदा लता दीदी

सुर साम्राज्ञी, स्वर कोकिला लता मंगेशकर के निधन की खबर ने स्वाभाविक ही पूरी दुनिया में फैले उनके करोड़ों प्रशंसकों को शोक के सागर में डुबो दिया। सब इस खबर को अपनी निजी क्षति के रूप में देख रहे हैं।

Update: 2022-02-07 03:30 GMT

सुर साम्राज्ञी, स्वर कोकिला लता मंगेशकर के निधन की खबर ने स्वाभाविक ही पूरी दुनिया में फैले उनके करोड़ों प्रशंसकों को शोक के सागर में डुबो दिया। सब इस खबर को अपनी निजी क्षति के रूप में देख रहे हैं। 1942 में 13 साल की उम्र में परिवार की कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि के बीच और पिता से मिली संगीत की संपन्न विरासत के साथ लता ने जो करियर शुरू किया, उसे वह असीमित ऊंचाई तक ले गईं। इस क्रम में न केवल तीन पीढ़ियों ने उनकी आवाज से अपनी आत्मा को सुकून मिलता महसूस किया बल्कि संगीत की वह विरासत भी समृद्ध होती गई, जिसका अभिन्न हिस्सा लता मंगेशकर थीं। जब लता ने फिल्मों में गाना शुरू किया था, तब फिल्मी गायकी को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता था। मगर लता की आवाज ने करोड़ों श्रोताओं के दिलों में ऊंचा मुकाम तो हासिल किया ही, इस पेशे को भी इसकी गरिमा दिलाई। 1945 में आई फिल्म 'महल' में 'आएगा, आने वाला...' उनका पहला हिट गाना था। उसके बाद 'मधुमती', 'बीस साल बाद', 'खानदान' और 'जीने की राह' फिल्मों के लिए बेस्ट फीमेल प्लेबैक सिंगर का फिल्मफेयर अवॉर्ड हो या 'परिचय', 'कोरा कागज' और 'लेकिन' के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार, उपलब्धियां उनकी झोली में गिरकर जैसे खुद को भाग्यशाली महसूस करने लगीं। 'बैजू बावरा', 'मदर इंडिया' और 'मुगले आजम' में नौशाद की राग आधारित धुनें हों या 'पाकीजा', 'अभिमान', 'अमर प्रेम', 'आंधी', 'सिलसिला', 'चांदनी', 'सागर', 'रुदाली' और 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' के सदाबहार गीत- लता मंगेशकर की आवाज जैसे हर सीमा को अप्रासंगिक बनाती चली गई।

मगर इन सबसे बिल्कुल अलग है वह गीत जो भारत चीन युद्ध के बाद 1963 में गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान लता मंगेशकर ने लाइव गाया था, 'ऐ मेरे वतन के लोगों'। देश के आम जनमानस में गहराई से पैठे उस गीत ने लता के गायन, देशभक्ति के जज्बे और शहादत की भावना को जैसे एकाकार कर दिया। साल-दर-साल बीतते चले गए, लेकिन यह गीत राष्ट्र की सामूहिक स्मृति में ऐसे दर्ज है जैसे वह कल की बात हो। गायक एक से एक हुए हैं, होंगे, पर लता जी जैसा कोई न हुआ। यह अकारण नहीं है कि भारत रत्न, पद्म विभूषण, पद्मभूषण और दादा साहेब फाल्के पुरस्कार समेत शायद ही कोई बड़ा पुरस्कार या सम्मान ऐसा हो, जो इस देश और समाज ने लता मंगेशकर को न दिया हो, लेकिन इसके बावजूद आज उनके जाने के बाद यह देश और समाज खुद को उनका ऋणी महसूस कर रहा है। ऐसा लगता है कि जो कुछ उन्हें दिया गया, वह तो कुछ भी नहीं था उसके सामने जो वह हमें और आने वाली पीढ़ियों को सौंप गई हैं। अलविदा लता दीदी।

नवभारत टाइम्स

Tags:    

Similar News

-->