गोवा विधानसभा चुनाव 2022: कैसे हो गया ममता बनर्जी के साथ गोवा में खेला?
गोवा एक छोटा प्रदेश जरूर है, पर इन दिनों वहां बड़े- बड़े राजनीति के दिग्गज चक्कर लगाते हुए दिख रहे हैं
अजय झा गोवा एक छोटा प्रदेश जरूर है, पर इन दिनों वहां बड़े- बड़े राजनीति के दिग्गज चक्कर लगाते हुए दिख रहे हैं. कारण है गोवा विधानसभा का आगामी चुनाव और चुनावी दंगल में तृणमूल कांग्रेस का प्रवेश. तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी अभी दो दिन पहले ही अपने गोवा के तीन दिनों के दौरे से वापस मायूस हो कर लौटी हैं. एक स्थानीय दल के धोखे ने ममता बनर्जी के मंसूबों पर पानी फेर दिया. वह दल है गोवा फारवर्ड पार्टी.
तृणमूल कांग्रेस ने अपने गोवा अभियान की शुरुआत बड़े नाटकीय अंदाज़ में किया जब कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता लुइज़िन्हो फलेरियो ने कांग्रेस पार्टी और विधानसभा से इस्तीफा दे कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने की घोषणा की. कोलकाता में ममता बनर्जी की उपस्थिति में सितम्बर के महीने में फलेरियो ने तृणमूल कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की और एक महीने बाद ममता बनर्जी गोवा पधारीं. तृणमूल कांग्रेस की तरफ से पार्टी के राज्यसभा सदस्य डेरेक ओ ब्रायन और सलाहकार प्रशांत किशोर तृणमूल कांग्रेस के विस्तार की रूपरेखा तैयार कर रहे थे. चूंकि चुनाव होने में अब सिर्फ तीन महीने का समय ही बचा है, समय की कमी के कारण पार्टी को जमीनी स्तर से खड़ा नहीं किया जा सकता था. लिहाजा योजना बनी की दूसरी पार्टियों से नेताओं को तृणमूल कांग्रेस में जोड़ा जाएगा.
सरदेसाई ने फिर तोड़ा भरोसा
पहले फलेरियो पार्टी में शामिल हो गए और फिर गोवा फारवर्ड पार्टी के अध्यक्ष भूतपूर्व उपमुख्यमंत्री विजय सरदेसाई से बातचीत चली. कहा जा रहा है कि सरदेसाई गोवा फारवर्ड पार्टी को तृणमूल कांग्रेस में विलय करने को तैयार हो गए थे पर उनकी शर्त थी कि वह फलेरियो की तरह कोलकाता नहीं जाएंगे बल्कि ममता बनर्जी को गोवा आना पड़ेगा. दीदी गोवा तो आईं पर टेनिस खिलाडी लिएंडर पेस और फिल्म अभिनेत्री नफीसा अली को पार्टी में शामिल करना पड़ा. जबकि नफीसा अली का गोवा से कुछ लेना देना नहीं है और पेस सिर्फ गोवा मूल के हैं, गोवा में निवासी नहीं. सरदेसाई ने आखिरी समय ने अपना फैसला बदल दिया. ममता बनर्जी अपने गोवा दौरे पर कांग्रस पार्टी की आलोचना करते दिखीं, कारण था कांग्रेस पार्टी ने उनके साथ खेला कर दिया जिसकी उन्हें उम्मीद नहीं थी. सरदेसाई ना सिर्फ महत्वकांक्षी हैं बल्कि भरोसे लायक कतई नहीं हैं.
