चीनी चौपड़ का खेल
‘‘प्रधानमंत्री मोदी को इस बात का अफसोस होना चाहिए कि जब 11 अक्तूबर, 2019 को वे तमिलनाडु के महाबलिपुरम में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ झूले पर बैठे थे, तब वे उनकी मंशा को ठीक से भांप नहीं पाए। यहां तक कि जब झूला ठंडी समुद्री हवा में धीरे-धीरे झूल रहा था, उस समय तक चीन की सेना (पीएलए) भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की योजना के साथ बहुत आगे बढ़ चुकी थी।
पी. चिदंबरम; ''प्रधानमंत्री मोदी को इस बात का अफसोस होना चाहिए कि जब 11 अक्तूबर, 2019 को वे तमिलनाडु के महाबलिपुरम में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ झूले पर बैठे थे, तब वे उनकी मंशा को ठीक से भांप नहीं पाए। यहां तक कि जब झूला ठंडी समुद्री हवा में धीरे-धीरे झूल रहा था, उस समय तक चीन की सेना (पीएलए) भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की योजना के साथ बहुत आगे बढ़ चुकी थी।
1 जनवरी, 2020 को राष्ट्रपति शी ने सैन्य कार्रवाई को अंजाम देने वाले आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए थे। मार्च-अप्रैल, 2020 में पीएलए के जवान भारतीय क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा को पार कर चुके थे।''
19 जून, 2020 को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में, प्रधानमंत्री ने अपने समापन भाषण में कहा था कि 'किसी भी बाहरी व्यक्ति ने भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ नहीं की है और न ही कोई बाहरी व्यक्ति भारतीय क्षेत्र के अंदर था।' माननीय प्रधानमंत्री के इन शब्दों पर कोई भी विश्वास कर लेता, मगर बहुत सारे तथ्य इसके खिलाफ हैं।
शायद प्रधानमंत्री मोदी निश्चित रूप से मानते हैं कि देश के लोग उन तनाव भरे दिनों को भूल गए हैं। वे बिल्कुल सही हैं। ऐसा लगता है कि लोग बाकी सभी बुरे निर्णयों और गलत कदमों को भी भूल गए हैं- विमुद्रीकरण, चेतावनी दिए बिना पूर्णबंदी, गरीबों का सबसे बड़ा आंतरिक पलायन (कुछ अनुमानों के मुताबिक यह संख्या तीन करोड़ है), मानव निर्मित आक्सीजन की कमी, नदी में तैरती लाशें, नमस्ते ट्रंप रैली और यहां तक कि सबसे ताजा आपदा, मोरबी नदी में पुल का गिरना।
मार्च-अप्रैल, 2020 के बाद से, भारत और चीन द्वारा साझा की जाने वाली 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा पर स्थिति और बदतर हो गई है। अरुणाचल प्रदेश के तवांग इलाके के यांग्त्से में 9 दिसंबर, 2022 की ताजा घटना इस कड़वी सच्चाई को बयान करती है: चीन ने समय और स्थान तय करके भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ कर दी, मगर सरकार को इसकी कोई भनक तक नहीं मिल पाई। इसलिए कि इसे लेकर कोई नीति नहीं है।
शुक्र है, हमारी सेनाएं हर घुसपैठ का मुकाबला करने में सक्षम हैं और इस प्रक्रिया में हताहतों की पीड़ा सहन कर लेती हैं। जून, 2020 में गलवान में बीस जवानों की जान चली गई थी। अरुणाचल प्रदेश में दिसंबर, 2022 की घटना के बारे में सरकार ने स्वीकार किया है कि सात सैनिक घायल हुए, जबकि अन्य रिपोर्टें बताती हैं कि इससे अधिक सैनिक घायल हुए हैं।
सवाल है कि चीन को अपनी पसंद का समय और स्थान चुन कर भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करने का साहस और विश्वास कैसे पैदा होता है? अन्य बातों के साथ-साथ यह सवाल भी उठता है कि क्यों जब इस विषय पर संसद 13, 14 और 15 दिसंबर को चर्चा करना चाहती थी, तो दोनों पीठासीन अधिकारियों ने इस अनुरोध को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मामला 'संवेदनशील' है।
