ENG vs IND: लॉर्ड्स की जीत 'बल्लेबाज कोहली' नहीं बल्कि 'कप्तान कोहली' की जीत है

लॉर्ड्स टेस्ट के पहले दिन शतक बनाया केएल राहुल

Update: 2021-08-17 09:05 GMT

विमल कुमार। 

लॉर्ड्स टेस्ट के पहले दिन शतक बनाया केएल राहुल ने, शानदार साझेदारी में योगदान दिया रोहित शर्मा ने 83 रन बनाकर। मोहम्मद सिराज ने पहली और दूसरी पारियों में 4-4 विकेट लिए जो मैन ऑफ द मैच से कम नहीं था, जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद शमी ने बल्ले और गेंद से कमाल दिखाया और चेतेश्वर पुजारा और अंजिक्य रहाणे ने भी चौथे दिन शतकीय साझेदारी करके मैच का रुख निर्णायक तरीके से भारत की तरफ मोड़ा। इस जीत के यूं तो कई नायक है लेकिन असल में महानायक है कप्तान विराट कोहली जिसने मैच में दो पारियों में मिलाकर सिर्फ 62 रन बनाए। दरअसल, ये बल्लेबाज कोहली नहीं बल्कि कप्तान कोहली की जीत है।


इस जीत को अगर किसी एक बात पर समर्पित किया जा सकता है तो वो कोहली का टेस्ट क्रिकेट में हर हालत में जीत के लिए जान लड़ाने वाला नजरिया। खास तौर पर विदेशी पिचों पर। तमाम जानकार कहते रहें कि रविचंद्रन अश्विन को हर हाल में प्लेइंग इलेवन में शामिल कीजिए लेकिन कोहली का ये भरोसा था कि अगर इंग्लैंड में टेस्ट जीतना है तो 4 तेज गेंदबाज ही जितायेंगे। न्यूजीलैंड के हाथों वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप मुकाबले में मिली हार के बाद उन्होंने अपनी रणनीति में बदलाव किया जहां अब वो दो स्पिनर लेकर नहीं उतरना चाहते हैं।
मैच हर हाल में जीतेंगे ही
अगर पूरे टेस्ट में आप देखें और वो भी खास तौर पर आखिरी दिन तो आपको ऐसा लगेगा कि ये कोहली का अटूट भरोसा था कि वो मैच हर हाल में जीतेंगे ही। और वाकई में ऐसा ही हुआ। ये कोहली की भूख है जिससे आपको शमी और बुमराह जैसे गेंदबाज भी निचले क्रम में 89 रनों की नाट आउट साझेदारी कर डालते हैं जिसके चलते हार की तरफ जाने वाले मैच का नतीजा ही बदल जाता है। ये कोहली ही है जो इंग्लैंड के सबसे कमायब गेंदबाज जेम्स एंडरसन को ये कहने से नहीं चूकते हैं, 'ये तुम्हारा पिछवाड़ा नहीं है जहां तुम क्रिकेट खेल रहे हो बल्कि टेस्ट मैच है।' कहने का अंदाज कुछ ऐसा जोकि सुपरस्टार अमिताभ बच्चन फिल्म जजीर में शेरखान यानि प्राण को कहते हैं, 'ये पुलिस स्टेशन है तुम्हारे बाप का घर नहीं और जब तक बैठने नहीं कहा जाय, बैठना मत!'

लेकिन, कोहली जानते हैं कि इस जीत के मायने कुछ भी नहीं रहेंगे अगर वो अगले तीन मैच में से 2 में जीत हासिल नहीं करते हैं। इंग्लैंड ने हमेशा से ही कोहली को परेशान किया है। 2011 के दौरे से ठीक पहले उनका फॉर्म खराब हुआ और उन्हें वेस्टइंडीज से लौटते वक्त लंदन में सिर्फ फ्लाइट बदलने का मौका मिला और देश लौटना पड़ा जबकि बाकि खिलाड़ी इंग्लैंड आए। 2014 में उनके बल्ले से रन ही नहीं बने।
डेढ़ दशक का सूखा खत्म करने का मौका
2018 में कप्तान के तौर पर हर मैच में अच्छा खेलने के बावजूद 4-1 से हार झेलनी पड़ी। ये मैका अभी नहीं तो कभी नहीं जैसा है। अगर इस दौरे पर कोहली दो या दो से ज़्यादा टेस्ट नहीं जीत पाते हैं तो भारतीय क्रिकेट उन्हें महान कप्तान मानने से हिचकेगा। आज तक सिर्फ कपिल देव ने 1986 के दौरे पर इंग्लैंड में एक सीरीज में 2 मैच जीतने का कमाल दिखाया है। कोहली को उससे बेहतर करने का भी मौका है।

महान सुनील गावस्कर ने भी कहा है कि कि मौजूदा इंग्लैंड की टीम सिर्फ दो खिलाड़ियों वाली टीम है। एंडरसन और जो रुट। अगर कोहली इस टीम को हरा कर पिछले डेढ़ दशक का सूखा (2007 से इंग्लैंड में सीरीज नहीं जीती है टीम इंडिया और पिछले तीन दौरों पर हर बार हार कर लौटी है) खत्म नहीं कर पाती है तो सबसे ज़्यादा अफसोस इस कप्तान कोहली को होगा जिससे ज्यादा टेस्ट मैच अब सिर्फ इतिहास में तीन कप्तानों ने ही जीते हैं।
टीम इंडिया से ज़्यादा कप्तान कोहली की जीत है
हम क्यों कह रहें हैं कि ये टीम इंडिया से ज़्यादा कप्तान कोहली की जीत है? ऐसा इसिलए कि आज तक किसी भारतीय कप्तान ने विदेशी जमीं पर टॉस हारने के बाद इतने (6) टेस्ट मैच जीते हों। ऐसा भारतीय इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ था जब विदेशी पिचों पर टेस्ट के आखिर दिन आखिर सत्र में 6 विकेट की जरुरत हो तो टीम ने ऐसा कर दिखाया हो। ऐसा कभी नहीं हुआ जब किसी कप्तान ने विदेश में पहले चार दिन 363 ओवर में सिर्फ 28 विकेट पिच पर गिरते देखें हो उसके बावजूद वो आखिरी दिन, आखिरी 2 सत्र में 52 से कम ओवर में ही 10 विकेट ले ले...ऐसा सिर्फ योग्यता और काबिलिलत से नहीं बल्कि जीत के लिए अटूट सोच रखने वाली भावना से ही मुमकिन होता है। इस बात में शायद ही दो राय हो कि टीम इंडिया में कोहली ने अपने इस नजरिए को टीम की नई पहचान दे डाली है।


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