सरदेसाई का इतिहास रहा है
सरदेसाई शुरू में कांग्रेस पार्टी से जुड़े थे. 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो वह बगावत कर के निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़े और जीते भी. उन्होंने इसके लिए फलेरियो को दोषी करार दिया था. 2016 में गोवा फारवर्ड पार्टी बनी, जिसके अध्यक्ष बने प्रभाकर तिम्बले. सरदेसाई और दो अन्य निर्दलीय विधायक पार्टी से जुड़े थे पर सदस्य नहीं बने क्योंकि ऐसा करने से दलबदल कानून के तहत उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द हो जाती. 2017 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले सरदेसाई गोवा फारवर्ड पार्टी में शामिल हो गए. वह शुरू से भारतीय जनता पार्टी के घोर विरोधी के रूप में जाने जाते थे. 2017 के चुनाव में गोवा फारवर्ड पार्टी की कांग्रेस गठबंधन में चुनाव लड़ने की बात चली पर बात बनी नहीं. गोवा फारवर्ड पार्टी सिर्फ 4 सीटों पर ही चुनाव लड़ी और उसके सरदेसाई समेत तीन विधायक चुने गए. कांग्रेस पार्टी 17 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी पर बहुमत से आंकड़ा 4 सीटों से कम था. एनसीपी जिसका एक विधायक चुना गया था, ने कांग्रेस पार्टी को समर्थन देने की घोषणा की और गोवा फारवर्ड पार्टी से बातचीत चली. सरदेसाई जो गोवा फारवर्ड पार्टी विधायक दल के अध्यक्ष चुने गए थे, उन्होंने कांग्रेस पार्टी को समर्थन देने का आश्वासन दिया जिसके बाद कांग्रेस पार्टी चार दिनों तक नए मुख्यमंत्री के नाम पर फैसला नहीं कर पायी. जब तक पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी कोई फैसला लेते सरदेसाई ने बीजेपी को समर्थन देने की घोषणा कर दी जिसकी कांग्रेस पार्टी क्या किसी को भी उम्मीद नहीं थी. बीजेपी ने महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी और तीन निर्दलीय विधयाकों को भी साथ में जोड़ लिया और मनोहर पर्रिकर के नेतृत्व में सरकार बना ली, जिसमें सरदेसाई को उपमुख्यमंत्री बनाया गया. गोवा फारवर्ड पार्टी के अध्यक्ष तिम्बले ने इसके विरोध में पद और पार्टी से इस्तीफा दे दिया. बीजेपी को सरदेसाई पर भरोसा नहीं था, लिहाजा उन्होंने कांग्रेस पार्टी को तोड़ना शुरू कर दिया जो सरदेसाई को नहीं भाया और गोवा फारवर्ड पार्टी सरकार से अलग हो गयी. बीजेपी की सरकार चलती रही क्योंकि एक-एक करके कांग्रेस के 12 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए और बीजेपी को अब सरदेसाई जैसे अविश्वसनीय नेता के सहारे की जरूरत नहीं थी. सरदेसाई ने ममता बनर्जी को अंगूठा दिखा कर एक बार फिर से साबित कर दिया है कि उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है.
दीदी ने फिर कांग्रेस को निशाने पर लिया
ममता बनर्जी गोवा आयीं तो थीं यह सोचकर कि सरदेसाई गोवा फारवर्ड पार्टी का विलय तृणमूल कांग्रेस में करेंगे, पर इस घोषणा के बाद कांग्रेस पार्टी ने सरदेसाई से संपर्क साधा और जो बात 2017 में नहीं बनी थी इस बार बन गयी. कांग्रेस पार्टी और गोवा फारवर्ड पार्टी गठबंधन में चुनाव लड़ेंगे. अभी इस बात की जानकारी नहीं है कि 40 सदस्यों वाली विधानसभा चुनाव में गोवा फारवर्ड पार्टी को कितनी सीटें मिलेंगी, पर सरदेसाई ने दीदी का सपना जरूर तोड़ दिया. खिसियाई दीदी कांग्रेस पार्टी की आलोचना करते दिखीं और पेस और नफीसा अली को ही अपनी पार्टी में शामिल कर के वापस चली गयीं. इससे दो दिन पहले प्रशांत किशोर भी राहुल गांधी के नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठा चुके थे और कहा था कि कांग्रेस पार्टी की नीतियों के कारण ही बीजेपी मजबूत होती जा रही है और आने वाले कई दशकों तक उसका देश के राजनीति में प्रभाव बना रहेगा.
अब इस बात पर शक ही है कि दीदी चुनाव के पूर्व फिर से गोवा लौटेंगी. बस देखना यही होगा कि क्या वह चुनाव के दौरान प्रचार करने भी आएंगी या फिर गोवा से उनका मोहभंग हो चुका है. बहरहाल अगर गोवा में तृणमूल कांग्रेस का खाता भी खुल जाए तो गनीमत ही मानी जाएगी, गोवा में तृणमूल पार्टी की सरकार तो दूर की बात है.