हिंदी एक मधुर भाषा है और हमारे देश के अधिकतर हिस्सों में बोली, लिखी, पढ़ी और समझी जाती है। इसके अतिरिक्त दूसरे देशों से भी अनेक विद्यार्थी भारत में हिंदी भाषा सीखने प्रतिवर्ष आते हैं। परंतु इस सब के बावजूद हिंदी को जो सम्मान और स्थान मिलना चाहिए, वह प्राप्त नहीं है। हालांकि सरकार ने भी हिंदी को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रयास किए हैं। आज प्रत्येक सरकारी कार्यालय में हिंदी को अधिमान दिया जाता है। किसी भी सरकारी कार्यालय में जाएं तो अक्सर बोर्ड पर लिखा हुआ मिलता है, यहां हिंदी में भी प्रत्येक कार्य व प्रपत्र उपलब्ध हैं।
बावजूद इसके हिंदी उतनी उन्नति नहीं कर पाई है, जितनी उससे अपेक्षा की जाती है। हिंदी एक सहयोगी भाषा है और अन्य विषयों के पठन-पाठन में सहायक सिद्ध होती है। गणित, इतिहास, पर्यावरण आदि सही ढंग से अध्ययन करने में हिंदी एक अच्छे माध्यम का कार्य करती है। यहां तक कि अंग्रेजी जैसी विदेशी भाषा के लिए भी यह सहायक ही साबित होती है। जबकि अंग्रेजी इसके विपरीत आचरण करती है और कभी-कभी हिंदी के मार्ग में बाधक के रूप में कार्य करती है। हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा होने के बावजूद विद्यार्थी जब बड़ी कक्षाओं में गणित व विज्ञान विषय पढऩा चाहते हैं तो उन्हें अंग्रेजी माध्यम चुनने के लिए प्रेरित किया जाता है।
और तो और, कई बार इन विषयों में माध्यम का विकल्प भी उपलब्ध नहीं होता। पुस्तकें भी हिंदी माध्यम में उपलब्ध नहीं हो पातीं। ऐसे में हिंदी अपना विकास करना चाहे भी, तो कैसे करे। भारतवर्ष के अधिकांश भाग में हिंदी भाषी लोग बसते हैं। परंतु उस समय दुख और भी बढ़ जाता है जब यह देखने में आता है कि कई बार हिंदी भाषी लोग भी हिंदी की जड़ें कुरेदने का काम करने लग पड़ते हैं। जैसे हिमाचल प्रदेश के संदर्भ में देखें तो हिंदी और पहाड़ी की लिपि समान होने के कारण यह तो अच्छी बात है कि लोग पहाड़ी बोलना और लिखना पसंद करते हैं, परंतु जहां तक हिंदी की बात है तो वे उससे अधिक अंग्रेजी में वार्तालाप करने में अपनी शान समझते हैं। हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश कुछ ऐसे राज्य हैं जहां हिंदी को समझने वाले बहुतायत में पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त दक्षिण भारत में भी 3 फीसदी लोग हिंदी भाषी मिल जाते हैं।
हिंदी की लिपि देवनागरी है तथा इस पर शोध कार्य भी चलते रहते हैं ताकि इस को सरल व सुगम माध्यम बनाया जा सके। इसमें 11 स्वर, 33 व्यंजन और तीन संयुक्त अक्षर हैं जो इसे बहुत आकर्षक रूप प्रदान करते हैं। हालांकि नए प्रशिक्षुओं को कहीं-कहीं उच्चारण में समस्या आ सकती है, परंतु मूल स्तर से सीखने पर यह अत्यंत सरल हो जाती है और हिंदी के प्रति रुचि भी बढ़ जाती है। जहां सरकार द्वारा स्कूल स्तर पर हिंदी विषय को दसवीं कक्षा तक अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाना उचित है, वहीं कुछ प्राइवेट विद्यालयों में इसे केवल वैकल्पिक या अतिरिक्त विषय के रूप में पढ़ाया जाना इसकी गरिमा को खंडित करता है। इतना ही नहीं दसवीं कक्षा के बाद विज्ञान के विषयों को पढऩे वाले विद्यार्थियों को तो हिंदी विषय का विकल्प भी नहीं रखा जाता। यही कारण है कि कई बार अंग्रेजी में वार्तालाप करने वालों को पढ़ा-लिखा और सभ्य व कुलीन समझा जाता है और हिंदी में वार्तालाप करने वालों को साधारण समझा जाता है। हमें इस स्थिति को बदल कर हिंदी को सम्मान देना होगा।
यश गोरा, लेखक कांगड़ा से हैं