यूक्रेन से लौटे छात्रों की शिक्षा का भविष्य
रूस-यूक्रेन के बीच जंग में फंसे हजारों भारतीय छात्रों को स्वदेश लाने का काम जारी है। ज्यादातर छात्रों ने यूक्रेन छोड़ दिया है।
आदित्य नारायण चोपड़ा: रूस-यूक्रेन के बीच जंग में फंसे हजारों भारतीय छात्रों को स्वदेश लाने का काम जारी है। ज्यादातर छात्रों ने यूक्रेन छोड़ दिया है। इसी बीच कर्नाटक के छात्र नवीन की रूसी गोलाबारी में और पंजाब के बरनाला के छात्र चंदन जिंदल की ब्रेन हेमरेज से मौत ने अभिभावकों को चिंता में डाल दिया है। अब कीव में एक और भारतीय छात्र हरजीत को गोली लगने से चिंता की लकीरें और गहरी हो चुकी हैं। तमाम दुश्वारियां झेलते हुए भारत मां की गोद में लौटे छात्रों की कहानियां दिलदहला देने वाली हैं। यूक्रेनी सेना भारतीय छात्रों को ट्रेनों में चढ़ने से रोक रही है, बल्कि उनके साथ दुर्व्यवहार भी कर रही है। कई भारतीय छात्रों के मोबाइल तक छीन लिए गए हैं। छात्र कई-कई किलोमीटर पैदल चलकर पोलैंड और रोमानिया और अन्य देशों के बार्डर तक पहुंच रहे हैं।अभी सूमी शहर में 8 दिन से फंसे एक हजार भारतीय मेडिकल छात्र यहां के बंकरों में फंसे हुए हैं और बहुत बुरे हालात से गुजर रहे हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से गुहार लगाई है कि उन्हें रूसी बार्डर से निकाला जाए। जल्द ऐसा नहीं किया गया तो वे भूख से मर जाएंगे। केन्द्र सरकार सभी छात्रों को सुरक्षित निकालने के लिए प्रयासरत है। यूक्रेन से लौटे छात्रों की शिक्षा अधर में लटक चुकी है। क्योंकि ये छात्र कब वापिस जाएंगे और कब उनकी पढ़ाई दोबारा शुरू हो पाएगी, यह कहना अभी मुश्किल है। युद्ध अभी थम जाएगा, इसकी कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि इन छात्रों की शिक्षा का क्या होगा? क्या ये मेडिकल छात्र भारत में रहकर सरकारी और निजी संस्थानों में अपनी आगे पढ़ाई पूरी कर सकते हैं। इस पर चर्चा जारी है क्योंकि भारतीय छात्रों के भविष्य को संवारने का दायित्व सरकार का भी है। सरकार इनके भविष्य को उम्मीदों भरा बनाने के लिए नियमों में परिवर्तन कर सकती है। अभीभावक किसी भी हालत में अपने बच्चों को वहां दोबारा भेजने के इच्छुक नहीं हैं।यूक्रेन से लौटे ऐसे छात्र जिनके पाठ्यक्रम समाप्त नहीं हुए हैं, उन्हें सुविधा देने के लिए सरकार विचार कर रही है। ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि सरकार नेशनल मेडिकल कमीशन से बात कर फारेन मेडिकल ग्रेजूएट लाइसेंसिंग रेगुलेशन एक्ट-2001 में बदलाव कर सकती है। इस एक्ट के अनुसार किसी भी विदेशी मेडिकल कालेज के छात्र को भारत में प्रैक्टिसिंग के लिए स्थाई पंजीकरण की जरूरत होती है। स्थाई पंजीकरण के लिए छात्रों के पास कम से कम 54 महीनों की शिक्षा और एक साल की इंटर्नशिप होना जरूरी है। इसके बाद एमएमजीई परीक्षा पास करके भारत में प्रैक्टिसिंग के लिए स्थाई पंजीकरण को प्राप्त कर सकते हैं। एक विकल्प यह भी है कि इन छात्रों को भारत या किसी अन्य देश के विश्वविद्यालय में प्रवेश दिलाकर इनके बचे हुए पाठ्यक्रम पूरा करवाया जाए। यह उपाय तब अपनाए जाएं जब यूक्रेन के हालात सामान्य न हो रहे हों। अगर यूक्रेन