संसदीय लोकतंत्र की यह एक अजीब परिभाषा है कि संसद को एक 'संवेदनशील' मसले पर चर्चा करने के अवसर से वंचित कर दिया जाए। अगर संसद केवल गैर-संवेदनशील मसलों पर चर्चा कर सकती है, तो मुझे लगता है कि राज्यसभा में अगली बहस, नियम 267 के तहत, आज खेले जाने वाले अर्जेंटीना और फ्रांस के बीच फीफा फुटबाल विश्व कप फाइनल मैच के बारीक बिंदुओं पर होनी चाहिए। (डेरेक ओ ब्रायन, जो पिछले छह वर्षों से सांसद हैं, नियम 267 के तहत उनके चर्चा के हर अनुरोध को राज्यसभा में ठुकरा दिया गया है)। अंग्रेजी का एक शब्द है 'डेसुएट्यूड'- अनुपयोगी हो जाना। नियम 267 को भी खत्म किया जा सकता है।
संसद के अस्तित्व को तो नकारा जा सकता है, मगर जनता को नहीं नकारा जा सकता। लोगों को पता होना चाहिए कि:
कई दौर की बातचीत के बावजूद, चीन ने हाट स्प्रिंग्स पर कुछ भी स्वीकार नहीं किया है।
चीन ने डेपसांग के मैदानी भागों और डेमचोक जंक्शन से सैनिकों की वापसी पर चर्चा करने से इनकार कर दिया है। 'द हिंदू' के अनुसार, इन दोनों संघर्ष बिंदुओं पर चीनी सेना एलएसी पर भारत की तरफ बनी हुई है।
पूर्वी लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक, चीन ने अपनी सैन्य उपस्थिति और बुनियादी ढांचे (सैनिकों, हथियारों, सड़कों, पुलों, संचार, हेलीपैड और यहां तक कि बस्तियों) को मजबूत किया है।
अमेरिकी रक्षा विभाग के प्रेस सचिव के खुलासे के मुताबिक अमेरिका ने देखा है कि चीन अपने 'सैनिकों की तैनाती और एलएसी के पास सैन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण जारी रखे हुए है।'
अधिक 'बफर जोन' बनाए गए हैं। बफर जोन का मतलब है कि भारतीय सैनिक अब उस क्षेत्र में गश्त नहीं कर सकते (जैसा कि वे 2020 से पहले कर रहे थे)। संभव है कि चीन यांग्त्से में एक और बफर जोन की मांग करे।
नवंबर, 2022 में प्रधानमंत्री मोदी ने बाली में जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान शी जिनपिंग से मुलाकात की थी। वीडियो क्लिप में दिखता है कि दोनों नेताओं ने इंडोनेशियाई रेशम की शर्ट पहने, हाथ मिलाया। प्रधानमंत्री मोदी ने बात की। शी जिनपिंग न तो मुस्कराए और न ही भौहें चढ़ाई, और जाहिरा तौर पर कुछ भी महत्त्वपूर्ण नहीं कहा।
इस बीच, चीन द्वारा भारत के प्रति शत्रुता प्रदर्शित करने के बावजूद, भारत चीन को जितना निर्यात करता है, उससे चार गुना अधिक उससे आयात कर रहा है। 2021-22 में व्यापार घाटा 73 अरब अमेरिकी डालर था। 174 चीनी कंपनियों ने भारत में पंजीकरण कराया है। 3,560 भारतीय कंपनियों के बोर्ड में चीनी निदेशक हैं। अब चीन से 'अलग होने' के सरकार के दावे की पोल खुल गई
चीन चीनी चौपड़ खेल रहा है, पांसा फेंकने वाला अकुशल खेल नहीं। चीनी चौपड़ में खिलाड़ी केवल आगे या बगल में चल सकता है। वह एक खाना छलांग लगा सकता है, लेकिन उसे केवल आगे बढ़ना होता है। उसका अंतिम लक्ष्य अपने खाने से आगे बढ़ना और प्रतिद्वंद्वी (दुश्मन) के त्रिकोण को भरना होता है।
चूंकि सरकार चीन द्वारा खेले जा रहे इस खेल को लेकर अंधेरे में है, इसलिए वह संसद और जनता को अंधेरे में रखना चाहती है। इसलिए हम नहीं जान पाते कि प्रधानमंत्री मोदी ने शी जिनपिंग से बाली में क्या कहा। इस मसले पर संसद में भी कोई बहस नहीं हुई है।