कूटनीतिक परीक्षा: यूक्रेन संकट से मुश्किल में इमरान खान
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अपनी पहली मास्को यात्रा से लौट आए हैं
मरिआना बाबर
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अपनी पहली मास्को यात्रा से लौट आए हैं। यूक्रेन पर रूसी हमले की आशंका के बीच इमरान खान मास्को पहुंचे थे। हर कोई हैरान था कि ऐसे माहौल में वह रूस की यात्रा कैसे कर सकते हैं! लेकिन उन्हें आमंत्रित करने वाले रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने यात्रा स्थगित नहीं की, बल्कि एक जोरदार संदेश दिया कि इस क्षेत्र में अब भी ऐसे मित्र हैं, जो मंत्रियों और पत्रकारों के एक बड़े प्रतिनिधिमंडल के साथ मास्को की यात्रा कर रहे हैं।
मास्को के लिए उड़ान भरने से ठीक पहले इमरान खान ने कहा था, मैं उम्मीद कर रहा हूं कि यूक्रेन का संकट शांतिपूर्ण तरीके से हल हो जाएगा। मैं सैन्य संघर्ष में विश्वास नहीं करता। एक अधिकारी के मुताबिक, इमरान खान के लिए रूसी कंपनियों के सहयोग से प्रस्तावित, पर दीर्घकाल से रुकी अरबों डॉलर की गैस पाइपलाइन पर जोर देना महत्वपूर्ण है। इसके अलावा पुतिन ने इस्लामोफोबिया के खिलाफ दुनिया भर के मुसलमानों का समर्थन किया है। कुछ समय पहले पुतिन ने एक बयान में कहा था कि इस्लामोफोबिया से बचना चाहिए। इस बयान के तुरंत बाद इमरान खान ने एक ट्वीट में मुसलमानों का समर्थन करने के लिए पुतिन को धन्यवाद दिया था।
पाकिस्तान इस समय सबसे कठिन कूटनीतिक परीक्षा का सामना कर रहा है। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू हो चुका है, जबकि दोनों ही देशों के साथ इस्लामाबाद के राजनयिक संबंध हैं। इमरान ने मास्को के लिए जैसे ही उड़ान भरी, वैसे ही पुतिन ने यूक्रेन के दो क्षेत्रों को अलग-अलग देशों की मान्यता दी और वहां अपने सैनिक भेजने की धमकी दी। रूस ने दोनेत्स्क और लुहांस्क पीपुल्स रिपब्लिक को मान्यता दी है, जिनका गठन 2014 में पूर्वी यूक्रेन में अलगाववादी आंदोलनों द्वारा हुआ था। पाकिस्तान के यूक्रेन के साथ भी अच्छे संबंध हैं, इसलिए इमरान के मास्को दौरे का समय कूटनीतिक रूप से बहुत नाजुक है। इसी दुविधा को देखते हुए इमरान खान ने मास्को जाने से पहले एक रूसी टीवी चैनल से कहा था कि पाकिस्तान किसी का पक्ष नहीं लेगा और न इस क्षेत्र में किसी गुट का हिस्सा बनेगा।
वर्षों बाद किसी पाक प्रधानमंत्री ने रूस का दौरा किया है। दरअसल सोवियत संघ द्वारा अफगानिस्तान पर हमला करने के बाद से दोनों देशों के बीच रिश्ते ठंडे पड़ गए थे। पाकिस्तान ने तब की दूसरी महाशक्ति सोवियत संघ से लड़ने और अफगानिस्तान से उसे बाहर निकालने के लिए अन्य देशों का पक्ष लिया था। लेकिन अफगानिस्तान और पाकिस्तान की ऊर्जा संसाधनों में दिलचस्पी लेने के कारण, जिसे रूस गैस के रूप में निर्यात करने के लिए तैयार था, द्विपक्षीय रिश्ते धीरे-धीरे पटरी पर आने लगे। इससे पहले प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और सैन्य प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ को मास्को आमंत्रित किया गया था। पिछले साल द्विपक्षीय संबंधों में काफी सुधार हुआ, जब रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव असैन्य और सैन्य नेतृत्व के साथ बैठक के लिए इस्लामाबाद पहुंचे थे। करीब नौ वर्षों के बाद किसी रूसी विदेश मंत्री ने पाकिस्तान का दौरा किया था।
यूक्रेन पर रूसी सेना के हमले के बाद युद्ध शुरू हो चुका है और इससे पाकिस्तान में नीति निर्माताओं की चिंता काफी बढ़ गई है। प्रधानमंत्री इमरान खान का यह बयान, कि इस मामले के हल के लिए शांतिपूर्ण और कूटनीतिक तरीका खोजना होगा, उस क्षेत्र और दुनिया को यह संदेश देने की कोशिश थी कि पाकिस्तान यूक्रेन के साथ बेहतर संबंध बनाए रखना चाहता है, जो उसका बड़ा व्यापारिक साझीदार है। चीन के भी यूक्रेन के साथ बड़े व्यापारिक हित जुड़े हुए हैं। यूक्रेन के साथ पाकिस्तान का व्यापार गेहूं के आयात से लेकर रक्षा सौदों तक है। द्विपक्षीय रक्षा और सुरक्षा संबंधों के कारण इस्लामाबाद ने यूक्रेन में एक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी को राजदूत बनाए रखा है। इमरान की मास्को यात्रा से ठीक पहले यूक्रेन में पाकिस्तान के राजदूत सेवानिवृत्त मेजर नोएल इजराइल खोकर ने यूक्रेन के पहले उप-विदेश मंत्री एमिन द्जेपर से मुलाकात कर यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए समर्थन जताया।
पाकिस्तान को अब इस बात की भी चिंता है कि रूस-यूक्रेन के बीच पूर्ण युद्ध छिड़ने से उसे गेहूं के आयात के लिए वैकल्पिक देशों की तलाश करनी होगी। यूक्रेन और पाकिस्तान के बीच रक्षा सहयोग भी है और यूक्रेन निर्मित टी-80 यूडी टैंक पाकिस्तान की बख्तरबंद वाहिनी का अहम हिस्सा हैं। दिलचस्प यह है कि एक समय सोवियत संघ के सैनिकों को अफगानिस्तान से बाहर निकालने के लिए पाकिस्तान अफगान मुजाहिदीन का समर्थन कर रहा था, लेकिन इन दिनों पाकिस्तान और रूस संयुक्त सैन्य अभ्यास कर रहे हैं। इधर अफगानिस्तान में तालिबान ने जब अपनी अंतरिम सरकार बनाई, तो पाकिस्तान और रूस करीब आ गए और इस समूह में चीन भी शामिल हो गया। इन तीनों देशों के लिए मादक पदार्थ, उग्रवाद व आतंकवाद तथा शरणार्थी समस्या प्रमुख चिंताएं हैं। तीनों देश इन पर चर्चा के लिए कई बार मिल चुके हैं और समय आने पर तीनों अलग-अलग नहीं, बल्कि एक साथ ही काबुल को मान्यता प्रदान करेंगे।
पाकिस्तान को इस बात की भी चिंता है कि रूस की मौजूदा नीतियां चीन और रूस के संबंधों को नुकसान पहुंचा सकती हैं। हाल ही में जब रूसी राष्ट्रपति पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग चीन में मिले, तो बीजिंग ने रूस को आश्वस्त किया कि आगे नाटो का विस्तार होने की स्थिति में वह रूस का समर्थन करेगा। लेकिन उसी के साथ चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने यह भी कहा कि वह यूक्रेन की संप्रभुता का समर्थन करते हैं।