के हालत सामान्य हो जाते हैं तो छात्रों को वहां वापिस बुलाया जा सकता है। फिलहाल यूक्रेन वैश्विक शक्तियों का अखाड़ा बना हुआ है, इसलिए हालात सामान्य होने की उम्मीद कम ही है। दूसरा विकल्प यह भी है कि भारत में क्रेडिट ट्रांसफर स्कीम लागू की जाए। लम्बे समय से छात्र ऐसी व्यवस्था की मांग कर रहे हैं। क्रेडिट ट्रांसफर स्कीम का आशय उस व्यवस्था से है जिसमें एक छात्र को पाठ्यक्रम के दौरान कालेज बदलने की सुविधा प्रदान की जाए। यूरोपीय और अन्य देशों में यह सुविधा दी जाती है। अगर यह व्यवस्था भारत में लागू कर दी जाए तो यूक्रेन से लौटे छात्रों के साथ-साथ भविष्य में भी छात्रों के लिए यह सुविधा मिलेगी। संपादकीय :भारत एक आवाज में बोलेरूस-यूक्रेन युद्ध का सबबदुनिया में मचेगा हाहाकारअमीर-गरीब की बढ़ती खाईरूस के ऊपर थोपा हुआ युद्धसस्ती हो मेडिकल शिक्षायूक्रेन से लौटे छात्रों के पाठ्यक्रम को पूरा करवाने में एक बड़ी समस्या सरकारी कालेजों में कम सीटों की उपलब्धता भी है। जब इन संस्थानों में जगह नहीं मिलती तब इन छात्रों के पास प्राइवेट शिक्षा संस्थान ही विकल्प होते हैं। इन संस्थानों को सरकार की ओर से कोई वित्तीय सहायता नहीं मिलती। नैशनल मैडिकल कमीशन के आने के बाद निजी संस्थानों में कैपीटेशन फीस की प्रणाली तो खत्म हो चुकी है। लेकिन एक मैडिकल कालेज को चलाने में काफी धन खर्च होता है। विदेशों में सरकार निजी संस्थानों को भी मदद देती है। सरकार को ऐसी कोई व्यवस्था करनी चाहिए ताकि यूक्रेन से लौटे छात्रों को इन संस्थानों में समायोजित किया जा सके। इन प्राइवेट कालेजों को सीटें बढ़ाने की एवज में सरकार उन्हें मदद दे। यूक्रेन से लाखों रुपए का नुक्सान उठाकर लौटे छात्रों को फीस में भी रियायत देनी चाहिए। शिक्षा विशेषज्ञों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इससे एक साथ कई फायदे सामने आ सकते हैं। एक तो वह अपना पाठ्यक्रम पूरा कर पाएंगे दूसरा अधिक सीटें बढ़ने से छात्रों की बाहर जाने की समस्या में कमी आएगी और तीसरा देश में डाक्टरों की संख्या में वृद्धि होगी और इसका सीधा फायदा आम जनता को मिलेगा।यह सही है कि भारतीय छात्र विदेशों की ओर ज्यादा आकर्षित होते हैं इसका कारण यह भी है कि करियर कौंसिलरों और ट्रैवल एजैंटों का एक बड़ा नैटवर्क स्थापित हो चुका है। यह लोग छोटे शहरों से आने वाले छात्रों को विदेशों में एमबीबीएस की डिग्री कम खर्च में दिलाने का सपना दिखाते हैं और छात्र विदेशों में चले जाते हैं। जो लोग छात्रों का विदेशों में एडमिशन कराते हैं उन्हें यहां बैठे-बैठे एजैंटों के माध्यम से लाखों रुपए का कमीशन भी मिलता है। यह एक तरह से करोड़ों का सालाना कारोबार बन गया है। भारत में स्वास्थ्य सेवाओं पर बहुत अधिक ध्यान देने की जरूरत है। अगर केन्द्र सरकार अपने देश में ही मैडिकल शिक्षा सुनिश्चित करे तो किसी को देश से बाहर जाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी वाराणसी में यूक्रेन से लौटे भारतीय छात्रों से बातचीत करते हुए इशारा किया है कि देश में मैडिकल शिक्षा अच्छी नहीं है। उम्मीद है सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाएगी।