मनमानी का उदाहरण: नारायण राणे की गिरफ्तारी से भाजपा और शिवसेना के बीच राजनीतिक कटुता और बढ़ेगी

इसी तरह के व्यवहार का परिचय देने के लिए तैयार रहना चाहिए।

Update: 2021-08-25 01:29 GMT

महाराष्ट्र में केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की गिरफ्तारी हतप्रभ करने वाली तो है ही, शासन के मनमाने इस्तेमाल और साथ ही भारतीय राजनीति में लगातार बढ़ती असहिष्णुता की भी परिचायक है। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लेकर नारायण राणे ने जो बयान दिया वह अस्वाभाविक, अरुचिकर और सामान्य राजनीतिक शिष्टाचार के प्रतिकूल तो कहा जा सकता है, लेकिन यह ऐसा वक्तव्य नहीं कि उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाए। यदि इस तरह छोटी-छोटी बातों पर गिरफ्तारियां होंगी तो किसी की खैर नहीं। सत्ता के अहंकार में चूर महाराष्ट्र सरकार ने न केवल नारायण राणे की गिरफ्तारी की, बल्कि इस दौरान यह भी सुनिश्चित किया कि उनके साथ किसी अपराधी की तरह व्यवहार किया जाए। नारायण राणे के साथ हुए पुलिसिया व्यवहार ने उन घटनाओं की याद दिला दी जिनकी चपेट में एक टीवी चैनल के संपादक और मशहूर अभिनेत्री कंगना रनोट आई थीं। ऐसा लगता है कि महाराष्ट्र सरकार अपने राजनीतिक आकाओं का हुक्म बजाते समय सामान्य तौर-तरीकों को भुला देना और शिवसेना की निजी सेना की तरह व्यवहार करना पसंद कर रही है। उसे अपनी प्रतिष्ठा के साथ लोकलाज की कुछ तो परवाह करनी चाहिए। नि:संदेह ऐसी ही अपेक्षा महाराष्ट्र सरकार से भी है, लेकिन शायद उसने उन तौर-तरीकों को अपने शासन का हिस्सा बनाना तय कर लिया है जो उसने विपक्षी दल के रूप में अपने राजनीतिक विरोधियों के प्रति अपना रखे थे।

नारायण राणे की जिस तरह से गिरफ्तारी हुई उससे यह स्पष्ट है कि महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना के बीच की राजनीतिक कटुता और अधिक बढ़ेगी। इसके नतीजे में राज्य का राजनीतिक माहौल और अधिक दूषित ही होगा। भारतीय लोकतंत्र के लिए यह ठीक नहीं कि राजनीतिक दल प्रचलित मर्यादाओं का उल्लंघन करने की होड़ में लिप्त हो जाएं। माना कि शिवसेना को पूर्व शिवसैनिक नारायण राणे फूटी आंख नहीं सुहाते और वह जब से केंद्र में मंत्री बने हैं तब से उद्धव ठाकरे और उनके साथियों में उनके प्रति तल्खी बढ़ी ही है, लेकिन उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि केंद्रीय मंत्री की अपनी एक गरिमा होती है। उनकी गरिमा से खिलवाड़ कर शिवसेना अपनी राजनीतिक खुन्नस तो निकाल सकती है, लेकिन उनके अथवा अन्य किसी के बोलने के अधिकार पर रोक नहीं लगा सकती। अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता का अधिकार लोगों को अस्वाभाविक अथवा अरुचिकर बातें करने का भी अधिकार देता है। यदि इस अधिकार का विरोध दमनात्मक तौर-तरीकों से किया जाएगा तो इससे लोकतंत्र को क्षति ही पहुंचेगी। यदि शिवसेना यह चाहती है कि नारायण राणे संभल कर बोलें और उनके नेताओं के प्रति शालीनता का परिचय दें तो खुद उसे भी इसी तरह के व्यवहार का परिचय देने के लिए तैयार रहना चाहिए।


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